छतरपुर जिले में जल गंगा संवर्धन अभियान के तहत जागरूकता अभियान चल रहा है जिसका उद्देश्य जल संरक्षण और जल स्रोतों की सफाई करना है। यह अभियान 90 दिनों तक चलेगा और इसके तहत स्कूलों में जागरूकता कार्यक्रम, तालाबों की सफाई और जन चौपालों का आयोजन किया जा रहा है जिसके तहत हर गांव-गांव में जाकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है।
रिपोर्ट – अलीमा, लेखन – गीता
छतरपुर जिले में चंदेलकालीन शासन काल में जल संकट से निपटने के लिए बहुत ही सुन्दर और डिजाइन वाले कुंआ, तालाब और बावड़ियां तैयार की गई थी जो आपस में एक-दूसरे से जुड़ी हुई थी। साल भर पानी से लबालब भरी रहती थी लेकिन बदलते समय के अनुसार इनमें पानी की कमी होती जा रही है। आज भी कई जल स्रोतों में पानी सुरक्षित है लेकिन कई में सुधार की भी जरूरत है। मध्य प्रदेश समाचार पत्र के अनुसार छतरपुर जिले में 66 बावड़ियां हैं। 52 बावड़ियां में सुधार किया गया है और इसमें पानी का स्तर भी अच्छा है लेकिन पूरे बुंदेलखंड में चंदेलकालीन तालाबों और बावड़ियां को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार ने ये पहल शुरू की है। यह अभियान इस समय तेजी से चल रहा है। इसके तहत पुराने जल स्रोतों को चिह्नित कर उनको सुरक्षित करने का काम जारी है। चंदेल राजाओं द्वारा बनवाए गए बांध, तालाब और बावड़ियां जो पुरानी धरोहर है उसको बचाने के लिए ये प्रयास जारी हैं।
इस अभियान के तहत जल संरक्षण की शपथ, जलाशयों जैसे तालाब, कुएं, नदियां और बावड़ियों की सफाई के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए जन चौपालों में चर्चाएं की जा रही हैं। नीचे गिरते वाटर लेवल कि स्थिति में पानी को किस तरह से बचाया जाए। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री द्वारा शुरू की गई इस पहल में जिला प्रशासन का उद्देश्य है कि हर गांव-गांव में चौपाल लगाकर लोगों को जल संरक्षण के लिए जागरूक किया जाए। जिस तरह से वाटर लेवल लगातार नीचे जा रहा है उसे लेकर गंभीरता से सोचना और बचाव करना जरूरी है।
आप इस तस्वीर में देख सकते हैं कि जो गांव के सरकारी स्कूलों हैं वहां पर बैनर लगाकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि जल ही जीवन है। आज तो पानी मिल रहा है लेकिन एक दिन ऐसा आएगा जब लोग एक-एक बूंद पानी को तरसेंगे।
गांव में चौपाल लगाकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि किस तरह हमें पानी का संरक्षण करना चाहिए। यह चौपाल ग्राम पंचायत इमलिया की है जहां अधिकारियों और कर्मचारियों ने उन फसलों की खेती के बारे में जानकारी दी जिसमें कम पानी में अधिक उत्पादन होता है। उन्होंने बताया कि जल संरक्षण के लिए फलदार पौधे जैसे आम, नींबू, आंवला और अमरूद आदि का रोपण किया जाए। किसानों को विभागीय नर्सरी पर मौजूद पौधों की जानकारी भी दी गई और यह संदेश दिया गया कि ऐसे पौधे लगाए जाएं जिनमें कम पानी लगता हो। इससे न केवल पानी बचेगा बल्कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा। पेड़-पौधे भी उगेंगे हरियाली होगी और भी बढ़ेगी साथ ही पानी की खपत भी कम होगी। जैसे इस समय आम का सीज़न चल रहा है जो किसान आम की खेती, मतलब बागवानी करते हैं उन किसानों की सीजन के अनुसार आम कि फसल भी अच्छी होती है और पेड़ पौधों में पानी भी उतना नहीं लगता साथ ही ठंडी छांव भी मिलती है।
इस तस्वीर में कुछ लड़कियां यह संदेश देना चाहती हैं कि जल ही जीवन है। अगर जल नहीं है तो कुछ भी नहीं है। लड़कियां अपने हाथों में मेहंदी लगाकर “जल ही जीवन है” लिखवाया और लोगों को बताया कि पानी की बचत कैसे करनी चाहिए। कभी जल सहेलियों द्वारा रैली निकाली जाती है तो कभी गांव-गांव जाकर संस्था के लोग मेहंदी के जरिए जागरूकता फैला रहे हैं।
यह तस्वीर है उस स्थान की जहां गांव के लोग गेहूं सूखने के लिए डालते हैं। वहां पर भी “जल ही जीवन है” लिखकर लोगों को जागरूक किया गया। यह चित्र छतरपुर जिले के बड़ा मलहरा क्षेत्र का है, जहां लोगों ने पहले गेहूं धोया और फिर उस पर यह संदेश लिखा कि “जल के बिना कुछ भी नहीं”। लोग हर तरीके से पानी बचाने का संदेश दे रहे हैं क्योंकि आजकल लोग पानी का बहुत दुरुपयोग करते हैं। बिना जरूरत के भी पानी बहाते हैं लेकिन यह नहीं सोचते कि अगर पानी नहीं बचा तो जीवन ही संकट में पड़ जाएगा। वह दिन दूर नहीं जब हमारा बुंदेलखंड भी रेगिस्तान बन जाएगा।
जल सहेलियों ने 300 किलोमीटर पैदल चलकर इस दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। अब हर तरफ जल ही जीवन के लिए जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है। चौपाल में लोगों को समझाने का बस यही मकसद है कि ग्रामीण क्षेत्रों में हमेशा पानी की समस्या बनी रहती है। अगर आज से ही पानी बचाकर चलेंगे तो भविष्य में कोई परेशानी नहीं होगी।
यह तस्वीर राजनगर के तालाब की है जहां गांव के लोगों ने खुद ही तालाब से कचरा निकालना शुरू कर दिया है और यह संदेश दिया कि पानी को साफ-सुथरा रखें जिससे जानवर भी पी सकें। इंसान तो साफ पानी पीते ही हैं लेकिन जानवर और पशु पक्षियों के लिए भी हमें सोचना चाहिए। उनके लिए भी पानी रखें, तालाबों, नदियों और कुंआ बावड़ियों को भी साफ रखें। उनमें कचरा न डालें ताकि पानी स्वच्छ और उपयोगी बना रहे।
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