जब उसे पहली बार पीरियड हुआ तब वो डर गई की, उसके साथ ये क्या हुआ है, उसे बहुत ही असुविधाजनक महसूस हो रहा था तभी उसने डरते हुए अपनी मां को बताया कि मुझे ऐसा क्यों हो रहा है। ये कौन-सी बीमारी हो गई है, तभी उसकी मां समझ गई और उन्होंने रूबी को एक पुराना कपड़ा दिया। बताया, तुम्हें महीना आ गया है।
यह रिपोर्ट खबर लहरिया रूरल मीडिया फेलो ज्योति व खबर लहरिया से श्यामकली द्वारा किया गया है।
मासिक धर्म लड़कियों के लिए एक अनोखी घटना है, हालांकि यह हमेशा वर्जनाओं और मिथकों से घिरा रहा हैं जो महिलाओं को सामाजिक–सांस्कृतिक जीवन के कई पहलुओं से बाहर रखता है। भारत में यह विषय आज तक वर्जित रहा है। कई समाजों में मौजूद मासिक धर्म के बारे में ऐसी वर्जनाएं लड़कियों और महिलाओं की भावनात्मक स्थिति, मानसिकता और जीवनशैली और सबसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती है।
जैसे हमारे भारत के बुंदेलखंड क्षेत्र के कई गांव ऐसे हैं जो अन्य से बहुत पिछड़े हुए हैं। हमने वहां अलग–अलग क्षेत्र में जाकर उन लड़कियों और उनके परिवार वालों के सदस्यों से इस बारे में चर्चा की तब वहां से अलग–अलग प्रकार की जानकारी मिली।
ये भी देखें – माहवारी को लेकर अंधविश्वास से वास्तविकता तक छोटी का सफ़र
क्या है मासिक धर्म?
मासिक धर्म जिसे अंग्रेजी में पीरियड्स कहा जाता है, लड़कियों और महिलाओं में होने वाली एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। जब कोई लड़की मैच्योर होना शुरू होती है जब उसके शरीर में कई तरह के हार्मोनल बदलाव होते हैं और तभी से पीरियड्स का सिलसिला शुरू होता है।
ऐसी ही कहानी है हमारे भारत के राज्य मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के महोबा जिले के कई क्षेत्र और अन्य क्षेत्र की, जहां पर कई लड़कियों ने अपनी कहानी हमारे साथ साझा की है। उन्होंने बताया कि किस तरह उन्हें परेशानी होती है। महोबा जिले के कई गांव जिसमें कावड़िया, कंजड़, तथा अन्य जाति समुदाय के लोग रहते हैं। जो सभी सड़क किनारे झाड़ू बनाने और पत्थर से निर्मित चक्की बनाने का काम करके अपने परिवार का खर्च चलाते हैं, इनके पास इनकी आजीविका का साधन यही है।
रूबी जिसकी उम्र 16 वर्ष और उसकी बहन की उम्र 14 साल है, दोनों ही बहुत गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उसने हमें अपनी कहानी बताई है जिसमें उसने कहा कि जब मुझे पहली बार पीरियड हुआ तब वो डर गई की, उसके साथ ये क्या हुआ है, उसे बहुत ही असुविधाजनक महसूस हो रहा था तभी उसने डरते हुए अपनी मां को बताया कि मुझे ऐसा क्यों हो रहा है। ये कौन-सी बीमारी हो गई है, तभी उसकी मां समझ गई और उन्होंने रूबी को एक पुराना कपड़ा दिया। बताया, तुम्हें महीना आ गया है। फिर भी रूबी नहीं समझ पाई। उसने अपनी मां के कहे अनुसार जैसा मां ने करने को कहा, उसने वैसा किया। फिर उसने अपनी मां से बोला कि आप मुझे बताओ ये महीना क्या होता है? उसकी मां ने बताया कि बेटा ये तुम बड़ी हो रही हो इसलिए तुम्हारे शरीर में बदलाव हो रहा है। तुम्हारी जैसी उम्र की लड़कियों को होता है। ये कोई बीमारी नहीं है। तुम घबराओ मत, ये सब प्राकृतिक है लेकिन फिर उसकी मां ने कहा तुम अब बाहर न बाकी बच्चो के साथ खेलने जाओगी न की घर की किसी चीज को हाथ लगाओगी।
