हिंदी लेखक और निबंधकार कृष्णा सोबती का शुक्रवार को 93 साल की उम्र में निधन हो गया है।
साहित्य अकादमी पुरुस्कृत कृष्णा सोबती को “मित्रो महाराजानी, दार से बिच्चुरी, सूरजमुखी अँधेरे की और यारों के यार” जैसे कई उपन्यासों के लिए जाना जाता है।
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, कृष्णा ने आज सुबह दिल्ली के एक अस्पताल में अपने अंतिम पल जिए, जहां उन्हें पिछले दो महीने से भर्ती कराया गया था।
अशोक माहेश्वरी, उनके मित्र और राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक के अनुसार वो पिछले एक हफ्ते से वह आईसीयू में ही भर्ती थी। बेहद बीमार होने के बाद भी, उन्हें अपने विचारों और समाज में हो रही सभी गतिविधियों का अंदाज़ा था।
2017 में, भारतीय साहित्य में उनके योगदान के लिए, उन्हें देश के सर्वोच्च साहित्य सम्मान, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था।
1925 में गुजरात, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के एक वर्तमान प्रांत में जन्मी, कृष्णा को बाद में दिल्ली और शिमला लाया गया था।
साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता इस लेखक को पद्म भूषण भी प्रदान करे जाना का अवसर प्राप्त हुआ था, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया था।