खबर लहरिया Blog पश्चिम बंगाल विधानसभा में पास हुआ ‘Aparajita Anti-Rape Bill’, मृत्युदंड की मांग के लिए ‘शक्ति बिल’, ‘दिशा बिल’ को भी राष्ट्रपति की मंज़ूरी का इंतज़ार

पश्चिम बंगाल विधानसभा में पास हुआ ‘Aparajita Anti-Rape Bill’, मृत्युदंड की मांग के लिए ‘शक्ति बिल’, ‘दिशा बिल’ को भी राष्ट्रपति की मंज़ूरी का इंतज़ार

पश्चिम बंगाल में ‘अपराजिता एंटी-रेप बिल’ पास होने से पहले साल 2019 में आंध्रप्रदेश में ‘दिशा बिल’ व महाराष्ट्र में ‘शक्ति बिल’ 2020 भी पारित किया गया था जिसमें बलात्कार व सामूहिक बलात्कार जैसे अपराधों के लिए मृत्युदंड की मांग की गई थी।

'Aparajita Anti-Rape Bill' passed in West Bengal Assembly, 'Shakti Bill' Disha Bill awaits for president approval for death penalty

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी राज्य विधान सभा के एक सत्र के दौरान अपराजिता महिला और बाल (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून और संशोधन) विधेयक 2024 पेश करने के बाद बोलती हुईं ( फोटो साभार – पीटीआई फोटो)

पश्चिम बंगाल विधानसभा ने मंगलवार, 3 सितंबर को विपक्ष के समर्थन व सर्वसहमति से ‘एंटी-रेप बिल’ (anti-rape Bill) पास कर दिया है, जिसमें राज्य में बलात्कार करने वालों के खिलाफ मृत्युदंड (capital punishment) की मांग की गई है।

पास किये गए बिल की संवैधानिक वैधता तो है लेकिन इसे पश्चिम बंगाल में कानून बनने के लिए पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और भारत की राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता है।

बिल को ‘अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून और संशोधन) विधेयक 2024 (‘Aparajita Woman and Child Bill (West Bengal Criminal Laws and Amendment) Bill 2024) के नाम से पास किया गया है। कहा गया, इस कानून का उद्देश्य बलात्कार और यौन अपराधों से संबंधित नए प्रावधानों को संशोधित और पेश करके महिलाओं और बच्चों के लिए सुरक्षा को मजबूत करना है।

बता दें, राज्य द्वारा किए गए कोई भी संशोधन जो नए भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) में उल्लिखित दंड से अलग दंड की मांग करते हैं, उन्हें संविधान के अनुच्छेद 254(2) के अनुसार राष्ट्रपति की मंजूरी प्राप्त करनी होती है।

यह प्रावधान राज्य विधानसभाओं को ऐसे कानून बनाने की अनुमति देता है जो समवर्ती मामलों पर केंद्रीय कानून के साथ टकराव करते हैं, बशर्ते ये कानून राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत हों। एक बार मंजूरी मिलने के बाद, संघीय कानूनों से विचलन यानी अंतर होने के बावजूद, राज्य कानून को उस राज्य के अंदर प्राथमिकता दी जाएगी।

हालांकि, ध्यान देने की बात यह है कि संविधान के अनुसार, भारत के राष्ट्रपति के लिए अपनी सहमति देने के लिए कोई समय सीमा या बाध्यता नहीं है।

पश्चिम बंगाल विधानसभा में पारित विधेयक, भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2012 (POCSO) के तहत प्रासंगिक प्रावधानों में संशोधन की मांग करता है, जो सभी उम्र के सर्वाइवर/पीड़ितों पर लागू होगा।

पास किया गया बिल कानून कलकत्ता के आर जी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (R G Kar Medical College and Hospital) में 31 वर्षीय ट्रेनी डॉक्टर के साथ हिंसक रूप से बलात्कार व हत्या के जवाब में सरकार द्वारा पेश किया गया है। मामले में घटना के बाद विरोध प्रदर्शन के दौरान यौन हिंसाओं के खिलाफ सख्त कानून की मांग की जा रही थी।

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अपराजिता महिला एवं बाल विधेयक में क्या है?/ Aparajita Anti-Rape Bill

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, विधेयक मौजूदा कानूनों में कई महत्वपूर्ण संशोधन पेश करता है। जोकि इस तरह से हैं –

📌 बलात्कार के लिए मृत्युदंड (Death Penalty for Rape) : विधेयक में बलात्कार करने वाले अपराधियों के लिए मृत्युदंड का प्रस्ताव है लेकिन तब जब यौन हिंसा के दौरान महिला की मौत हो जाती है या उसे निष्क्रिय अवस्था में छोड़ दिया जाता है।

