देश में चल रहे किसान आंदोलन में 87 संयुक्त अमेरिका के कृषि संगठनों ने अपना समर्थन आगे बढ़ाया है। ऐसा अमेरिका में चालीस साल पहले हुआ था। संयुक्त राज्य अमेरिका में कृषि और खाद्य न्याय समूहों ने संयुक्त किसान मोर्चा को संबोधित किये हुए बयान में इस बात को कहा। आपको बता दें, किसान आंदोलन को अब तकरीबन तीन महीने होने को है और आंदोलन के ज़रिये किसान केंद्र द्वारा पारित तीन कृषि बिलों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।
किसान संगठनों द्वारा पत्र में कही गयी ये बातें
कृषि समूह अपने पत्र की शुरुआत गाज़ीपुर के प्रदर्शनकारी रिंगहु यशपाल द्वारा कही हुई बात से करते हैं कि,”कृषि धीमे से ज़हर में बदल गया है। यहां लड़कर मर जाना बेहतर है।”
समूह ने पत्र में संयुक्त अमेरिका और भारतीय सरकार से विनती की कि खाद्य संप्रभुता के बचाव और करोड़ो लोगों की जीविका के लिए वे स्थानीय खाद्य प्रणालियों का समर्थन करे। किसान यूनियन ने दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे किसान आंदोलन को कहा कि आंदोलन “विश्व के इतिहास में सबसे जीवंत विरोधों में से एक है।”
वह कहते हैं कि उनकी रैली का उद्देश्य उन तीनो कृषि कानूनों को रद्द करवाना है जो उनकी जानकारी और सलाह के बिना पास किया गया था। वह उन अनगिनत किसानों के समर्थन में अपनी एकजुटता बढ़ाते हैं जो अपने अधिकारों के लिए शांति और साहस से डटकर खड़े हो रखे हैं।
आंदोलन की प्रमुख मांगो में से एक यह है कि किसानों को उनकी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्त हो।
यूनियन ने कहा विश्व व्यापार संगठन में भारत के न्यूनतम समर्थन मूल्य का सीमित उपयोग रखने में संयुक्त अमेरिका मुख्य प्रतिद्वंधी रहा है। संयुक्त अमेरिका, कैनेडा,ऑस्ट्रेलिया और यूरोपियन सहयोगियों ने यह दावा किया कि भारत का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व्यापार को बिगाड़ देगा।
यूनियन ने कहा कि यह उनकी समझ है कि जो लगभग 40 साल पहले अमेरिका में हुआ था वह आज भारतीय किसान सह रहे हैं। वह कहते हैं कि रीगन युग को जानबूझकर संघीय नीतिगत बदलावों के ज़रिये आगे बढ़ाया गया। ‘बड़ा पाओ या बाहर निकलो‘ सरकार का मंत्र रहा। किसानों को क्षेत्र में एक तरह की फसल उगाने के लिए पुरुस्कृत किया गया। यहां तक कि ग्रामीण अमेरिका में किसानो की आत्महत्या का प्रतिशत बाकी की जनसंख्या का 45 % है।
रीगन युग अमेरिकी इतिहास में 1981 से 1989 तक रहा था। इसका इस्तेमाल इतिहासकारों और राजनीतिक सिद्धांतकारों द्वारा यह दिखाने के लिए किया गया कि राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के नेतृत्व वाली रूढ़िवादी “रीगन क्रांति” का घरेलू और विदेश निति पर एक लम्बा और स्थायी प्रभाव रहा था।
आखिर में यूनियन ने अमेरिका और भारत सरकार से निवेदन किया कि वे स्वतंत्र किसान और स्थानीय खाद्य प्रणालियों का समर्थन करें। समूह ने कहा कि वे किसानों के संघर्ष और संयुक्त मोर्चा किसान के सभी लोगों का सम्मान करते हैं और वे उनके साथ खड़े हैं।
समर्थन करने वाले कुछ संगठनों के नाम
- अ ग्रोइंग कल्चर
- अबनीतु ऑर्गेनिक्स
- एएफजीइ लोकल 3354
- एग्री-कल्चरा कोआपरेटिव नेटवर्क
- एग्रीकल्चर जस्टिस प्रोजेक्ट
- एग्रोईकोलोजी कॉमन्स
- एग्रोईकोलोजी रिसर्च एक्शन कलेक्टिव
- अलाबमा स्टेट एसोसिएशन ऑफ़ कोऑपरेटिवस
- आलिआन्ज़ा नैसिओनल दे कम्पेसिनस
- अलायन्स फॉर प्रोग्रेसिव साउथ एशियन्स (ट्विन सिटीज़)
- अमेरिकन सस्टेनेबल बिज़नेस कॉउंसिल
- अमेरिकन्स वर्ल्ड कम्युनिटी सेंटर
- एनसेस्टर एनर्जी
- एसोसिएशन फॉर फार्मर्स राइट डिफेन्स,एएफआरडी जॉर्जिया
- ब्लैक फार्मर्स एंड रन्चर्स न्यू मेक्सिको/ नेशनल लैटिनो फार्मर्स एंड रन्चर्स ट्रेड एसोसिएशन B
- बटरमिल्क फाल्स सीएसए
- सेंटर फॉर रीजनल एग्रीकल्चर फ़ूड एंड ट्रांसफॉर्मेशन
- को-एफईडी
- कम्युनिटी अग्रोईकोलोजी नेटवर्क
- कम्युनिटी अलायन्स फॉर ग्लोबल जस्टिस
- कम्युनिटी अलायन्स विद फैमिली फारमर्स
- कम्युनिटी फार्म अलायन्स
- कम्युनिटी फ़ूड एंड जस्टिस कोएलिशन
- कम्पैशनेट एक्शन फॉर एनिमल्स
- डिस्पैरिटी टू पैरिटी
- अर्थ एथिक्स एक्शन
- ईस्ट मिचिगन एनवायर्नमेंटल एक्शन कौंसिल/कास कॉमन्स
- इको वैली होप
- इकोलोजोइसट्स एन ऐसीऑन
- फेयर वर्ल्ड प्रोजेक्ट
- फैमिली फार्म एक्शन अलायन्स
- फैमिली फार्म डिफेंडर्स
- फार्म ऐड
किसान आंदोलन अब देश तक ही नहीं बल्कि अब यह आंदोलन देश की सीमा पार कर विदेशों तक भी पहुँच गया। किसानों के समर्थन में देश और विदेश की बड़ी-बड़ी हस्तियां समर्थन करते हुए दिखाई दे रही है। साथ ही सरकार द्वारा पारित किए गए कृषि बिलों की लोगों द्वारा काफी आलोचनायें की गयी और सरकार पर तंज भी कसे गए। हालांकि, केंद्र कृषि बिलों को लेकर अब भी अडिग है और सरकार का कहना है कि वह बिल वापस नहीं लेगी। वहीं किसान भी अपनी मांगो पर डटे हुए हैं कि जब तक सरकार कृषि नियमों को वापस नहीं लेती। वह भी आंदोलन से पीछे नहीं हटेंगे।
द्वारा लिखित – संध्या