खबर लहरिया कोरोना वायरस अंधविश्वास की एक और दास्तान, गाँव में पंडा बाबा को अनाज दान कर रहे गरीब परिवार

अंधविश्वास की एक और दास्तान, गाँव में पंडा बाबा को अनाज दान कर रहे गरीब परिवार

बांदा जिले का सबसे आंतरिक और पिछड़े आदिवासी इलाके फतेहगंज क्षेत्र का बघोलन गाँव जो पहाड़ों से घिरा हुआ है। जंगलों के बीच से होकर गुजरने और गाँव तक पहुंचने वाला टेढ़े-मेढ़े, कच्चे-पक्के रास्ते वाला यह गाँव अपने दिन बहुरने की आस में खून के आंसू रो रहा है। यह इलाका आज से कुछ साल पहले डाकुओं का गढ़ माना जाता था।

जहां पर इस समय रोजी-रोटी पाने के लिए लोगों के पास कोई रोजगार नहीं हैं। मनरेगा, खाद्य वितरण प्रणाली जैसी सरकार की तमाम जरूरतमंद योजनाएं दम तोड़ रही हैं। ऐसे में इन ग्रामीणों का रोजगार सिर्फ और सिर्फ जंगल है जो कोरोना के चलते ठप पड़ा है। इन लोगों को थोड़ी राहत इस बात की है कि अभी अभी फसल कट कर घर आई है मतलब कुछ लोग खुद के खेत से तो कुछ खेतों में मजदूरी करके घर में अनाज लाएं हैं। लेकिन ऐसे मौकों की तलाश रोहित शर्मा जैसे कुछ पंडा लोगों को हमेशा रहती है।

गाँव के लोगों के अनुसार पंडा बाबा आपदा में अवसर ढूंढने वापस लौट आए हैं। और बिना किसी हिचक के एक घर के बाहर चबूतरे पर बैठ गए महंत का आसन लगाकर। फिर क्या था लोग भी धर्म के नाम पर अनाज के ऊपर अनाज और साथ में पैसा भी देते चले गए । किसी ने ग्यारह किलो अनाज दिया तो किसी ने इक्कीस किलो और ऊपर से पांच सौ से लेकर पैसों की शुरुवात की। जब पंडा की टीम को लगा कि सब लोग घर से नहीं निकल रहे तो वो लोगों को बुलाने घर-घर भी पहुँच गए। साथ यह भी कहने से नहीं चूके कि जिसकी जितनी मर्जी हो उतना देना। इतना ही नहीं पंडा के साथ दो तीन लोगों की टीम थी। सब लोग अपने निजी साधन जीप से आये थे। साथ में इलेक्ट्रॉनिक तराजू भी लाए थे।

लोग बोरी में और टोकरी में अनाज भर-भरकर ला रहे थे और पंडा की टीम तौलकर अपनी बोरियों में अनाज भरती जा रही थी। अनाज भरने के बाद यह लोग अपनी जीप में बोरियां लाद कर दूसरे गांव भी पहुँच गए। इस मामले को लेकर गांव में कई लोगों से बात हुई। लोगों ने बताया कि पंडा बाबा हर साल फासले कटने के बाद आते हैं। इसी तरह अनाज इकट्ठा करके ले जाते हैं। कभी उनको भंडारा करना होता है तो कभी कीर्तन करनी होती है। लोग भी हर साल इसी तरह अनाज और पैसे देते हैं।

पंडा रोहित शर्मा का कहना था कि वह कोरोना के प्रति लोगों को जागरूक कर रहे हैं। वो बारबार लोगों को मास्क लगाने और घर पर रहने के लिए कहते दिखे लेकिन इस बीच अपना अनाज इकट्ठा करने का काम भी जारी रखा। रोहित ने बताया कि वह कभी कभी लोगों से मिलने जुलने आ जाते हैं। जिसकी जितनी मर्जी हो वह दान भी दे देते हैं। यह एक मन्नत जैसे ही होती है कि जब लोग किसी शुभ कार्य के लिए किसी तीर्थस्थल जाते हैं और वहां पर जो मन्नत मान लेते हैं, इसी प्रकार लोग उनके पास दान देते हैं। तो ये सब देख के बस एक ही ख्याल मन में आता है कि महामारी तो भले हमारा पीछा छोड़ दे, लेकिन इस अंधविश्वास से कैसे पीछा छुड़ाया जायेगा।

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