खबर लहरिया क्राइम चित्रकूट में डाकुओं का आतंक! भाग 2: जब हुई डकैतों से मुलाकात

चित्रकूट में डाकुओं का आतंक! भाग 2: जब हुई डकैतों से मुलाकात

चित्रकूट में डाकुओं का आतंक! भाग 2: जब हुई डकैतों से मुलाकात
डकैतों के आतंक कि अगर बात करे तो सब से पहले उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र का नाम सामने आता है और खास कर चित्रकूट जिला डकैतों के लिए काफी जाना जाता है । पिछले तीस सालो में हमने खुद डकैतों के बारे में सुना और कई से हमारी संपादक की मुलाकात भी हुई पर शायद डकैतों से मिलते समय वो अंजान थी कि यह डकैत है इस लिये उनके साथ वो बात चीत करने में असमर्थ थी।
डकैतों में सबसे पहले नाम आता है ददुवा का जो चित्रकूट जिला के देवकली गांव का रहने वाला था परिवार के जमीनी विवाद के चलते ददुआ ने डकैत का रूप धारण किया, ददुआ का असली नाम शिव कुमार पटेल था। उसने पिछले 50 साल चित्रकूट जिले के मानिकपुर क्षेत्र में अपना दबदबा बना कर रखा था। ददुआ की कहानी सिर्फ आतंक तक ही सिमित नहीं थी कई लोग तो उन्हें भगवन मानते थे जिसके चलते ददुआ के नाम का मंदिर तक बनाया गया था। सरकार ने इसके ऊपर लाखो का इनाम रखा था पर पुलिस उसको जिंदा पकड नहीं पाई थी। 2007 में ददुआ के बीच के किसी व्यक्ति ने पुलिस को सूचना देकर मुडभेड करवाई जिस बीच ददुआ मारा गया। पर लोग आज भी ददुआ को जिंदा मानते है।
ददुआ का आतंक तो ख़त्म हो गया पर डकैतों का आतंक और भी बढ़ गया है। नये डकैत ठोकिया का उदय हुआ। ठोकिया का असली नाम घनश्याम था। जो चित्रकूट जिले के सुरवल गाँव का रहने वाला था। उसकी कहानी भी कुछ ददुआ की तरह ही थी। कहा जाता है कि उसके बहन के साथ बलात्कार हुआ था। जब उसने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करनी चाही तो उसे वहां से फटकार कर भगा दिया गया था। पंचायत ने भी उसकी एक न सुनी। तब अपनी बहन को इंसाफ दिलाने के लिए उसने बन्दुक थाम लिया था। ठोकिया के ऊपर भी लूट, हत्या और अपहरण जैसे लगभग 80 मुक़दमे दर्ज थे। इतना ही नहीं शक के कारण ठोकिया ने भरकूप क्षेत्र के बगहिया गाँव के कुर्मी परिवार के लगभग 8 घर जला दिए थे। जब हमने इसकी रिपोर्टिंग की तो उस गाँव के लोगों की आँखों में डर और हमसे उम्मीद साफ नज़र आ रही थी। बेघर बेसहारा लोग सहमे से बच्चे जिन्हें देख कर मानो रूह कांप रही थी। लगा अब लोगों के दिलों से डर ख़त्म हो गया लेकिन नहीं उसके बाद बलखडीया आतंक सर चढ़ कर बोलने लगा।
बलखडिया चित्रकूट जिले के मानिकपुर के बरुई गाँव का रहने वाला था। उसका नाम सुरेश था। बलखडिया के डाकू बनने के कारणों का पता हमे तो क्या उसके परिवार वालों को भी पता नहीं है। 2015 में जब पंचायती राज चुनाव हुआ तब बलखडिया की पत्नी लछमिनिया भी चुनाव लड़ रही थी, हमने उसका इंटरव्यू करने का सोचा। हम निकल तो गए लेकिन मन में डर और सवालों का बवंडर उठ रहा था। क्योकि उस गाँव तक जाने का रास्ता भी बिहरों से हो कर था। लग रहा था कही कोई पीछे से हमला न कर दे। कही उसके घर में हमारे साथ कोई अनहोनी न हो जाये। जिससे भी हम रास्ता पूछते वो हमें ऐसी नज़रों से देखते जैसे हम क्या करने वाले हैं। लेकिन हम लछमिनिया से मिले। बलखडिया ने अपने ही गाँव के 3 परिवार को इस शक में मार डाला की वो खाने में जहर मिला रहे है। 2015 में बलखडिया को भी पुलिस ने मार गिराया।
आखिर बुंदेलखंड से डकैत का आतंक कब ख़त्म होगा ?