देश के छह राज्य, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना ने अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) से लिखित अपील की है कि वह साल 2018 से उनके वहां नए इंजीनियरिंग कॉलेजों की स्थापना पर रोक लगाए।
भारत की तकनीकी शिक्षा में इंजीनियरिंग का 70 प्रतिशत हिस्सा है। देश भर के 3291 इंजीनियरिंग कॉलेजों में बीई या बीटेक कोर्स की 15.5 लाख सीटें हैं।
एआईसीटीई के आंकड़ों के आधार पर एक अंग्रेजी अख़बार की रिपोर्ट बताती है कि 2016-17 के सत्र में इन कॉलेजों की 51 प्रतिशत सीटें खाली रह गईं।
खबर के अनुसार, एआईसीटीई के चेयरमैन अनिल सहस्रबुद्धे ने कहा कि परिषद ने चार राज्यों का सुझाव स्वीकार कर लिया है। उनके अनुसार भविष्य में इन राज्यों में किसी नए इंजीनियरिंग कॉलेज को मंजूरी देने से पहले उनसे पूछा जाएगा।वहीं, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश ने तो साफ कह दिया है कि उनके यहां अब किसी नए इंजीनियरिंग कॉलेज की जरूरत ही नहीं है।
अख़बार के अनुसार, मध्य प्रदेश में 2016-17 के सत्र के दौरान बीई/बीटेक की 98,247 सीटें खाली रहीं। यह राज्य की कुल इंजीनियरिंग सीटों का 58 प्रतिशत था। पिछले साल हिमाचल प्रदेश में 74 प्रतिशत सीटें नहीं भर पाईं। इस मामले में हरियाणा की हालत सबसे ज्यादा खराब है। 2016-17 के दौरान यहां के इंजीनियरिंग कॉलेजों की 74 प्रतिशत सीटें खाली रह गईं। एआईसीटीई को लिखे पत्र में राज्य के तकनीकी शिक्षा विभाग ने लिखा है कि इस साल करीब 70 प्रतिशत बीटेक सीटें खाली रहीं। राज्य ने सुझाव दिया है कि मौजूदा संस्थानों की सीटों में इजाफा न किया जाए।
इसी तरह तेलंगाना में पिछले साल बीटेक की 47 प्रतिशत सीटें खाली रहीं। हालांकि उसने शैक्षिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए सीटें बढ़ाने की बात कही है।
इसके अलावा तेलंगाना सरकार नहीं चाहती कि एआईसीटीई सभी इंजीनियरिंग कॉलेज में ग्रेजुएशन और पोस्ट–ग्रेजुएशन के लिए सीटों का इजाफा करे।
वहीं, छत्तीसगढ़ ने भी साफ कर दिया है कि बिना उससे विचार–विमर्श किए नए संस्थानों को स्वीकृति न दी जाए। 2016-17 सत्र के दौरान यहां 63 प्रतिशत सीटें खाली रह गईं।
राजस्थान ने भी कहा है कि उसके तीन जिलों – जैसलमेर, कसौली और उदयपुर को छोड़कर कहीं भी किसी नए निजी तकनीकी संस्थान को अनुमति न दी जाए। पिछले साल यहां इंजीनियरिंग कॉलेजों की 58,013 (67 प्रतिशत) सीटें बिना छात्रों के रह गईं।
अखबार ने बताया कि कथित भ्रष्टाचार, बुनियादी सुविधाओं की कमी, प्रयोगशाला और अध्यापकों की खराब हालत, तकनीकी व्यवस्था का न होना आदि सीटें नहीं भर पाने के प्रमुख कारण हैं। इसके चलते ग्रेजुएशन करने वाले छात्रों के लिए रोजगार की कमी रहती है।