📌 समयबद्ध जांच और परीक्षण (Time-Bound Investigations and Trials) : बलात्कार के मामलों की जांच प्रारंभिक रिपोर्ट के 21 दिनों के अंदर समाप्त होनी चाहिए। यह पिछले दो महीने की समय सीमा की अवधि से काफी कम है। इसमें विस्तार की भी अनुमति है, लेकिन सिर्फ वरिष्ठ पुलिस अधिकारी द्वारा लिखित स्पष्टीकरण के साथ।

📌 फास्ट-ट्रैक कोर्ट (Fast-Track Courts) : न्याय को सुनिश्चित किया जा सके इसके लिए मसौदा कानून यौन हिंसा के मामलों से निपटने के लिए समर्पित विशेष अदालतों की स्थापना को अनिवार्य करता है।

📌अपराजिता टास्क फोर्स (Aparajita Task Force): विधेयक में जिला स्तर पर एक विशेष टास्क फोर्स के निर्माण का प्रावधान है, जिसका नेतृत्व पुलिस उपाधीक्षक करेंगे। यह टास्क फोर्स महिलाओं और बच्चों के खिलाफ बलात्कार और अन्य अत्याचारों के मामलों की जांच पर ध्यान केंद्रित करेगी।

📌 बार-बार अपराध करने वालों के लिए सख्त दंड (Stricter Penalties for Repeat Offenders): कानून बार-बार अपराध करने वालों के लिए आजीवन कारावास का प्रस्ताव करता है। परिस्थितियों को देखते हुए मृत्युदंड की भी संभावना भी हो सकती है।

📌 विक्टिम के पहचान की सुरक्षा (Protection of Victims’ Identities): विधेयक में महिला के पहचान की रक्षा, कानूनी प्रक्रिया के दौरान उनकी गोपनीयता और गरिमा सुनिश्चित करने का प्रावधान।

📌 न्याय में देरी के लिए दंड (Penalties for Delaying Justice): यह उन पुलिस और स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए दंड का प्रावधान करता है जो तुरंत कार्रवाई करने में असफल रहते हैं या सबूतों के साथ छेड़छाड़ करते हैं। इसका उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया में किसी भी लापरवाही के लिए अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराना है।

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मृत्युदंड की मांग करने वाले ‘दिशा बिल’ व ‘शक्ति बिल’ को भी नहीं मिली स्वीकृति

पश्चिम बंगाल में ‘अपराजिता एंटी-रेप बिल’ पास होने से पहले साल 2019 में आंध्रप्रदेश में ‘दिशा बिल’ व महाराष्ट्र में ‘शक्ति बिल’ 2020 भी पारित किया गया था जिसमें बलात्कार व सामूहिक बलात्कार जैसे अपराधों के लिए मृत्युदंड की मांग की गई थी।

2019 में, वाईएस जगन मोहन रेड्डी (YS Jagan Mohan Reddy) के नेतृत्व वाली वाईएसआर कांग्रेस पार्टी/ YSR Congress Party (युवाजना श्रामिका रैतु कांग्रेस पार्टी) द्वारा आंध्र प्रदेश आपराधिक कानून विधेयक पेश किया गया था, जिसमें बलात्कार और सामूहिक बलात्कार के अपराधों के लिए मौत की सजा का प्रावधान किया गया था।

साल 2020 में विपक्षी भाजपा के समर्थन से, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) ने महाराष्ट्र में ‘शक्ति बिल’ विधेयक पारित किया था।

इन दोनों ही बिलों को आज तक राष्ट्रपति की तरफ से स्वीकृति नहीं मिली है।

आंध्रप्रदेश ‘दिशा बिल’ 2019 | Andhra Pradesh Disha Bill, 2019

एनडीटीवी की मार्च 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, आंध्रप्रदेश विधान सभा ने 13 दिसंबर, 2019 को तथाकथित आंध्र प्रदेश दिशा विधेयक – आपराधिक कानून (एपी संशोधन) विधेयक, 2019 (Andhra Pradesh Disha Bill – Criminal Law (AP Amendment) Bill) जिसे “दिशा विधेयक” (Disha Bill) भी कहा जाता है पारित किया था, जिसमें भारतीय दंड संहिता और आपराधिक प्रक्रिया संहिता में और संशोधन करने की मांग की गई थी। बिल कहता है कि यह विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों की शीघ्र जांच और सुनवाई को सुनिश्चित करेगा, खासतौर पर यौन हिंसा व मृत्युदंड की घोषणा से संबंधित।

इसके साथ ही, राज्य ने एपी दिशा/AP Disha (महिलाओं और बच्चों के खिलाफ विशिष्ट अपराधों के लिए विशेष न्यायालय) विधेयक, 2019 भी पारित किया।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की मार्च 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, दिशा बिल तब आया जब 28 नवंबर, 2019 को कोल्लूर के सरकारी अस्पताल में 26 वर्षीय पशु चिकित्सक दिशा की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी।

आंध्र प्रदेश दिशा बिल के बिंदु –

📌 विधेयक में बलात्कार व सामूहिक बलात्कार के मामलों में जहां पर्याप्त सबूत मौजूद हों, उस मामले में मौत की सज़ा का प्रावधान है।

