जिला ललितपुर, ब्लाक महरौनी, गाँव खिरिया लटकन्जू इस महिला का कहना है कि हम 15 साल से चकिया काटने का काम कर रहे हैं। और महरौनी और आसपास के गांव जाते हैं। बहुत बुरी स्थिति थी गरीबी थी इसके कारण हमें पत्थर काटना सीखे और हमने अपने मन से ही सीखा। हमें किसी ने नहीं सिखाया ना ही और कोई हमारे परिवार में ये काम करता है।
हमारे अलावा एक काम हम ही करते हैं। एक पत्थर पर 15 मिल जाते हैं और कोई 20 दे देता है 1 दिन में कभी 50 कभी 100 हो जाते हैं इससे ज्यादा नहीं होते हैं। गुजारा तो नहीं चलता लेकिन ठीक है और कोई काम है नहीं मजदूरी करो तो पैसे नहीं मिलते हैं। यह तो ऐसा है कि आजकल लोग तुरंत ही दे देते हैं। पहले ज्यादा लोग पैसे पर आप तो कोई नहीं रख पाता क्योंकि मशीनें चल गई हैं।
जैसे मिक्सी मशीन उस से हर काम होता है। पहले के लोग तो सिलबटना से और दाल पीसते थे अगर कुछ लोग करवाते हैं। कुछ नहीं तो अब हम लोग रोजगार से भी बैठ गए हैं 15 साल से काम कर रहे हैं। हम अपना और अपने परिवार का पूरा खर्च इसी से चलाते हैं। मैं रोने के अलावा आसपास के गांव में जाते हैं जैसे कुआघोसी छायन महरौनी आदि गांव जाते हैं। और कहीं नहीं दूर नहीं जाती क्योंकि साधन की परेशानी और जो पैसा मिलेगा वह पूरा किराए में लग जाएगा तो हमें क्या मिलेगा इसलिए आस-पास के गांव में जाते हैं।