अजय गढ़ कृषि कार्यालय में सुबह 11:30 बजे ऐगरीकल्चर एवं जलवायु परिवर्तन पर आधारित एक परियोजना का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम किसानों के हित एवं योजनाओं से जुड़ी बातों को समझने के लिए रखा गया था, जिसमें किसानों और ग्राम पंचायत के सरपंच, सचिव और अधिकारी के समक्ष सभी लोगों को योजनाओं से अवगत कराया गया और उन्हें बताया गया कि किस प्रकार से वह योजनाओं का लाभ उठा सकते हैं। इस कार्यक्रम में अधिकारियों के साथ–साथ किसान भी मौजूद रहे।
आई.जी.एस.एस.एस के आयोजक जावेद शेख ने बताया कि यह कार्यक्रम 3 दिन चलना है। आज अजयगढ़ में चला है और इसके बाद लवकुश नगर में चलेगा और फिर छतरपुर में यह कार्यक्रम चलाया जाएगा जिससे किसानों की मदद हो सके और लोग भी सुरक्षित रह सकें।
परियोजना के मुख्य उद्देश्य–
* ऐगरीकल्चर एवं जलवायु परिवर्तन पर आधारित इस परियोजना पर साल 2011 से 24 राज्यों, 3 तहसील एवं 150 गांव में काम चल रहा है।
* इसका मुख्य उद्देश्य पानी को रोकने, मंड बंधान(मंड बांधना), तेजी से बढ़ रही जन संख्या को रोकने, अचानक वर्षा होने के कारणों पर काम करना है।
* इसके साथ ही जल जंगल और जमीन की रक्षा करना, कृषि वानिकी योजना पर काम करना, फल दार पौधे लगाना भी इस परियोजना के कुछ उद्देश्य हैं।
कार्यक्रम का लक्ष्य–
जावेद जी के द्वारा इस कार्यक्रम की शुरुआत की गई। उन्होंने बताया कि कार्यक्रम का मुख्य लक्ष्य जलवायु परिवर्तन एवं मृदा संरक्षण और सौर ऊर्जा को लेकर हैं। उन्होंने किसानों को एवं सचिव सरपंचों को अवगत कराया कि जिस प्रकार से वर्तमान में बढ़ रहे जलवायु परिवर्तन का प्रकोप बढ़ रहा है वो ठीक नहीं है। साथ ही उन्होंने बताया कि जिस प्रकार से अचानक वर्षा हो जाती है और फिर अचानक वर्षा रुक जाती है और अधिक ठंड पड़ने लगती है या अधिक गर्मी होने लगती है जिसके कारण वातावरण परिवर्तित हो रहा है और इससे फसलों को भी काफी हानि होती है।
उन्होंने यह भी बताया कि जो योजनाएं चल रही हैं उनका लाभ सारे किसान नहीं ले पा रहे हैं। उन योजनाओं को समझाना और किसानों तक पहुंचाना जिससे यह लाभ ले सकें बहुत ज़रूरी है। साथ ही किस प्रकार से किसान अपनी फसल को सुरक्षित रख सकते हैं, यह सब तकनीकी बातें भी उन्हें बताई जानी चाहिए।
विदेशी बीज और खाद का प्रयोग पहुंचा रहा है हानि–
पन्ना ऐगरीकल्चर के अधिकारी अवधेश तिवारी का कहना है कि जिस प्रकार से किसान विदेशी खादों का प्रयोग कर रहे हैं, जैसे यूरिया डीएपी इससे किसानों को काफी हानि हो रही है और इनकी जमीन बंजर होती जा रही है। इन सब खादों का प्रयोग करने से पहले तो फसल अच्छी होती है परन्तु बाद में जमीन बंजर हो जाती है जिससे फिर बाद में उसपर कुछ नहीं ऊगा सकते।
उनका कहना है कि इसके लिए हम सबको पुनः पुराने ज़माने में ही जाना होगा और जिस प्रकार से लोग पशु पालते थे और घर में ही खाद बनाते थे, जिससे देसी खाद तैयार होती थी। आज विदेशी खादों की वजह से डायबिटीज जैसी बीमारियां सामने आ रही हैं । अगर फिर से सुचारू रूप से देसी बीज, देसी खाद का प्रयोग होने लगे तो फसल भी अच्छी होने लगेगी और लोगों को बीमारियां भी कम होंगी।
वहीं रामकिशोर जो कि किसान हैं उनका कहना है कि यह विदेशी खाद और विदेशी बीज ही यहां आते हैं और किसानों को मजबूरी में इसे लेना पड़ता है। इनकी दुकानों को बंद करवाया जाना चाहिए, और इनकी जगह कुछ अच्छी देसी खाद और देसी बीज बाज़ार में आने चाहिए ताकि हम लोगों के खेत सुरक्षित रह सकें और लोग भी बीमारियों से बचे रहें।
फलदार पौधे लगाना होगा लाभदायक–
जैसा कि हम जानते हैं कि केंचुए किसान के मित्र होते हैं और केंचुए सड़े गले पत्ते से जन्म लेते हैं पर जबतक हम फलदार पौधे नहीं लगाएंगे तबतक पत्ते नीचे कैसे गिरेंगे और केंचुए कैसे उत्पन्न होंगे। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि पेड़ों का विनाश होता दिखाई दे रहा है । जहां घने पेड़ होते थे वहां वर्षा अधिक होती थी पर अब तो पेड़ों को नष्ट किया जा रहा है जिससे पानी का स्तर घट रहा है और सूखे जैसी स्थितियां सामने आ रही हैं। इसलिए ज़रूरी है कि हम अपने वातावरण का ध्यान रखें और उसे वापस से फला–फूला बनाने में मदद करें।
सौर ऊर्जा के बारे में भी बताया गया कि यह सब भी पानी और कोयला से प्राप्त होता है और यह सब तब प्राप्त होता है जब वातावरण सही हो और अगर वातावरण सही नहीं रहेगा तो न ही इंसान स्वस्थ रहेगा और न ही किसान अच्छी खेती कर सकेगा।
द्वारा लिखित – फाएजा हाशमी