आज 25 नवंबर 2020 से 10 दिसम्बर 2020 मानव अधिकार दिवस के दिन तक “16 डेज़ ऑफ़ एक्टिविज्म विद जेंडर-बेस्ड वायलेंस” नाम से पूरे विश्वभर में अंतराष्ट्रीय अभियान चलाया जाता है। आज का दिन महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन के लिए अंतराष्ट्रीय दिवस के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस बार इसका विषय ” फण्ड, रेस्पॉन्ड,प्रिवेंट और कलेक्ट” रखा गया है। यह दिन संयुक्त राष्ट्र द्वारा महिलाओं के प्रति हिंसा को कम करने और जागरूकता फ़ैलाने के लिए किया जाने वाला एक प्रयास है।
लॉकडाउन में बढ़े हिंसा के मामले
कोरोना महामारी में लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के खिलाफ काफी हिंसाओं के मामले सामने आये हैं। जिसमें हिंसा का चेहरा शारीरिक और मानसिक दोनों ही था। महिलाओं के प्रति हिंसा अभी से नहीं बल्कि बहुत लम्बे समय से चलती आ रही है। लॉकडाउन के दौरान कभी पति तो कभी परिवार द्वारा की जाने वाली हिंसा में भी काफी बढ़ोतरी देखने को मिली हैं। ये हिंसाएं शारीरिक, मानसिक और फिर भावनात्मक रूप ले लेती हैं। नेशनल फॉर वीमेन कमिसन की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा की शिकायतों में दो गुनी बढ़ोतरी हुई है।
महिला हिंसा को लेकर एनसीआरबी की रिपोर्ट
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2019 की रिपोर्ट के अनुसार 4,05,861 मामले साल 2019 में महिला हिंसा को लेकर सामने आये थे, वहीं 2018 में 3,78,236 मामले थें। यानी साल 2019 में महिला हिंसा के मामलों में 7.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी। आईपीसी की धारा के अनुसार 30.9 प्रतिशत मामलों में पति द्वारा पत्नी को मारा गया था, वहीं 17.9 प्रतिशत मामले अपहरण के थे और 7.9 प्रतिशत मामले बलात्कार के थे। प्रत्येक एक लाख महिला जनंसख्या में 62.9 प्रतिशत मामले महिला हिंसा को लेकर थे। उत्तर प्रदेश को महिलाओं के प्रति हिंसा में पहला स्थान मिला और वहीं बलात्कार के सबसे अधिक मामलो में राजस्थान सबसे आगे था। यहां तक इस साल तो यूपी को महिलाओं के रहने के लिए सबसे असुरक्षित राज्य भी घोषित कर दिया गया।
किसने शुरू किया अभियान
1991 में रटगर्स यूनिवर्सिटी में महिलाओ के वैश्विक नेतृत्व के समारोह के दौरान कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं और सेंटर फॉर वीमेन ग्लोबल लीडरशिप ने मिलकर इस अंतराष्ट्रीय अभियान की पहल की थी। जिसमें लगभग 187 देशों के 6 हज़ार से अधिक संगठनों ने भाग लिया था। यह दुनिया में सबसे लम्बे समय तक चलने वाली महिलाओं के अधिकार के अभियान के रूप में भी जाना जाता है।
क्या है अभियान का लक्ष्य
इसका लक्ष्य है कि लिंग-हिंसा और मानव अधिकारों को एक साथ रखते हुए जागरूकता फैलाई जाए। ताकि बढ़ती हिंसाओं को कम करने के साथ-साथ मानव अधिकारों की बात को भी आगे रखा जा सके। गोबल सिटीजन की 2018 की रिपोर्ट में बताया गया कि विश्व बैंक के अनुसार, एक तिहाई से अधिक महिलायें शारीरिक और यौन हिंसा का सामना करती हैं।
इस तरह से करें 16 दिन के अभियान का सहयोग
16 दिन के विषय “ऑरेंज द वर्ल्ड: फंड, रिस्पोंड, प्रीवेंट, कलेक्ट” के अनुसार आज के दिन लोगों को एकजुटता दिखाने के लिए नारंगी रंग के कपड़े पहनने के लिए आमंत्रित किया जाता है। साथ ही अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लिंग आधारित हिंसा के बारे में हैशटैग ‘ऑरेंज द वर्ल्ड‘ का इस्तेमाल करके ट्वीट या पोस्ट करने के लिए भी कहा जाता है। साथ ही हम अगर हम इस अभियान में अपना सहयोग करना चाहते हैं तो हम इस साल के अभियान के विषय के अनुसार कुछ पैसे दान करके हिंसा का सामना करी हुई महिलाओं की मदद कर सकते हैं।
अंतराष्ट्रीय या राष्ट्रीय तौर, दोनों ही जगह इस तरह के अभियान चलाना से क्या बदलाव आता है, यह उस देश के हिंसा के मामलों को देखते हुए समझा जा सकता है। द हिन्दू की 2020 की रिपोर्ट में बताया कि 86 प्रतिशत महिलओं ने इस साल हिंसा का सामना किया है। इन आंकड़ों को देखकर हम यह समझ सकते हैं कि देश मे महिलाओं की स्थिति कैसी है। तो क्या हम कह सकते हैं कि महिलाओं के नाम पर चलने वाले अभियान कारगर हैं? हां, हम इस बात को नकार नहीं सकते कि अभियानों से काफी माहिलाओं को मदद भी मिली है। लेकिन फिर भी महिलाओं के प्रति हिंसा रुकने की जगह, हर दिन बढ़ती ही जा रही हैं।