रूबी की मां को सेनेटरी पैड के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। रूबी को दिए हुए कपड़े से उसे संक्रमण होने लगा तो उन्होंने डॉक्टर को दिखाया कि ये संक्रमण क्यों हो रहा है। तब पास की ही डॉ.रचना ने उन्हें बताया कि तुमने पीरियड्स के दौरान पुराना गंदा कपड़ा उपयोग किया इसलिए तुम्हें इस तरह की बीमारी हो रही हैं। डॉ.रचना ने उन्हें जानकारी दी, गंदा कपड़ा पीरियड्स में बैक्टीरियल इन्फेक्शन के कारण हो सकता है। जैसे कि यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (यूटीआई) या योनी इन्फेक्शन। इसमें त्वचा की जलन भी हो सकती है और स्वच्छता से समझौता करना पड़ सकता है, जिसकी वजह से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं। इसलिए पीरियड्स के समय साफ और सांस लेने लायक कपड़े पहनना जरूरी है। साथ ही उन्होंने कहा कि तुम्हें सेनेटरी पैड उपयोग में लाना चाहिए जिससे इस तरह की बीमारियां नहीं होगी, न तुम्हें किसी प्रकार की असुविधा होगी।
ऐसी ही एक कहानी है तेजा की जिसकी उम्र 21 वर्ष है। उसने हमें बताया कि वह पीरियड्स शुरू होने के बाद से कपड़ा उपयोग में लाती थी। 4-5 साल तक कोई परेशानी नहीं हुई लेकिन उसके बाद से उसकी तबयत खराब रहने लगी। उसे सफेद पानी की समस्या होने लगी, जिससे बहुत कमजोरी महसूस होने लगी। तब उसके परिवार वालों ने उसको डॉक्टर को दिखाया। डॉ. हिमांशु से बात की तो उन्होंने बताया कि तुम्हें पीरियड्स में कपड़ा उपयोग करने से धीरे-धीरे इन्फेक्शन शुरू हो गया है। तुम्हें सफेद पानी आने लगा। महिलाएं अकसर अपनी सेहत को नजरअंदाज करती रहती हैं। कई बार सामान्य या छोटी-सी नजर आने वाली हेल्थ प्रॉब्लम भी बड़ी और खतरनाक रूप ले सकती है। इसी में से एक है महिलाओं में होने वाली वाइट डिस्चार्ज की समस्या। वाइट डिस्चार्ज को ल्यूकोरिया भी (Leucorrhoea) कहा जाता है।
महिलाओं में वाइट डिस्चार्ज वैसे तो नॉर्मल है, जो पीरियड्स से पहले और ओव्यूलेशन के समय अधिक होता है। यह प्रेग्नेंसी, प्राइवेट पार्ट में इंफेक्शन होने या फिर हॉर्मोन के इर्रेगुलर होने पर भी हो सकता है। यह एक सामान्य बात है, लेकिन कई बार वाइट डिस्चार्ज के दौरान खुजली होना, गाढ़ा और पीले रंग का डिस्चार्ज होना, अधिक दुर्गंध आना, लगातार कई दिनों तक हो तो इसे नजरअंदाज भूलकर भी नहीं करना चाहिए ।
वाइट डिस्चार्ज कई प्रकार के हो सकते हैं, जिसमें से कुछ बहुत ही नॉर्मल होते हैं। यह महिलाओं को पीरियड्स से पहले होता है, पीरियड्स के बाद होता है और ओव्यूलेशन के समय होता है। इसके अलावा, वेजाइना में बैक्टीरियल इंफेक्शन और फंगल इंफेक्शन होने के कारण भी वाइट डिस्चार्ज की समस्या हो सकती है। ऐसे में इसके कारणों को जानने के लिए जांच की ज़रूरत पड़ती है। एग्जामिनेशन के जरिए ये पता लगा सकते हैं कि यह किसी इंफेक्शन के कारण तो नहीं हो रहा है।
