अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2023 में दुनिया में बेरोज़गार लोगों की संख्या 3 मिलियन (30 लाख) से बढ़कर 208 मिलियन (20.8 करोड़) होने की उम्मीद है – बेरोजगारी दर में 5.8 प्रतिशत की वृद्धि। रिपोर्ट में यह बात भी जोड़ी गयी कि मुद्रास्फीति वास्तविक मज़दूरी खा जाएगी।
2023 में रोज़गार को लेकर संयुक्त राष्ट्र एजेंसी की नवीनतन रिपोर्ट ने नौकरी क्षेत्र को लेकर एक चिंताजनक पूर्वानुमान लगाया है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ( International Labour Organization) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार यह आंकलन किया गया है कि इस साल बेरोज़गारी दर में भारी वृद्धि होगी।
रोज़गार, हर देश या कहें पूरे विश्व के लिए हमेशा से ही समस्या रहा है। वहीं भारत में अगर बेरोज़गारी की समस्या की बात की जाए तो भारत भी इस परेशानी से दशकों से जूझ रहा है। रोज़गार के नए अवसर भी बेरोज़गारी को कम करने के लिए काफी नहीं दिखे हैं। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का यह अनुमान कि इस साल बेरोज़गारी दर में और भी ज़्यादा बढ़ोतरी होगी, यह पूरे विश्व के लिए एक भयावह खबर है। हमने पहले ही कोरोना की वजह से कई लोगों को बेरोज़गार होते हुए देखा। यह महामारी अभी भी ज्यों की त्यों बनी हुई है।
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विकास दर 1 प्रतिशत धीमा होने की उम्मीद
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की रिपोर्ट में कहा गया कि यूक्रेन में हुए युद्ध से आर्थिक पतन, उच्च मुद्रास्फीति और कठोर मौद्रिक नीति (tighter monetary policy) की वजह से इस साल विकास दर में 1 प्रतिशत धीमा होने की उम्मीद है। इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने नौकरी के पिछले अनुमान में से 1.5% की कमी का अनुमान लगाया है।
208 मिलियन लोगों का है बेरोज़गार होने का अंदाजा
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 2023 में दुनिया में बेरोज़गार लोगों की संख्या 3 मिलियन (30 लाख) से बढ़कर 208 मिलियन (20.8 करोड़) होने की उम्मीद है – बेरोजगारी दर में 5.8 प्रतिशत की वृद्धि। रिपोर्ट में यह बात भी जोड़ी गयी कि मुद्रास्फीति वास्तविक मज़दूरी खा जाएगी।
लाइव मिनट की प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया कि “वैश्विक बेरोज़गार में मंदी होने का मतलब है कि हम 2025 से पहले कोविड-19 के दौरान हुए नुकसान की भरपाई की उम्मीद नहीं करते हैं।”- आईएलओ के अनुसंधान विभाग के निदेशक और इसकी नई प्रकाशित रिपोर्ट के कोर्डिनेटर रिचर्ड सैमन्स ने कहा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि, “जैसे ही कीमतें नाममात्र श्रम आय की तुलना में तेज़ी से बढ़ती हैं”, जीवनयापन की लागत से संबंधित संकट विकसित होगा और अधिकतर लोगों को गरीबी की ओर धकेल देगा।
आईएलओ ने कहा कि अगर वैश्विक अर्थव्यवस्था धीमी होती है तो स्थिति और खराब हो सकती है।
वैश्विक रोज़गार में सिर्फ 1% वृद्धि का अनुमान
आईएलओ के डायरेक्टर जनरल गिल्बर्ट होंगबो ने कहा कि कोविड-19 महामारी से उभरना विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में कम था और वह आगे जलवायु परिवर्तन और मानवीय चुनौतियों से भी बाधित हुआ।
पिछले साल वैश्विक रोज़गार में 2.3% की वृद्धि हुई थी लेकिन इस साल सिर्फ 1 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है। वहीं 3.4 बिलियन लोगों के पास काम होगा।
वैश्विक नौकरियों में दिखा बड़ा अंतर
यह भी बता दें कि 2022 में वैश्विक नौकरियों का अंतर 47.3 करोड़ रहा।
इस संख्या में बेरोज़गार और वे लोग शामिल हैं जो काम चाहते हैं लेकिन नौकरी की तलाश नहीं कर रहे हैं या तो कोशिश करने के बावजूद भी नाकामयाब हुए लोग हैं या जिन पर देखभाल की ज़िम्मेदारियों जैसे अन्य दायित्व हैं।
अनौपचारिक रोज़गार में बढ़ोतरी
आईएलओ ने अपनी रिपोर्ट में आगे कहा कि “मौजूदा मंदी का मतलब है कि कई श्रमिकों को कम गुणवत्ता वाली नौकरियां स्वीकार करनी होंगी, कई बार बहुत कम वेतन व कभी-कभी अपर्याप्त घंटों के साथ।”
आगे बताया कि 15 से 24 वर्ष की आयु के लोगों को बेहतर रोज़गार खोजने में “गंभीर कठिनाइयों” का सामना करना पड़ रहा है।
यह भी बताया कि 2022 में दुनिया भर में लगभग दो बिलियन कर्मचारी अनौपचारिक रोजगार में शामिल थे।
अब अंत में सवाल यही है कि आईएलओ द्वारा दी गयी पूर्वानुमान रिपोर्ट को लेकर सभी देशों की प्रतिक्रिया रहती हैं व वे बेरोज़गारी से निपटने के लिए कौन से कदम उठाते हैं।
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