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भारतीय जीवन बीमा होने के बाद भी लोगों को नहीं मिल रहा लाभ

साभार: विकिपीडिया

सरकारी डेटा और उद्योग के आंकड़ों के विश्लेषण के ज़रिये ये स्पष्ट किया गया है कि भारतीय लोगों को जीवन बीमा द्वारा कभी कोई सहायता प्राप्त नहीं होती है। और ऐसे में कभी किसी परिवार में कमाने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाए तो उस परिवार को बीमा में से केवल 8 प्रतिशत ही हिस्सा प्रदान किया जाता है। मदद के नाम पर ये 8% हिस्सा पूरे परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए क्या कभी सहायक हो सकता है?

अगर किसी परिवार में केवल एक ही कमाने वाला व्यक्ति हो और अचानक से उसकी भी मृत्यु हो जाए तो पूरे परिवार पर मानो पहाड़-सा टूट पड़ता है। जहाँ एक तरफ उसे खोने का गम तो दूसरी तरफ आर्थिक तंगी से जूझने का गम। इन स्थितियों में पर्याप्त पैसे की कमी लोगों को उच्च वित्तीय अस्थिरता का शिकार बना देती है। यह असंगठित क्षेत्र के मामले में अधिक गंभीर माना गया है: असंगठित क्षेत्र में अनौपचारिक श्रमिकों को आय में अस्थिरता, कार्यस्थल पर अलग-अलग परेशानियों से जूझना और बुढ़ापे के लाभ की कमी के रूप में उन्हें अतिरिक्त जोखिमों का सामना करना पड़ता है। हालाँकि, बीमा के माध्यम से इन जोखिमों को कम किया जा सकता है, पर ऐसा हो नहीं रहा है।

क्यों है भारतीय लोगों के लिए पर्याप्त साधन की कमी?

भारत में अधिकांश बीमा उत्पाद पूरी तरह से सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं, लेकिन  अक्षय निधि उत्पाद हैं जो वैश्विक कंसल्टेंसी मैककिंसे 2017  की रिपोर्ट के अनुसार सुरक्षा और निवेश सुविधाएँ प्रदान करने में सक्षम हैं।

उदाहरण के लिए, भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) 70% हिस्सेदारी के साथ भारतीय बीमा क्षेत्र का सबसे बड़ा खिलाडी है। भले ही इस संसथान द्वारा 21 जीवन बीमा योजनाएँ प्रस्तावित की गई हैं, लेकिन इनमे से केवल तीन ही पूरी तरह से पर्याप्त मानी गई हैं।

साभार: इंडियास्पेंड