23 जुलाई 2024 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में वित्त वर्ष बजट 2024-25 के लिए मनरेगा योजना के लिए 86,000 करोड़ रुपये आवंटित करने की घोषणा की। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट से मिले आंकड़ों की बात करें तो यह पिछले साल के 60,000 करोड़ रुपये के आवंटन से 26,000 करोड़ रुपये अधिक हो सकता है, लेकिन यह पिछले वित्त वर्ष 2023-24 में योजना के वास्तविक व्यय 1.05 लाख करोड़ रुपये से 19,297 करोड़ रुपये कम है। सरकार इस योजना में करोड़ों रुपए लगाती है भी इसका लाभ उन लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है जिनके लिए ये योजना बनाई गई है।
रिपोर्ट – गीता देवी
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत देश में ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को रोजगार देने की गारंटी के तौर पर 2005 में लागू किया गया था। देश में बेरोजगारी का स्तर इतना बढ़ गया है कि रोजगार के लिए गाँव के लोगों को अपना परिवार छोड़ कर बाहर कमाने के लिए जाना पड़ रहा है। सरकार ऐसी योजना ले तो आती है पर इससे क्या सच में लोगों को रोजगार मिल रहा है? क्या सच में इस योजना के लागू हो जाने से रोजगार उन्हें मिल गया? चलिए इसकी गहराई में चलते हैं।
इस साल कल मंगलवार 23 जुलाई 2024 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में वित्त वर्ष बजट 2024-25 के लिए मनरेगा योजना के लिए 86,000 करोड़ रुपये आवंटित करने की घोषणा की। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट से मिले आंकड़ों की बात करें तो यह पिछले साल के 60,000 करोड़ रुपये के आवंटन से 26,000 करोड़ रुपये अधिक हो सकता है, लेकिन यह पिछले वित्त वर्ष 2023-24 में योजना के वास्तविक व्यय 1.05 लाख करोड़ रुपये से 19,297 करोड़ रुपये कम है। सरकार इस योजना में करोड़ों रुपए लगाती है भी इसका लाभ उन लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है जिनके लिए ये योजना बनाई गई है।
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‘हर हाथ को काम दो, काम का पूरा दाम दो’ नारे ने तोड़ा दम
केन्द्र सरकार द्वारा चलाई गई मनरेगा योजना से ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को रोजगार नहीं मिला। उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में तो मनरेगा योजना धरातल पर इस समय दम तोड़ती दिख रही है क्योंकि नरैनी तहसील क्षेत्र के कई गांवों में जॉब कार्ड होने के बावजूद मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है। कुछ गांव तो ऐसे हैं, जहां मजदूरों के काम का भुगतान नहीं किया गया है। इतना ही नहीं कुछ गांव तो ऐसे भी हैं जहां मजदूरों की जगह जेसीबी से काम हुए हैं।
सरकार के उद्देश्यों की पोल खोल रही मनरेगा योजना
पिपराही ग्राम पंचायत के मजरा चौकिन पुरवा के रामहित कहते हैं कि “गरीब और मजदूर वर्ग के लोगों के लिए मनरेगा इस समय बहुत खराब है। आए दिन मनरेगा मजदूर अपनी शिकायत लेकर अधिकारियों की चौखटों के चक्कर लगाने को मजबूर हैं। कहीं मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है तो कहीं पर उनके द्वारा किए गए काम का उन्हें भुगतान नहीं मिल रहा। ग्राम प्रधान और सचिव की मिलीभगत के चलते यह योजना जमीन पर खरी नहीं उतर पा रही है, या ये कहा जाए कि सरकार ने जिस उद्देश्य से इस योजना को शुरू किया था, उसका जिले में बैठे जिम्मेदार अधिकारी सही से पालन नहीं कर पा रहे हैं। गांव में लोग काम करना चाहते हैं, बाहर रह के कमाने में अपने परिवार की चिंता रहती है। यहां रोजगार नहीं है इसलिए उन्हें मज़बूरी में बाहर जाना पड़ता है। ग्रामीण लोग काम के इच्छुक होने के बावजूद भी बेरोजगार बैठे हैं। अगर मनरेगा का काम चालू हो जाता तो शायद लोगों को सब्जी-भाजी के लिए ही सही रोजगार तो मिलने लगता।”
