बिहार के पटना में स्थित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज पटना (एम्स पटना) / AIIMS Patna में प्रमुख रूप से लोग अपने स्वास्थ्य से सम्बंधित और रोगों का इलाज करवाने आते हैं। यह अस्पताल होने के साथ-साथ मेडिकल कॉलेज और मेडिकल रिसर्च पब्लिक यूनिवर्सिटी है। एम्स पटना का आधिकारिक उद्घाटन समारोह 25 सितंबर 2012 को हुआ था। इसमें बिहार और अन्य राज्यों से भी लोग अपना इलाज कराने आते हैं। बिहार में इसके खुलने से लोगों को काफी सुविधा हुई है तो चलिए इसके बारे में और जानकारी जानते हैं। एम्स पटना की कुछ तस्वीरों के माध्यम से हम इसके बारे में जानते हैं। यह पटना शहर से 8 किमी दूर, भुसुला गांव में स्थित है, और फुलवारी शरीफ में वाल्मी इंस्टीट्यूट (संस्थान) के पास इसका परिसर है।
एम्स पटना के मुख्य द्वार और लोगों की आवाजाही की तस्वीर
एम्स में अंदर जाने का रास्ता और साथ ही ओपीडी की बिल्डिंग की तस्वीर
पटना के एम्स हॉस्पिटल में सुबह 7 बजे से ही लोगों का आना शुरू हो जाता है ताकि उनका इलाज समय से हो पाए। पटना एम्स अस्पताल में ऑटो हमेशा अस्पताल के गेट के पास की साइट पर लगते हैं ताकि पैदल चलने वाले व्यक्तियों को कोई दिक्कत न हो। अस्पताल के मुख्य गेट के सामने सड़क पर अक्सर पानी जमा रहता है, जबकि साइड की सड़क पर कचरा और गंदगी फैली रहती है, जिससे पैदल चलने में असुविधा होती है। यदि आप फोटो में देखेंगे, तो आपको साफ नजर आएगा कि साइड में पानी और कचरा होने के कारण लोग वहीं से गुजरने को मजबूर होते हैं।
अस्पताल के मुख्य द्वार के बाहर जमे हुए पानी, कचरे और ऑटो की तस्वीर
रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया और समय
इस अस्पताल में इलाज मिलने की प्रक्रिया इतनी सरल नहीं है। मरीज और उनके परिवार के लोग सुबह 7 बजे ही अस्पताल आते हैं, क्योंकि यहां इलाज कराने के लिए सबसे पहले रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है। यह रजिस्ट्रेशन काउंटर सुबह 9 बजे ही खुलता है, लेकिन जल्दी नंबर पाने के लिए लोग 7 बजे से लाइन में लग जाते हैं
एम्स अस्पताल बहुत बड़ा है, और यहाँ इलाज करवाने के लिए विभिन्न जिलों से लोग आते हैं। रजिस्ट्रेशन के लिए 7 से 8 काउंटर होते हैं, जिनमें सिर्फ और सिर्फ रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया होती है।
हर काउंटर पर सुबह 7 बजे से ही कम से कम 30 से 40 व्यक्ति लाइन में लगे होते हैं। यह स्थिति लगातार बनी रहती है, क्योंकि हर 5 मिनट में 30 से 40 और लोग लाइन में जुड़ते रहते हैं। लाइन लगभग 12 बजे तक इसी तरह लगी रहती है।
रजिस्ट्रेशन पंजीकरण के लिए लगी लाइन की तस्वीर
महिलाओं के लिए अलग लाइन
रजिस्ट्रेशन (पंजीकरण) के लिए महिलाओं के लिए एक अलग लाइन होती है, जिसमें सबसे ज्यादा भीड़ रहती है। क्योंकि महिलाओं के लिए केवल एक ही लाइन होती है, यह लाइन बहुत लंबी हो जाती है।
रजिस्ट्रेशन (पंजीकरण) के लिए महिलाओं की लम्बी लाइन। लम्बी लाइन को सीधी करते हुए गार्ड की तस्वीर
यह बिलिंग का काउंटर है, जहाँ पर लोगों की लाइन सुबह 8:00 बजे से लेकर शाम 4:00 बजे तक लगी रहती है। यहां पर बिलिंग की प्रक्रिया होती है। पहले मरीज को डॉक्टर के पास जाना होता है, जहां वह अपना चेकअप करवाते हैं। डॉक्टर के द्वारा जो टेस्ट लिखे जाते हैं, वह ऑनलाइन सिस्टम के जरिए अपलोड हो जाते हैं। इसके बाद मरीज बिलिंग करके कागज प्राप्त करता है और फिर आगे की प्रक्रिया शुरू होती है।
बिलिंग काउंटरमें लगे लोगों की तस्वीर
खून जाँच केंद्र
