खबर लहरिया Blog Assam: पत्नी का कटा सर साइकिल पर रखकर थाने पहुंचा पति

Assam: पत्नी का कटा सर साइकिल पर रखकर थाने पहुंचा पति

असम के चिरांग जिले में एक 60 साल का पति बितीश हाजोंग अपनी पत्नी बैजंती का सिर काटकर उसे साइकिल की टोकरी में रखकर थाने पहुंच गया। उसने पुलिस से कहा – “मैंने मार दिया है इसे, पकड़ लो मुझे।”

असम: पुलिस स्टेशन में आरोपी और साइकिल की तस्वीर (फोटो साभार: सोशल मीडिया)

लेखन – मीरा देवी 

नीली ड्रम वाले वीडियो पर तो लोगों के रील बन गए, मीम्स बन गए, ठहाके लग गए। किसी ने कहा ‘ड्रम वाली बीवी’ किसी ने कहा ‘साउथ की मूवी रियलिटी बन गई’ लेकिन असम के चिरांग जिले से 20 अप्रैल को जो खबर आई है उस पर कोई मजाक नहीं, कोई रील या मीम नहीं, कोई बहस नहीं- क्यों? क्योंकि अब आप आदत बना चुके हैं हर हैवानियत को ‘आम घटना’ कहकर मजाक किए जाने की।

आरोपी ने किया आत्मसमपर्ण

सच सुनिए और डरिए, ये कहानी मज़ाक नहीं है

दैनिक भास्कर समेत कई मीडिया में रिपोर्ट की गई खबर के अनुसार असम के चिरांग जिले में एक 60 साल का पति बितीश हाजोंग अपनी पत्नी बैजंती का सिर काटकर उसे साइकिल की टोकरी में रखकर थाने पहुंच गया। उसने पुलिस से कहा – “मैंने मार दिया है इसे, पकड़ लो मुझे।” ये घटना 19 अप्रैल की रात की बताई जा रही है। आप सोच रहे होंगे कि फिर वही घरेलू लड़ाई? लेकिन रुकिए, सवाल बड़ा ये है कि किसे हक है किसी की जान लेने का? क्योंकि समाज में धारणा ही कुछ ऐसी बना दी गई है।

बीतिश हाजोंग कोई गैंगस्टर या अपराधी नहीं। वो दिहाड़ी मजदूर, मेहनत करता है लेकिन उस मेहनत के साथ जो क्रोध और जो ज़हर उसके भीतर पल रहा था वह किसी इंसान का नहीं बल्कि एक बीमारी का रूप ले चुका था। एक पत्नी जिसके साथ 30-35 साल की शादीशुदा ज़िंदगी बीती होगी, जिसके साथ बच्चे, घर, झगड़े, चिंताएं सब कुछ जिया होगा, उसका सिर काट दिया उसने। काटने के बाद कहीं छुपा नहीं, भागा नहीं – पुलिस स्टेशन गया, सिर साथ ले गया। अब आप ही बताइए कि क्या ये सिर्फ हत्या है?

बांदा में पांच साल पहले इसी तरह की घटना

मैंने भी कवरेज की थी ऐसी ही एक घटना

उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में पांच साल पहले साल 2020 के अक्टूबर महीने में ऐसा ही मामला सामने आया था। जिले के बबेरू कस्बे में रहने वाले एक मजदूर पति ने अवैध संबंधों के शक में अपनी पत्नी पर फरसे से वार कर उसका सिर धड़ से अलग कर डाला और आरोपी पति बाल पकड़ते हुए कटा सिर हाथों में लेकर थाने पहुंच गया था।

पुलिस कहती है कि झगड़े होते थे, इसलिए मारा। कितना आसान है न ये कहना?