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मजदूरों के बजाय जेसीबी से हो रहा है काम
हलवाई पुरवा गांव की रहने वाली राजाबाई कहती हैं, “इस पंचवर्षीय तो उनको मनरेगा का काम मिला ही नहीं, पर पिछले पंचवर्षीय मनरेगा में काम किया था। हमारे जॉब कार्ड में अभी तक जो काम किया है उसका पैसा नहीं आया है। हम लोगों ने मनरेगा के तहत खंती खोदने का काम किया था। यहां सभी लोग मजदूर हैं और सब काम करना चाहते हैं, लेकिन प्रधान उनके गांव का विकास तो करता ही नहीं है। प्रधान उनको रोजगार भी नहीं देता जॉब कार्ड बने हुए हैं लेकिन जब काम नहीं मिलता तो ऐसे जॉब कार्ड का क्या फायदा है।अभी हाल ही में उनके गांव के पास खेतों में बंधी डली है जोकि जेसीबी से प्रधान द्वारा डलवा दी गई है। मनरेगा का काम है, तो मजदूर से होना चाहिए था।”
हलवाई पूरवा के रामप्रकाश ने भी कहा कि, “सरकार ने भले ही मजदूरों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए योजना चलाई थी ताकि उनको अपने ही गांव में काम मिल सके और पलायन भी रुक सके लेकिन पलायन रुका नहीं और बढ़ गया है। जो काम मजदूरों से करवाना चाहिए ताकि हमें रोजगार मिले अब वो काम जेसीबी कर रही है क्योंकि काम जल्दी हो जाता है और कम पैसे में हो जाता है। ऐसा करने से प्रधानों और सचिवों की बचत होती और बाद में पैसे मजदूरों के द्वारा कम दिखाकर निकाल दिए जाते हैं। इसकी शिकायत भी उन्होंने कई बार की पर कोई सुनवाई नहीं हुई इसलिए मन मार कर बैठ गए हैं। उनके बच्चे बाहर जाते हैं जो काम करते हैं तो पैसे भेजते हैं उसी से अपना खर्चा चलाते हैं और बेलदारी का काम कहीं लग गया तो कर लेते हैं।”
मजबूरी में करते हैं पलायन
उर्मिला कहती हैं कि अगर यहां काम मिलता तो हमारे लड़का-बहूं गांव छोड़कर क्यों जाते? जब गांव में काम नहीं मिला तो हमारे बच्चों जैसे गांव के बहुत से लोग कमाने के लिए बाहर शहरों में चले गए। उन्हें अपना घर-द्वार छोड़ने का कोई शौक नहीं है, भले ही दो-पैसा कम मिले लेकिन अपनों का साथ तो रहता है, पर काम नहीं मिलता। गांव घर छोड़ना पड़ता है, क्योंकि यहां पर कोई रोजगार का जरिया नहीं है। रोजी-रोटी की तलाश के लिए कहीं भी जाना पड़े पेट तो भरना ही पड़ेगा, काम तो करना ही पड़ेगा।”
मनरेगा जॉब कार्ड पड़ा है कोरा
लोगों ने यह भी बताया कि उनके जॉब कार्ड सादे रखे हुए हैं पहले भी जब उनको काम मिला है, तो जॉब कार्ड में ना तो हाजिरी भरी गई है और ना उनका नया बनाया गया है। जब यह योजना शुरू हुई थी तो लोगों को बहुत उम्मीद थी कि जो लोग परदेस नहीं जाना चाहते या नहीं जा पाते, वह लोग कम से कम गांव में रहकर इस योजना के तहत काम करेंगे और दो पैसे कमा कर अपने परिवार का खर्चा चलाएंगे। सरकार ने उस उम्मीद में भी पानी फिर गया है। साल में 100 दिन मिलने वाला रोजगार भी नहीं मिल पा रहा।”
शिकायत मिलने पर की जाएगी जांच
नरैनी वीडियो प्रमोद कुमार से जब इस बारे में बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि, “मनरेगा का काम फिलहाल तो अभी बंद है लेकिन काम होता रहता है। काम की योजना प्रधान और सचिव ही मिलकर बनाते हैं और वही बजट आवंटित करवाते हैं। उनके यहां से कुछ भी नहीं है जो भी मजदूर काम करते हैं, सीधे ऊपर से उनके खाते में पैसा आता है। अगर कहीं पर ऐसी स्थिति है और शिकायत मिलती है तो वह जांच कराएंगे लेकिन फिलहाल अभी तक उनके यहां ऐसी कोई शिकायत नहीं आई है।
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