यहां पर ब्लड टेस्ट, एक्स-रे, और कई अन्य मेडिकल टेस्टों के लिए भी बिलिंग होती है। इस काउंटर पर बहुत ज्यादा भीड़ रहती है, और लोग लाइन में खड़े होकर परेशान हो जाते हैं, क्योंकि काउंटर पर सीमित संख्या में नंबर होते हैं। हालांकि, अगर एम्स अस्पताल में किसी का कोई परिचित, गार्ड या स्टाफ सदस्य हो, तो उनके माध्यम से नंबर जल्दी लग सकता है।
यहां पर जो ब्लड टेस्ट होते हैं, उनमें कुछ टेस्ट ऐसे होते हैं, जिनके लिए मरीज को खाली पेट आना होता है। गेट के बाहर ही लोग दरवाजा खुलने का इंतजार करते हैं। यहां आने के लिए लोग अपने साथ बैग या थैला लेकर आते हैं क्योंकि उनका पूरा दिन इसी प्रक्रिया में लग जाता है।
लम्बी प्रक्रिया से लोग परेशान
खून जाँच के लिए दरवाजा सुबह 8 बजे खुलता है। इसके लिए भी टोकन लेना पड़ता है और लाइन लगानी पड़ती है। बाहर बैठे लोग ताला खुलने के बाद कमरे में जाकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं। खून जाँच के लिए कमरे के अंदर बारी बारी से जाना पड़ता है। यह प्रक्रिया 9 बजे से शुरू हो जाती है।
रक्त जाँच केंद्र का दरवाजा खोलते हुए गार्ड की तस्वीर
नीचे बैठी कुसुम जो की अपना इलाज करवाने के लिए यहां पर सुबह 7:00 बजे से बैठी है। उसका कहना है कि “एक दिन पर्चा कटवा के डॉक्टर को दिखाओ, दूसरे दिन ब्लड टेस्ट करवाने के लिए दौड़ो। फिर नहीं हुआ तो तीसरे दिन आना पड़ता है। आज सुबह 7:00 से बैठी हूं कि आज ब्लड टेस्ट हो जाए फिर इसके बाद में देखिए कब रिपोर्ट मिलती है? फिर दोबारा कब डॉक्टर मुझे देखता है क्योंकि एक बार का बैठा हुआ डॉक्टर, तीसरे चौथे दिन ही मिलता है और जब रिपोर्ट मिलेगी तो जरूरी नहीं कि उसे दिन वह डॉक्टर बैठे।”
यहां इलाज के लिए समय होना जरुरी शैलेंद्र, जो अपने पिताजी का इलाज करवाने अस्पताल आए थे, ने बताया कि “यहाँ आकर इलाज करवाने के लिए काफी समय की आवश्यकता होती है। जिसके पास खाली समय है, वही व्यक्ति यहाँ इलाज करवा सकता है, क्योंकि यहाँ इलाज में बहुत समय लगता है। सुबह आया हुआ हूँ और शाम हो जाती है, फिर भी सारी रिपोर्ट्स तैयार नहीं होतीं। डॉक्टर ने आज देखा भी नहीं जो डॉक्टर आज बैठे हैं, वे तीन दिन बाद रिपोर्ट देखेंगे। रिपोर्ट जल्दी मिल जाए और डॉक्टर जल्दी देख लें, इसके लिए बहुत से लोग बाहर से टेस्ट करवाने के लिए मजबूर हैं।
अल्ट्रासाउंड को लेकर ज्यादा परेशान
सबसे बड़ी समस्या अल्ट्रासाउंड को लेकर है। यहाँ हर व्यक्ति को जो अल्ट्रासाउंड के लिए डेट मिलती है, वह तीन महीने बाद की होती है। चाहे इंसान कितने ही दर्द में क्यों न हो, उसे बाहर से अल्ट्रासाउंड करवाना पड़ता है क्योंकि अस्पताल के अपने नियम हैं, जिनके अनुसार वे नहीं चलते। इससे आम जनता को काफी परेशानी होती है। अंदर अल्ट्रासाउंड 300 रुपये में होता है, जबकि बाहर वही अल्ट्रासाउंड 1500 रुपये में। इससे लोगों को लगता है कि जब हर चीज बाहर से ही करवानी है तो क्यों न सीधे प्राइवेट अस्पताल में इलाज करवा लिया जाए। लेकिन जब मामला ज्यादा गंभीर होता है, तो लोग AIIMS में ही आते हैं, क्योंकि यहाँ का इलाज अच्छा होता है।”
बड़े-बड़े सरकारी अस्पताल ऐसे तो लोगों के लिए बनाए गए हैं जहां अच्छा और सस्ता इलाज हो सके। इन अस्पतालों में भी बीमार व्यक्ति को कई दिनों, महीनों तक का इंतजार करना पड़ता है क्योंकि पहले से ही अपॉइंटमेंट ऑनलाइन बुक होते हैं ऐसे में जिन्हें ऑनलाइन की जानकारी नहीं होती उनको और इंतजार करना पड़ता है। अस्पताल की बिल्डिंग देखने में अच्छा तो तो लगता है और उम्मीद भी रहती है कि यहां इलाज हो जायेगा, पर इसके लिए लोगों को खुद का, परिवार वालों का इलाज करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
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