पीएम ने कभी मणिपुर में हो रही हिंसा को करीब से देखा होता तो उन्हें पता होता कि राज्य में जो शांति है वह उनकी चुप्पी की है, उन बातों की है जो देश के पीएम होने के नाते उन्हें कहनी चाहिए थी।
पीएम मोदी देशवासियों को “परिवारजन” कह अपनी नाकामियों को बखूबी छिपाने का हुनर रखते हैं। अब इसमें देश में हो रही भिन्न-भिन्न प्रकार ही हिंसाएं हो या फिर उनकी सत्ता का प्रचार, सब शामिल है। परिवार भावनाओं से भरा होता है और अकसर भावनाओं में बह जाता है – यह समाज हमेशा से कहता आया है।
बस इन्हीं भावनाओं का सहारा लेते हुए पीएम मोदी ने 77वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से भाषण देना शुरू किया जिसमें उन्होंने मणिपुर में पिछले कई महीनों से चली आ रही जनजातीय हिंसा की बात रखते हुए अपनी सरकार की बढ़ाई भी कर दी। हालिया मामलों में जहां मुस्लिमों को टारगेट करते हुए जो उनके साथ हिंसाएं की जा रही हैं, पूरे भाषण में उन्होंने इस बारे में कुछ नहीं कहा। वैसे मणिपुर वाले मामले में भी लगभग 80 दिनों बाद इस बारे में पीएम का कहने का मन बना था।
मणिपुर जनजातीय हिंसा मामले को लेकर पीएम कहते, “नार्थईस्ट में विशेषकर मणिपुर में जो हिंसा का दौर चला, कई लोगों को अपना जीवन खोना पड़ा, माँ-बेटियों के सम्मान के साथ खिलवाड़ हुआ है लेकिन कुछ दिनों से शांति की खबरें आ रही हैं। देश मणिपुर के साथ है।” उन्होंने लोगों से शांति से समाधान निकालने को कहा और कहा कि राज्य व केंद्र सरकार इसके लिए काम करेगी।
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पीएम ने कभी मणिपुर में हो रही हिंसा को करीब से देखा होता तो उन्हें पता होता कि राज्य में जो शांति है वह उनकी चुप्पी की है, उन बातों की है जो देश के पीएम होने के नाते उन्हें कहनी चाहिए थी। हिंसाएं तो लगातार हो रही है और ज़रिया बनाया जा रहा है “महिलाओं के शरीर को।” पिछले महीने भी जब पीएम ने मणिपुर को बात रखी तो उसमें भी उन्होंने “माँ-बेटियों-बहनों” शब्दों का इस्तेमाल कर जताया कि उन्हें कितना दुःख है। अब क्योंकि ये शब्द समाज के लिए उनकी भावनाओं और इज़्ज़त से जुड़े हुए तो थोड़ी संवेशीलता बटोरने के लिए उन्हें इन शब्दों का उपयोग तो करना ही है।
वैसे उनके दुःख जताने से कोई बदलाव नहीं हुआ। ये दुःख तो पूरा देश दिखा रहा है पर जनता दुःख से ज़्यादा समाधान देखना चाहती है अपने पीएम से। अगर थोड़ा शुरू में शोक जताते, कदम उठाते तो शायद हिंसा की आग, शायद उतनी नहीं होती। लोगों को अपने घर नहीं छोड़ने पड़ते, जान नहीं गंवानी पड़ती।
दुःख जताने के बाद खुद की सरकार की सत्ता को भी तो दिखाना है ताकि जनता को पता रहे कि उन्हें चुप रहना है ठीक उसी तरह जिस तरह से वे गंभीर मामलों में बोलने की जगह चुप रहते हैं। भाषण में एक जगह पीएम ने कहा “अगले साल मैं फिर आऊंगा” और विपक्ष को “परिवारवाद” से संबोधित करते हुए कटाक्ष किया। 2024 के लोकसभा चुनाव को उन्होंने देश में फैली “बुराइयों” (विपक्ष की सरकार) के रूप में बताया और लोगों से जागने को कहा।
वैसे तो सही में लोगों को जागने की ज़रूरत है नहीं तो सच में देश में जो हो रहा है वह देखा नहीं जाएगा- पीएम ने कहा तो मानना तो पड़ेगा ही। जनता की बात का क्या है – जैसे वो मुख्यधारा की मीडिया वाले कहते हैं न “बॉस” तो फिर बॉस के सामने जनता क्या है? जनता ही जीने में थोड़ी कटौती कर ले पर पीएम की बात को टालना, बिलकुल भी नहीं। पीएम बात सुनने के लिए बाधित नहीं है पर जनता है।
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अब इसमें आप वोट को भी गिन सकते हैं। आजकल जनता तय नहीं करती कि उसे किसे जिताना है बल्कि सरकार यह तय करती है कि उसे कहां से वोट बटोरने है। शायद इसका भी आंकलन सत्ता की सरकार ने पहले ही कर लिया है तभी तो पीएम मोदी बड़े आत्मविश्वास से अगले साल भी सत्ता में आने की बात कर रहे हैं। ये कहना हर किसी के बस की बात नहीं, क्योंकि ये तो “मोदी वाला इंडिया” है, जिसकी सत्ता है उसका भारत है, देशवासियों का नहीं।
भाषण में पीएम ने महंगाई, अर्थव्यवस्था, लोकतंत्र, विभिन्नता, जनसांख्यिकी की भी बात रखी। विश्व में सबसे ज़्यादा जनसंख्या वाला देश होने पर खुशी से कहा कि ‘हमारा देश विश्व में सबसे ज़्यादा जनसंख्या वाला देश’ है पर ये नहीं कहा कि जनसंख्या बढ़ने से कितनी बेरोज़गारी है।
जुलाई के लिए सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों का संदर्भ देने वाली ब्लूमबर्ग की हालिया रिपोर्ट कहती है कि जुलाई 2023 तक भारत में कुल बेरोज़गारी दर 7.95 प्रतिशत है।
अब आंकड़े चाहें जो भी कहे, तथ्य चाहें कुछ भी कहे, अगर ये कहा गया है कि कहीं शांति है तो वह है, विपक्ष बुराइयों से भरा है तो वह है, देश उनका परिवार है तो है, इसमें जनता कोई सवाल न करे। जनसंख्या ज़्यादा है तो क्या हुआ, अच्छी बात है। अधिक जनसंख्या मतलब ज़्यादा वोट, बाकी सब जो देश में चल रहा है, वो तो बढ़िया है ही अगर कुछ बढ़िया नहीं है तो विपक्ष की गलती।
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