हर घर में झगड़े होते हैं। महिला के रूप में बहनें, मांएं, पत्नियां, बेटियां ये सब झेलती हैं। लेकिन किसी का सिर काट देना ये सिर्फ गुस्से का नतीजा नहीं हो सकता। ये लगातार बनती आ रही मानसिकता है। जहां एक आदमी को लगने लगता है कि महिलाओं पर उनका हर तरह का अधिकार है। जब तक चुप रहे तो ठीक है और जब ज़बान खेलें तो ‘सबक सिखा दो’।

अरे साहब, ये सिर नहीं कटा है, ये हमारे सिस्टम का गला कटा है

आप कह सकते हैं कि हमें क्या लेना देना? हमारे घर में सब ठीक है लेकिन बात इतनी छोटी नहीं है। अगर इस समाज में रोज़ कोई किसी की जान ले रहा है और पुलिस बस पोस्टमार्टम करवा के केस दर्ज कर रही है तो कल वही चुप्पी हमारे दरवाजे पर आएगी।

थाने में हाज़िर होना क्या बहादुरी है?

नहीं, ये बहादुरी नहीं है। ये मानसिक संतुलन खो देना है। ये सोच तब आती है जब कानून का डर न हो। जब समाज आंखें मूंद ले और जब हर रोज़ का ज़ुल्म कोई देखता और सुनता न हो।

पड़ोसी कहते हैं कि हर दिन झगड़ा होता था

तो सवाल उठता है कि क्या कभी किसी ने पुलिस को खबर की? क्या पंचायत ने दखल दिया? क्या मोहल्ले ने टोका? नहीं न क्योंकि हमारे समाज में ‘घर के मामले में दखल नहीं देना चाहिए’ वाली सोच भरी पडी है यही चुप्पी एक दिन खून बनकर निकलती है। सवाल सिर्फ बितीश का नहीं, सवाल उस ‘तंत्र’ का है जो ऐसे बितीश रोज़ पैदा करता है।

हम ऐसे मर्द तैयार कर रहे हैं जिन्हें लगता है कि ‘पत्नी बोले तो उसका मुंह तोड़ दो।’ हम ऐसे माहौल में जी रहे हैं जहां घरेलू हिंसा को ‘पति -पत्नी का मामला’ मानकर छोड़ दिया जाता है। हम ऐसे कानून व्यवस्था के हवाले हैं जहां औरत की मौत पर भी मीडिया कहता और हेडिंग में लिखना नहीं भूलता है “घरेलू झगड़े में हत्या।”

अब बताइए – क्या ये बस एक न्यूज़ है?

आपके घर में, आपके पड़ोस में, या आपके गांव-शहर में ऐसी एक भी महिला है जो डर-डर कर जी रही है? जो रोज़ गाली, थप्पड़, धमकी झेलती है?

इन खबरों को मज़ाक बना लेंगे और फिर भूल जाएंगे

अरे भई, आज नीली ड्रम, कल साइकिल की टोकरी, परसों शायद कोई चप्पल में सिर ले जाए लेकिन हमारे भीतर का डर, शर्म, इंसानियत कब लौटेगी? चिरांग की ASP रश्मि रेखा शर्मा ने कहा है कि फोरेंसिक जांच जारी है। आरोपी को पकड़ लिया गया है। तो बस? क्या हमें यही जानना था?

हम क्यों नहीं पूछते हैं

उस महिला ने कभी पुलिस से मदद मांगी थी? क्या उस गांव में महिला सुरक्षा के लिए कोई व्यवस्था है? मानसिक स्वास्थ्य की कोई मदद थी क्या, बितीश जैसे लोगों के लिए? क्या पुलिस और समाज दोनों की नाकामी नहीं है ये? हर वो आदमी जो औरत की जान लेता है, वो अकेला कसूरवार नहीं होता। उसकी परवरिश, उसका माहौल, उसकी समाजिक चुप्पी, उसकी कानून से बेखौफी सब बराबर के भागीदार होते हैं। इसलिए अगली बार जब कोई कहे पत्नी ने मारा गुस्से में तो उसे जवाब दीजिए कि गुस्सा अगर जान लेने का लाइसेंस बन गया है तो ये समाज शमशान बनने से नहीं बचेगा।

 

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