जिला वाराणसी। ‘मैं बड़े होकर बड़े-बड़े बैट्री चार्जर बनाना चाहता हूं, ताकि हर घर में रोशनी हो सके।’ काशी विद्यापीठ के गांव लोहता के सबुआ तालाब में रहने वाले बारह साल के अमन अली कुछ सामान दुकान से, और कुछ घर के कबाड़ से निकालकर बैट्री चार्जर बनाते हैं। इसे केवल दो घंटे चार्ज करके छह घंटे तक रोशनी पाई जा सकती है।
इसे बनाने के लिए दो प्लास्टिक की प्लेटें या फिर कागज़ का डिब्बा, झालर वाले छोटे बल्ब, सेल या फिर बैट्री और बिजली की ज़रूरत होती है। कागज़ के डिब्बे में या फिर प्लेटों में छेद करके बल्ब लगा देते हैं, इन सभी के तार सोल्डर की मदद से बैट्री से जोड़ देते हैं। बस बनकर तैयार हो जाती है चार्जिंग वाली बैट्री।
जिला सीतामढ़ी। रीगा प्रखण्ड के गांव रमनगरा के संतोष कुमार, बब्लू कुमार एवं डुमरा प्रखण्ड के अम्धटा मुहल्ला के सूरज और सुगंधा सभी पुरानी बैट्री से बिजली बनाते हैं। इन लोगों ने बताया कि जली हुई बैट्री की ऊपर की परत हटाकर एक बर्तन में डाल देते हंै। उसमें पानी और नमक डालकर धूप में रखते हैं। छोटा सा बल्ब जोड़कर पूरी रात जलाते हंै। कोई खर्च नहीं है, और लाभ बहुत है। इससे केरोसीन तेल की भी बचत होती है।
जिला बांदा। ब्लाक तिंदवारी के गांव तारा के खजुरी मजरा के रहने वाले लवकुश, विनय और बब्बू ने बताया कि हम लोग गोबर और कोयले से बिजली बनाते हैं। न ज़्यादा मेहनत न ज़्यादा खर्च। महुआ ब्लाक के महुआ गांव के कक्षा नौ में पढ़ने वाले विपिन भी इसी तरह बिजली बनाकर रात में पढ़ाई करते हैं। एक कटोरी में गोबर और एक कटोरी में पिसा हुआ लकड़ी का कोयला घोल लेते हैं। एक छोटा बल्ब और तार की ज़रूरत होती है। तार का एक छोर सेल में और दूसरा बल्ब से बांध देते हैं। बस जल उठता है बल्ब।
जिला अम्बेडकरनगर। कटेहरी कस्बे के रोहित वर्मा मोबाइल की बैट्री को एक डिब्बे में सेट करके, छोटा वाला बल्ब लाकर तार जोड़कर एमरजेंसी लाइट की तरह इस्तेमाल करते हैं। एमरजेंसी लाइट से मोबाइल भी चार्ज कर सकते हैं। एक बार लाइट पूरी चार्ज होने के बाद पूरी रात जल सकती है।