📌 विधेयक में बच्चों के खिलाफ होने वाले अन्य यौन अपराधों के लिए आजीवन कारावास का प्रावधान है।

📌 विधेयक में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों की स्थापना का प्रावधान है।

📌 विधेयक में महिलाओं और बच्चों के साथ हिंसा करने वाले अपराधियों पर नज़र रखने के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक रजिस्ट्री की स्थापना का प्रावधान है।

📌 विधेयक में जल्द से जल्द परीक्षण का प्रावधान है, जिसमें जांच सात दिनों में पूरी होगी और परीक्षण 14 कार्य दिवसों में पूरा होगा।

📌 विधेयक में प्रावधान है कि सजा के खिलाफ अपील का निपटारा छह महीने के अंदर किया जाना चाहिए।

महाराष्ट्र ‘शक्ति बिल’, 2020 | Maharashtra Shakti Bill, 2020

उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र विधानसभा ने दिसंबर 2021 में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों पर (महाराष्ट्र संशोधन) विधेयक, 2020 को सर्वसम्मति से मंजूर किया था। 2020 का शक्ति आपराधिक कानून (महाराष्ट्र संशोधन) विधेयक आंध्र प्रदेश के दिशा अधिनियम पर आधारित था। विधेयक की प्रमुख विशेषताएं यह हैं –

📌 महाराष्ट्र शक्ति बिल में बलात्कार, सामूहिक बलात्कार और एसिड के उपयोग से गंभीर नुकसान पहुंचाने के लिए मौत की सजा का प्रावधान दिया गया है।

📌 बिल में महिलाओं पर एसिड हमलों और बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के मामलों के लिए न्यूनतम सजा की बढ़ोतरी।

📌 बिल में झूठी या गलत शिकायतों के लिए 1-3 साल की जेल की सजा और 1 लाख रूपये के जुर्माने का प्रावधान है।

📌 बिल में कुछ अपराधों की जांच, सुनवाई और अपीलों के निपटान के लिए कम समयसीमा का प्रस्ताव दिया गया है।

📌 बिल में डिजिटल और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से महिलाओं के खिलाफ अपराध से निपटने के प्रावधानों को शामिल किया गया है।

यौन हिंसा व हत्या को लेकर जो रोष हमने कलकत्ता मामले में देखा, यही गुस्सा व मांग हमने कुछ चयनित अन्य यौन हिंसाओं के मामलों में भी देखा जिसमें से एक साल 2012 का ‘निर्भया’ मामला है।

उस समय भी हिंसा के मामले को बस एक ब्रांड का नाम देकर कहने के लिए महिला सुरक्षा के नाम पर बिल पास कर दिया गया था। प्रदर्शन कर रहे लोगों ने अपराधियों के खिलाफ मृत्यु दंड की मांग की थी, जिसमें सालों बाद 2020 में जाकर 6 आरोपियों से 4 आरोपियों को फांसी की सज़ा सुनाई गई थी।

कलकत्ता मामले को भी तथाकथित ब्रांड बना समाज ने महिला का नाम ‘अभया’ रखा जिसका परिभाषित अर्थ है ‘दुर्गा।’ दिल्ली मामले में यह नाम ‘निर्भया’ था यानी ‘निडर।’ आंध्रप्रदेश मामले में ‘दिशा’ व महाराष्ट्र मामले में ‘शक्ति।’

बता दें, 16 दिसंबर 2012 में दिल्ली की एक 23 वर्षीय छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार के मामले के बाद साल 2013 में ‘निर्भया एक्ट’ (Nirbhaya Act) जिसे आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 (Criminal Law (Amendment) Act) के रूप में भी जाना जाता है, पास किया गया। यह एक भारतीय कानून है जो भारतीय दंड संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) और आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure) में संशोधन करता है।

सरकार बताये, इन सुशोभित नामों वाले एक्ट से क्या हुआ? आज महीनों प्रदर्शन के बाद, लड़ने के बाद, प्रदर्शन के दौरान हिंसा झेलने के बाद ‘अभया’,’अपराजिता’ ‘दिशा’, ‘शक्ति’ इत्यादि नामों की सज्जा कर बस एक और एक्ट बना दिया गया, शांत करने के लिए। आगे क्या? एक और एक्ट? एक और बिल? जिसमें अभी भी आरोपी के खिलाफ इन बिलों में मृत्युदंड की मांग की जा रही है और राष्ट्रपति की तरफ से अब भी कोई जवाब नहीं है……
क्योंकि मामले सिर्फ यही नहीं है, बल्कि कई है। जहां यौन हिंसाएं किसी की जाति,पहचान,लिंग,समाज में उसकी पहचान इत्यादि से जुड़ी हुई है।

पर जवाब कहां है? इंसाफ का क्या पैमाना है? कितना समय? कितना इंतज़ार? कितनी लड़ाई? कितनी जंग? कब तक?

 

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