यूं तो सरकार “बोलने के अधिकार” का हवाला देते हुए आम जनता को कहती है कि “जो कहना है कहो” क्योंकि संविधान आपको यह अधिकार देता है। जब अधिकारों के साथ आवाज़ उठाई जाती है तो उसी सरकार द्वारा अभिव्यक्ति की आज़ादी को गैर–कानूनी बताते हुए व्यक्ति को गिरफ़्तार कर लिया जाता है।
24 साल की दलित श्रम अधिकार एक्टिविस्ट और मज़दूर अधिकार संगठन की सदस्य नवदीप कौर को सिर्फ इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्यूंकि वह आवाज़ उठा रही थी।
वह तकरीबन 20 से भी ज़्यादा दिनों से जेल में है। नवदीप और उसका संगठन भी अन्य किसान संगठनों की ही तरह केंद्र के तीन कृषि बिलों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे। दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन के दौरान नवदीप को 12 जनवरी के दिन गिरफ्तार किया गया था। 2 फरवरी को अदालत में पेश होने के बाद उसकी ज़मानत को खारिज़ कर दिया गया।
झूठे आरोपों में किया गया गिरफ्तार
नवदीप की बड़ी बहन राजवीर कौर कहती हैं कि नवदीप को झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया गया है। उनके अनुसार, ‘’जब मैं उनके (नवदीप) गिरफ्तार होने के एक दिन बाद करनाल जेल में उनसे मिलने गई, तो उन्होंने मुझे बताया था कि उनको पुरुष पुलिस अधिकारियों ने बेरहमी से पीटा और उनके प्राइवेट पार्ट्स पर चोट के निशान हैं। हमने तुरंत एक मेडिकल टेस्ट की मांग की, जिसकी रिपोर्ट अदालत में पेश की जाएगी। उस रिपोर्ट का क्या हुआ, इसके बारे में हमें अभी भी पता नहीं है।” वहीं एसपी जशनदीप सिंह रंधावा ने राजवीर द्वारा यौन हमले के सारे आरोपो को बेबुनियाद बताया है।
राजवीर ने बताया, ”28 दिसंबर को, जब वह और मज़दूर अधिकार संगठन के अन्य सदस्य अपने बकाया वेतन की मांग कर रहे थे, तो प्रदर्शनकारियों को निकाल दिया गया। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर एक काउंटर एफआईआर दर्ज कर दी। 12 जनवरी को एक और विरोध प्रदर्शन हुआ, जिसके बाद नवदीप को निशाना बनाया गया, गिरफ्तार किया गया और उस पर हत्या की कोशिश और एक्सटॉर्शन ( ज़बरदस्ती वसूली करना) के आरोप लगाए गए।”
12 जनवरी को, पुलिस द्वारा मज़दूर अधिकार संगठन के सदस्यों को रोके जाने के बाद, नवदीप पर एफआईआर में 50 से 60 पुरुषों के समूह का नेतृत्व करने का आरोप लगाया गया था। राजवीर कहती हैं, “12 जनवरी को मज़दूर अधिकार संगठन के टेंट में घुसने और नवदीप को गिरफ्तार करने के बाद, देर रात तक उसे रखे जाने की जगह के बारे में परिवार के सदस्यों को कोई सूचना नहीं दी गई थी।’’
जाति और आर्थिक पृष्ठभूमि की वजह से लोगों ने साधी चुप्पी – राजवीर
नवदीप पंजाब के मुक्तसर जिले की रहने वाली है। जहां उनकी मां भी पंजाब खेत यूनियन के लिए सक्रिय रूप से काम करती हैं। नवदीप की बड़ी बहन राजवीर कौर कहती हैं, ” नवदीप कौर राजनीतिक रूप से सक्रिय महिलाओं के परिवार से आती हैं। हमारी जाति की स्थिति और हमारे आर्थिक अभाव ने हमें बचपन से सिखाया कि हमें अपने अधिकारों के लिए कैसे लड़ना है। नवदीप अलग नहीं है, वह एक फाइटर है।“
नवदीप अपनी आगे की शिक्षा के लिए पैसा जमा करने के लिए कुंडली औद्योगिक क्षेत्र में अंशकालिक यानी पार्ट–टाइम नौकरी करती थी। इसी दौरान वह मज़दूर संगठन में शामिल हुई और मज़दूरों के हक़ के लिए आवाज़ उठाने लगी। राजवीर का कहना है कि मुख्यधारा की मीडिया और नागरिक समाज नवदीप की गिरफ्तारी पर चुप्पी साधे हुए है। चुप्पी साधने का संबंध सीधे तौर पर उनकी जाति और आर्थिक पृष्ठभूमि है।
इन धाराओं के तहत किया गया गिरफ़्तार
नवदीप पर पुलिस द्वारा दो एफआईआर दर्ज़ की गयी है। पुलिस स्टेशन कुंडली , सोनीपत द्वारा 28 दिसंबर 2020 को एफआईआर नंबर 649 के तहत धारा 148, 149, 323, 384, 506 आईपीसी लगाई गयी है। वहीं 12 जनवरी 2021 को गिरफ़्तारी के बाद उस पर धारा 148,149,323,384,452 और 506 आईपीसी के तहत एफआईआर दर्ज की गयी। एफआईआर को पैसों की वसूली और धमकी देने का आरोप लगाकर लिखा गया।
3 फरवरी को दिल्ली के मंडी हाउस में किसान प्रदर्शन के दौरान राजीव कौर भी मौजूद रही थी। जहां उसके द्वारा अपनी बहन नवदीप कौर की रिहाई को लेकर मांग की गयी थी।
इस तरह से प्रदर्शन के दौरान किसी को भी पुलिस द्वारा गिरफ्तार करने का यह कोई पहला मामला नहीं है। किसान प्रदर्शन के दौरान कई लोगों पर इसी तरह के आरोप लगाकर गिरफ्तार किया गया था। तो क्या हमें इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर चोट पहुंचाना नहीं कहना चाहिए? जहां पुलिस और प्रशासन झूठे आरोपों में प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार कर रही है। क्या अपने हक की मांग करना गैर–कानूनी है?