ऐसे में जांच करना जरूरी हो जाता है, ताकि कारण का पता लगाकर सही ट्रीटेमेंट दिया जा सके। यदि ये सब चीजें बार–बार नजर आएं तो जांच के लिए डिस्चार्ज का कल्चर भेजा जाता है। फिर एंटीबायोटिक दवाई देकर इलाज की जाती है। डॉ. ने यह सब जानकारी देने के बाद उसको कहा कि पीरियड्स के समय तुम्हें साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए जिससे किसी भी इस प्रकार का संक्रमण न हो।
महिलाओं की स्वास्थ्य स्थिति
भारत में महिलाएं और लड़कियां चिंता का विषय है जहां वे अधिक एनीमिया या रक्त की कमी का शिकार हैं ,वहीं उनका एक हिस्सा कुपोषण का शिकार है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के-5 के अनुसार किशोरियों में स्वास्थ्य की स्थिति 54% (2015-2016) तथा 59%(2019-2021) हो गई है। ये समस्याएं कम आयु में विवाह, किशोरावस्था, और बेरोजगारी जैसे सामाजिक और सांस्कृतिक चित्रों से जुड़ी है। जो युवा लड़कियों और उनके पोषण और स्वास्थ्य स्थिति का कारण बनती हैं। अकसर पीरियड्स 12- 13 की उम्र में शुरू हो जाते हैं। उस समय लड़कियां अपने शरीर में होने वाले परिवर्तन को स्वीकार नहीं कर पाती जिसकी वजह से वो तनाव, अवसाद आदि से ग्रसित रहने लगती हैं। साथ ही जागरूकता के कम अभाव के कारण सेनेटरी पैड जैसे आवश्यक सामग्री की उपलब्धता न होने के कारण अन्य साधनों का उपयोग करना शुरू कर देती है, जो उनके शरीर को हानि पहुंचाते हैं।
इस क्षेत्र की आशाओं का कहना है कि 2- 3 साल पहले सरकार और किसी संस्था द्वारा सेनेटरी पैड दिए जाते थे जो इन्होंने गांव-गांव जाकर वितरण किए। वो भी बस 4- 5 महीने तक ही मिले उसके बाद से पैड और जरूरी चीज़े आना बंद हो गईं। अब किशोरियों को किसी चीज का लाभ नहीं मिल पाता है। उनके पास जो साधन उपलब्ध होते हैं, वो उन्हीं से अपना काम करती हैं। इस क्षेत्र की 800 लड़कियां ऐसी होंगी जिन्हें पैड संबंधी जानकारी नहीं मिली है क्योंकि न वो कभी स्कूल गईं हैं और न कभी उनकी काउंसिल की जाती है। जितनी भी जानकारी हैं, वह उन्हें अपनी माँ से मिली है।
इसी पर स्वास्थ विभाग, महिला जिला अस्पताल महोबा के डॉ.एस.पी. सिंह का कहना है कि हर महीने पोस्टर द्वारा पीरियड्स को लेकर जागरूकता अभियान चलाया जाता है। हॉस्पिटल से एक महीने में लगभग 960 पैकेट सेनेटरी पैड वितरण हो जाते हैं, जो ANM, आशा तथा अन्य चिकित्सा स्टाफ द्वारा वितरण किया जाता है।आये दिन ऐसा कोई न कोई केस आता है जिसमें कोई लड़की एनीमिया, त्वचा संबंधी या अन्य प्रकार की बीमारियों से ग्रसित होती है। उन्होंने कहा कि हमारे द्वारा भी किशोरियों को सलाह दी जाती है, पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई का खास ध्यान रखें और सेनेटरी पैड उपयोग करें।
