प्रोफेसर अली खान मेहमूदाबाद को कर्नल सोफ़िया कुरैशी पर आपत्तिजनक फेसबुक पोस्ट के लिए हरियाणा महिला आयोग से आया समन। आयोग ने साम्प्रदायिक मनमुटाव फैलाने का लगाया आरोप।

कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह की तस्वीर (फोटो साभार: प्रोफेसर अली खान मेहमूदाबाद फेसबुक अकाउंट)
लेखन – हिंदुजा वर्मा
हरियाणा महिला आयोग ने अशोका विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को समन भेजा है। यह समन उनके ऑपरेशन सिंदूर को लेकर दिए गए बयान पर भेजा गया है, जिसे आयोग ने “भारतीय सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों का अपमान करने वाला और साम्प्रदायिक मनमुटाव फैलाने वाला” बताया है।
प्रोफेस्सर महमूदाबाद को 14 मई को हरियाणा महिला आयोग के सामने पेश होने का निर्देश दिया गया है। अली खान मेहमूदाबाद विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख हैं। 8 मई की एक फेसबुक पोस्ट में प्रोफेसर ने दक्षिणपंथी (right winger) विचारधारा या बीजेपी के समर्थको के द्वारा कर्नल सोफ़िया कुरैशी की प्रशंसा करने पर मगर कॉमन मुस्लिन की भीड़ द्वारा मारपीट से हत्या कर देने पर चुप रहने को विरोधाभास बताया था।
उन्होंने ये भी कहा कि क़ुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह द्वारा प्रेस ब्रीफिंग्स की “दिखावट”(ऑप्टिक्स ) महत्वपूर्ण था लेकिन यह दिखावट ज़मीन पर वास्तविकता में तब्दील होनी चाहिए, वरना यह केवल पाखंड होगा।
फेसबुक पोस्ट के शुरुआत में ऑपरेशन सिन्दूर के ऊपर लिखते हुए खान ने ये भी ज़ाहिर किया कि भारतीय सशस्त्र बलों ने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि सैन्य या नागरिक प्रतिष्ठानों या ढांचों को निशाना न बनाया जाए, ताकि युद्ध आगे न बढे | संदेश स्पष्ट है: अगर आप अपनी आतंकवाद समस्या से नहीं निपटते, तो हम निपटेंगे!
हलाकि प्रोफेसर ने भारत के ऑपरेशन सिंदूर को लेकर सैद्धांतिक दृष्टिकोण साफ़ किया और कहा की भारत ने पाकिस्तान के नागरिकों और मिलिट्री को निशाना नहीं बनाया, उसके साथ ही उन्होंने कोई भी युद्ध क्यों ख़राब है इसपर भी अपनी टिपण्णी दी |
पोस्ट में उन्होंने कहा की देश एक नागरिक हमेशा युद्ध में सबसे ज़्यदा प्रभावित होते हैं तो जब आप युद्ध के लिए शोर मचाते हैं या किसी देश को नष्ट करने की बात करते हैं, तो आप असल में क्या माँग रहे हैं? युद्ध में गरीब लोग असामान्य रूप से पीड़ित होते हैं और इसका फायदा केवल राजनेता, राजनैतिक पार्टियां और रक्षा कंपनियाँ उठाती हैं।
प्रोफेसर ने युद्ध के खिलाफ टिपण्णी देते हुए ये भी कहा की नागरिकों की जान का नुकसान दोनों पक्षों के लिए दुखद है और यह मुख्य कारण है कि युद्ध को टाला जाना चाहिए।
“आख़िर में, मुझे यह देखकर खुशी हुई कि इतने सारे दक्षिणपंथी टिप्पणीकार कर्नल सोफिया कुरैशी की सराहना कर रहे हैं। लेकिन क्या वे उतने ही प्रबल रूप से उन लोगों के लिए भी आवाज़ उठा सकते हैं जिनकी भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या कर दी गयी या उनके लिए जो, मनमानी बुलडोज़िंग और भाजपा की नफ़रत फैलाने वाली राजनीति के शिकार हुए हैं — ताकि उन्हें भी एक भारतीय नागरिक की तरह सुरक्षा मिल सके? दो महिला सैनिकों द्वारा ऑपरेशन सिंदूर पर अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करने का दृश्य., लेकिन अगर ये दृश्य ज़मीनी हक़ीक़त में नहीं बदलते तो यह सिर्फ़ पाखंड रह जाएगा। जब एक प्रमुख मुस्लिम नेता ने “पाकिस्तान मुर्दाबाद” कहा और इसके लिए पाकिस्तानी सोशल मीडिया यूज़र्स ने उन्हें ट्रोल किया — तब भारतीय दक्षिणपंथी टिप्पणीकारों ने उनका बचाव करते हुए कहा, “वो हमारे मुल्ला हैं।” यह बात मज़ाकिया लग सकती है, लेकिन ये बात यह भी दिखाती है की भारतीय राजनीति सांप्रदायिकता से कितनी गहराई से प्रभावित है।”
ये प्रोफेसर अली खान मेहमूदाबाद के फेसबुक पोस्ट का एक हिस्सा है जिससे हमने ट्रांसलेट किया है। ओरिजिनल और पूरा पोस्ट देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।
यदि आप हमको सपोर्ट करना चाहते हैतो हमारी ग्रामीण नारीवादी स्वतंत्र पत्रकारिता का समर्थन करें और हमारे प्रोडक्ट KL हटके का सब्सक्रिप्शन लें’