सहायिका सुजीता केवट ने कहा, “अगर सभी लोग अपनी भूमिका अच्छे से निभाएं और एक-दूसरे की सहायता करें, तो बच्चे बहुत उत्साहित रहते हैं आंगनबाड़ी केंद्र आने के लिए। हमारी कोशिश रहती है कि बच्चों को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो और उन्हें ज्यादा से ज्यादा खुश रखा जाए।
रिपोर्ट – संगीता, लेखन – सुचित्रा
आंगनबाड़ी केंद्रों में छोटे बच्चों की देखभाल के साथ उनको शिक्षित किया जाता है। इस केंद्र में 3 साल से लेकर 6 साल तक के बच्चों को पढ़ाया जाता है। आगनबाड़ी के केंद्र में बहुत ही आसान और खेल के माध्यम से बच्चों को सिखाया जाता है, ताकि वह बढ़ती उम्र के साथ बाकी चीजों को भी समझ सके। यूपी के अम्बेडकर नगर जिले के अंतर्गत आने वाले ब्लॉक कटेहरी में एक आंगनबाड़ी केंद्र है। यह आगनबाड़ी केंद्र, हाथ पाकड़ क्षेत्र में है। यह आगनबाड़ी 1998 से चल रहा है।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता इन्द्रू मती तिवारी ने बताया कि हमारे यहां कुल 65 बच्चे हैं। 1 मार्च 2025 की उपस्थिति की बात करें तो 40 बच्चे आए हैं। हालांकि यह गांव क्षेत्र है, फिर भी यहां बच्चों की उपस्थिति अच्छी रहती है। जिले में लगभग दो सौ आंगनबाड़ी केंद्र हैं, लेकिन कुछ ही स्थानों पर बच्चों की उपस्थिति देखने को मिलती है।
आगनबाड़ी में खेल-खेल में पढ़ाई
सहायिका सुजीता केवट ने कहा, “अगर सभी लोग अपनी भूमिका अच्छे से निभाएं और एक-दूसरे की सहायता करें, तो बच्चे बहुत उत्साहित रहते हैं आंगनबाड़ी केंद्र आने के लिए। हमारी कोशिश रहती है कि बच्चों को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो और उन्हें ज्यादा से ज्यादा खुश रखा जाए। हम खेल-खेल में बच्चों को पढ़ाई भी करवाते हैं, जिससे उनका मन आंगनबाड़ी केंद्र में लगा रहे। शुरुआती दौर में बच्चे नहीं आना चाहते थे, लेकिन कुछ हम मेहनत करते हैं और कुछ अभिभावक अपनी भूमिका निभाते हैं। कभी-कभी, अगर हमें थोड़ी भी देर हो जाती है, तो अभिभावक अपने बच्चों को खुद सेंटर तक लाकर छोड़ देते हैं।”
बच्चों के शारीरिक और बौद्धिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका
आगे वह बताती हैं कि, “हमारा समय सुबह 10:00 बजे से दोपहर 2:00 बजे तक होता है। इस दौरान बच्चे हमारे पास रहते हैं। हालांकि छोटे बच्चे होते हैं तो वे शरारत करते ही हैं, लेकिन हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम उन्हें रोककर रखें। तीन साल से छह साल तक के बच्चों का शारीरिक और बौद्धिक विकास बहुत महत्वपूर्ण होता है। यह समय उनके लिए बेहद जरूरी है, ताकि वे आगे चलकर किसी प्रकार के डिप्रेशन में न जाएं। अगर उनकी नींव मजबूत होगी, तो यही बच्चे आगे चलकर कामयाबी और आत्मनिर्भरता की ऊंचाइयों को छू पाएंगे।”
इस आगनबाड़ी में बच्चों ने खेल-खेल में जानवरों की पहचान करना सीख लिया है, जैसे घोड़ा, हाथी, बिल्ली, चूहा, पक्षी आदि। इसके अलावा, बच्चे पेड़-पौधों को भी पहचानने लगे हैं, जैसे आम, बरगद, इमली। बच्चों की मुस्कान से ही यह पता चलता है कि यहां रहकर वे कितने खुश रहते हैं। खिलौनों और तस्वीरों के साथ खेलते हुए बच्चे चीजों को पहचानने में खूब तालमेल बना रहे हैं। इस आंगनबाड़ी केंद्र को देखकर ऐसा नहीं लगता कि यहां पर किसी भी तरह की कमी छोड़ी जा रही है।
अगर इसी तरह की व्यवस्था सभी जगह हो, तो प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को भेजने की क्या जरूरत? वहां तो केवल दिखावा किया जाता है। अभिभावकों का पैसा बर्बाद होता है और बच्चों पर अनावश्यक दबाव डाला जाता है।
बच्चों ने सीखा अक्षर ज्ञान
इन छोटे बच्चों को अच्छे से अक्षर ज्ञान है और वे ब्लैक बोर्ड पर लिखना भी सीख रहे हैं। आजकल लोग पैसे तो खूब खर्च करते हैं और दिखावा भी करते हैं। नामी स्कूलों में बच्चों का नाम भी दर्ज करवाते हैं, ताकि उनका बच्चा बेहतर बने और आगे बढ़े।
बच्चों के स्वास्थ्य का रखा जाता है ख्याल
यहां बच्चों की पढ़ाई के साथ उनके खान पान का भी बखूबी से ध्यान रखा जाता है। खाना जो प्राथमिक विद्यालय में बनता है, वही खाना इन बच्चों को भी दिया जाता है। 2015 के बाद से आंगनबाड़ी के लिए जो राशन सामग्री आई थी, वह बंद कर दी गई। अब प्राइमरी स्कूल के खाते में पैसा आता है और जो भी खाना बनता है, जैसे खिचड़ी, सब्जी, रोटी, हलवा, पूरी, सब्जी, चना का हलवा, वही भोजन के रूप में इन्हें खिलाया जाता है।

आगनबाड़ी केंद्र में दोनों तरफ कतार में बैठे हुए बच्चों और उनके बीच में खाना परोसते हुए सहायिका की तस्वीर (फोटो साभार: संगीता)
इस तरह की सुविधाएँ यदि हर आगनबाड़ी केंद्रों में हो जाए तो लोगों को निजी स्कूलों में बच्चों को भेजने की जरूरत न पड़ें। निजी स्कूलों में एक तो शिक्षा के नाम पर बहुत पैसा लिया जाता है जहां सिर्फ पैसे वाले ही पढ़ सकते हैं ऐसे में सरकारी आंगनबाड़ियों में इस तरह की सुविधाएं माता पिता की चिंताओं को भी करने में मदद करते हैं।
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