खबर लहरिया औरतें काम पर पत्रकारिता की स्वतंत्रता के लिए एक अपील 

पत्रकारिता की स्वतंत्रता के लिए एक अपील 

पत्रकार सुप्रिया शर्मा के ख़िलाफ़ ऍफ़ आई आर दर्ज होने पर खबर लहरिया का औपचारिक स्टेटमेंट 

आज ये कोई राज़ नहीं की माहामारी के चलते देश में तबाही मची हुई है। जहां एक तरफ ये कोशिश जारी रही है की न्यूज़ में सिर्फ एक तरह की तस्वीर पेश हो, वहीँ स्वतंत्र मीडिया प्लैफॉर्म्स और पत्रकारों ने सच्चाई दिखाई है। 

ये अब सभीको पता है की किस तरह लॉकडाउन में पलायन मज़दूरों की हालत बहुत बुरी रही है, किस तरह देश के गरीब लोग भूखमरी की कागार पे आ गए।      

हमने भी इस दर्द की ज़मीनी तस्वीर अपनी रिपोर्टिंग के द्वारालगातार दिखाई है। 

सरकार ने इस सब पर चुप्पी साधी है। और जवाब देना दूर, मीडिया पर पाबंदी लगाई हैं, यहां तक की  ऍफ़ आई आर दर्ज किये हैं।

ऐसा ही हाल ही में मुंबई-स्थित स्वतंत्र मीडिया प्लैफॉर्म्स स्क्रोल और उसकी एक रिपोर्टर, एडिटर सुप्रिया शर्मा के खिलाफ आई पी सी धारा २६९ और ५०१ के तहतऍफ़ आई आर दर्ज हुई।   

पत्रकारिता के क्षेत्र में सुप्रिया जानी-मानी और अनुभवी हैं। ज़मीनी रिपोर्टिंग के लिए देश के कई ज़िलों में ट्रेवल करके रिपोर्ट करती आ रही हैं। 

 

कविता शो में कविता ने ख़बर लहरिया के अनुभवों का किया बयां 

 

लॉकडाउन के प्रभाव पर रिपोर्टिंग के लिए सुप्रिया बनारस ज़िले के डोमरी गांव में गई।  यह गांव सांसद आदर्श गाँव योजना के अंतर्गत है, और ज़िले के सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। इस गांव में उन्होंने कई लोगों से बातचीत की, उनके इंटरव्यूज किये, तो ये बात सामने आई की लोगों के पास राशन कार्ड नहीं होने के कारण, कई लोग भूखमरी की कागार पर है। एक महिला, माला देवी की कहानी ख़ास दिल को छू जाने वाली थी, क्योंकि उनकी हालत बहुत खराब थी।  

रिपोर्ट के पब्लिश होते ही, काफी गुस्सा सुप्रिया और स्क्रोल की ओर देखने को मिला। सत्ता में बैठे लोगों को इस तरह की स्वतंत्र पत्रकारिता बिलकुल नहीं रास आती है। जल्द ही माला देवी के स्टेटमेंट में बदलाव आया, और पत्रकार एवं प्लेटफार्म के विरोध में ऍफ़ आई आर दर्ज हुए।

ये तो बस एक एग्जाम्पल है। 

मार्च २०२० से ऐसे ५० से भी अधिक पत्रकार हैं जो स्वतंत्र मीडिया में काम करते हैं, जिन्होंने इस तरह का दबाव महसूस किया है। हाल ही में प्रकाशित एक इंटर-राष्ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार, भारत अब वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम सूची में, १८० देशों में, नंबर १४२ पर है।   

खबर लहरिया की माहामारी से जुडी रिपोर्टिंग भी हाशिये पे रहने वाले लोगों पर केंद्रित रही है। ये तो हमारा काम हमेशा ही रहा है। 

हमने इस सत्ते के खेल को बहुत सालों से देखा है, झेला है। अपने करीब २० सालों के अनुभव के अनुसार, हम ये कह सकते हैं की सत्ता और रिपोर्ट्स के बीच के खेल को हमने बहुत करीब से देखा है, समझा है। हमने ऑनलाइन ट्रोलिंग से लेकर गाली, धमकी, और यहां तक की बंदूकों का भी सामना किया है।  

लेकिन हमने चुप्पी नहीं साधी। हमारा ये प्रयत्न जारी रहा है, हाशिये पर रेहनी वाली आवाज़ों को हम राष्ट्रीय और अंतर-राष्ट्रीय स्तर पर लाते रहेंगे, ये हमने ठान लिया है।

अगर सरकार इस तरह से सबको धमकाने, डराने लगे, तो हम सबको आवाज़ उठानी होगी। फोन उठाओ, ट्वीट करो, जो कर सको वो करो, लेकिन इस मुद्दे को बहुत ज़रूरी समझो। 

हम सुप्रिया और स्क्रोल के साथ हैं, और ये सपष्ट करना चाहते हैं की स्वतंत्रता पत्रकारिता की आवाज़ कभी भी नहीं दब सकती। हम ज़मीनी तस्वीर, और सच्चाई हमेशा दिखाते रहेंगे।  

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