अगर जागरूकता की बात की जाए तो जैसे आज का युवा वर्ग गुटका, तंबाकू, शराब आदि का सेवन करने लगा है, जबकि सबको पता है कि इनके सेवन से कई तरह की बीमारियां जैसे कैंसर और कई खतरनाक बीमारी उत्त्पन्न हो रही है। सरकार ने इन चीजों पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं लेकिन फिर भी युवा वर्ग और अन्य लोग इसका उपयोग कर रहे हैं। गुटका इतना जरूरी है कि लोग उसे खुलेआम बेच रहे हैं और लोग उसका उपयोग भी कर रहे हैं।
वहीं दूसरी तरफ सेनेटरी पैड की बात की जाए तो यह हमारे घर की बहु-बेटियो की सुरक्षा का एक साधन है।उन्हें कई तरह की बीमारियों, संक्रमण से बचाया जा सकता है। आज भी लोग उसे दुकान से लेने पर पेपर में लपेट कर बेचते हैं। लोग आधुनिक भारत में जीने के बाद भी आज तक ये नहीं समझ पाए है कि जितनी बाकी चीजे हमारे जीवन में जरूरी है वैसे ही सेनेटरी पैड। अगर इसका उपयोग हमारे घर की बहु बेटियां करेगी तो वो कई प्रकार की बीमारियों से सुरक्षित रहेगी। साथ ही लोगों की सांस्कृतिक प्रथाओं के कारण उन्हें अलग प्रकार की परेशानी होती है।उन्हें घर से अलग रखा जाता है। खाने का सामान, मंदिर में जाना, खाना न बनाना, किसी प्रकार की चीज को छूना आदि चीजों से वर्जित रखा जाता है। इसके लिए जागरूकता अभियान या रैली निकलना चाहिए जिससे कभी तो किसी की सोच में बदलाव आएगा। अब तो लोग पढ़ लिख गए हैं लेकिन फिर भी उनकी मानसिकता पीरियड्स को लेकर नहीं बदली है। उन्हें हमेशा से यही बताया गया है कि पीरियड्स आना मतलब अशुद्ध हो जाना, लेकिन ये एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। ऐसी 80% लड़कियां है जो कभी न कभी इस तरह की मानसिकता रखने वाले लोगों के विचारों का शिकार होती हैं और खुद अपने आपको असहाय और लाचार महसूस करती हैं।
लड़कियों की स्कूली शिक्षा पर मासिक धर्म का प्रभाव
एक सर्वे के अनुसार लगभग 2 करोड़ से भी ज़्यादा लड़कियां पीरियड्स की वजह से स्कूल जाना छोड़ देती हैं। उस क्षेत्र की बात की जाए तो लगभग 85% लड़कियां स्कूल नहीं जाती हैं, जिसका एक कारण पीरियड्स भी है। पीरियड्स एक सामान्य स्थिति हैं, परंतु जागरूकता के कम अभाव के कारण ये एक समस्या बनी रहती है। यह न सिर्फ दो करोड़ से ज़्यादा लड़कियों के स्कूल छोड़ने का कारण बनती है, बल्कि कई सारी घातक बीमारियों को भी न्यौता देती हैं।
अंतत: यह अवधि की कहानी लचीलेपन, दोस्ती और जीवन के प्राकृतिक चक्रों को अपनाने से मिलने वाली ताकत के उत्सव के रूप में भी कार्य करती है। यह खुले संवाद को प्रोत्साहित करती है और यह युवा लड़कियों को अपनी मासिक धर्म यात्रा को आत्मविश्वास के संचालित करने के लिए सशक्त बनाने में शिक्षा के महत्व पर भी प्रकाश डालती है।
खबर लहरिया रूरल मीडिया फेलो ज्योति व
खबर लहरिया की रिपोर्टर श्यामकली की तस्वीर।
चंबल मीडिया द्वारा प्रस्तुत चंबल मीडिया रूरल रिपोर्टिंग टूलकिट
के बारे में अधिक जानकारी के लिए (यहां) देखें।