तीन तलाक से जुड़े अध्यादेश को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंजूरी दे दी। इससे पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस अध्यादेश पर मुहर लगी थी। सरकार के इस अध्यादेश से मुस्लिम महिलाओं को 6 महीने तक राहत मिलने का रास्ता साफ हो गया है। अब इसे 6 महीने के भीतर संसद में मंजूरी के लिए पेश करना होगा।
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से तीन तलाक पर पाबंदी लगाए जाने के बाद भी यह जारी है, जिसके कारण सरकार को यह अध्यादेश लागू करने की अवश्यकता पड़ी।
वहीं, सरकार के इस अध्यादेश पर काग्रेस ने सवाल उठाए हैं। कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार इसे राजनीतिक रूप देने की कोशिश कर रही है।
बता दें कि प्रस्तावित अध्यादेश के तहत एक साथ तीन तलाक देना अवैध एवं निष्प्रभावी होगा और इसमें दोषी पाए जाने पर तीन साल जेल की सजा का प्रावधान है।
हालांकि इस प्रस्तावित कानून का दुरुपयोग न हो इसके लिए सरकार ने कुछ सुरक्षा उपाय भी किए हैं, इसमें आरोपी मुकदमे से पहले मजिस्ट्रेट की अदालत में जमानत की गुहार लगा सकता है।
केद्रीय मंत्री रविशकंर प्रसाद ने कहा कि इस प्रस्तावित कानून में अपराध को गैर-जमानती बनाया गया है, लेकिन आरोपी मुकदमे से पहले अदालत का रुख कर सकता है। जहां मजिस्ट्रेट आरोपी की पत्नी का पक्ष सुनने के बाद जमानत मंजूर कर सकते हैं।
प्रसाद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद देशभर में बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाओं के साथ नाइंसाफी हो रही थी। ये मामला महिलाओं की गरिमा और उनके सम्मान का है। इसलिए हम ये अध्यादेश लेकर आए हैं।
प्रस्तावित कानून केवल एक बार में तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत पर लागू होगा और यह पीड़िता को अपने लिए एवं अपने बच्चे के लिए ‘गुजारा भत्ता’ मांगने के लिए मजिस्ट्रेट के पास जाने की शक्ति देगा।
इस कानून के तहत महिला मजिस्ट्रेट के सामने अपने नाबालिग बच्चे के लिए संरक्षण का अधिकार मांग सकती है जिस पर अंतिम फैसला मजिस्ट्रेट ही लेंगे।