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आखिर क्यों होता है लाश पर समझौता

लाश पर समझौता :महिलाए के ससुराल मर जाने पर अक्सर माइका पक्ष ससुरालियों पर पर हत्या का आरोप लगाते रहे हैं जिस टाइम लडकी की मौत ससुराल मे होती है उस समय माइका पक्ष बहुत सारे आरोप लगाते हैं और इन्साफ । की बात करते हैं लेकिन बात भी सही है जिस बेटी को मां बाप पाल पोस कर बडा करते हैं और फिर शादी मे अपनी हैसियत के मुताबिक दान दहेज देकर दुसरे हवाले कर देते इस उम्मीद के साथ की उनकी बेटी को वो दूसरा परिवार खुश रखेगा

जिसके साथ शादी के बंधन मे बांध दिया वो उसका पूरा ख्याल रखेगा लेकिन बहुत सी लडकियां ससुराल मे नही खुश रह पाती उनसे जहेज की मांग और की जाती पैसे की मांग की जाती है उनके साथ शारारिक मानसिक हिंसा हर तरह से उन्हें परेशान किया जाता है वही लडकियां ये मां बाप को दूखी नहीं करना चाहती इसलिए वो सहती है और कभी ससुराल पक्ष के दबाव मे मांग भी करती हैं और हमेशा लाश पर समझौता करना होता है
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माइका पक्ष अर्थिक रूप से कमजोर है तो वो उनकी मांगें नहीं पूरी कर सकते अगर कर दी तो मांगे और बढती हैं अक्सर लडकियां जब अपने माइके की स्तिथि देख कर कुछ नहीं कह पाती और हिंसा सहते सहते आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाती हैं और उसके बाद माइका पक्ष हर हाल मे इन्साफ की बात करते हैं धरना प्रदर्शन करते हैं थाने कोतवाली एस पी आफिस के चक्कर काटते है कुछ दिनो बाद कुछ रिश्तेदार कुछ समाज के ठेकेदार मिल कर समझौता का दबाव डालते हैं कारण जो भी हो ऐसे ही आफ कैमरा लोगो ने बहुत कुछ बताया कानून अंधा है कानून महगा है

.समय बहुत लगता है केस लडते लडते चप्पल घिस जाती हैं और इन्साफ नेही मिलता माइका पक्ष अर्थिक रुप से कमजोर होता है इसलिए नहीं लड पाते मजदूर लोग हैं मजदूरी छोडकर जाएंगे तो खाएंगे क्या इतने कारडो के बाद या हर परिवार मे ये कारण भी नहीं होते वो भी जिस बेटी के मौत के बाद रोते बिलखते नजर आते हैं लगता है कितने दूखी हैं आखिर इनकी बेटी ने आत्महत्या की कर ली या उसकी हत्या हो गई ये अपनी बेटी क मौत का सौदा कैसे कर सकते हैं कैसे कोई अपनी जिगर के टुकडे की मौत के बाद वो जिस पर आरोप लगा रहे हैं उन आरोपियों को कैसे छोड देंगे हर केस मे ज्यादातर समझौता ही हो रहा है