आंकड़ों के अनुसार भारत में शीर्ष 10 प्रतिशत लोग देश की कुल आय का करीब 58 प्रतिशत हिस्सा कमा रहे हैं जबकि नीचे के 50 प्रतिशत लोगों को कुल आय का सिर्फ़ 15 प्रतिशत ही मिल पाता है। संपत्ति के मामले में हालात और गंभीर हैं जहां सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोगों के पास देश की लगभग 65 प्रतिशत संपत्ति है और शीर्ष 10 प्रतिशत लोगों के पास ही करीब 40 प्रतिशत धन-संपत्ति सिमटी हुई है। इसी के साथ रिपोर्ट के अनुसार यदि घर के काम और देखभाल से जुड़े कार्यों को भी शामिल किया जाए तो महिलाएं एक सप्ताह में औसतन 53 घंटे काम करती हैं जबकि पुरुषों का औसत काम 43 घंटे रहता है।
भारत हमेशा से एक विकासशील देश के रूप में जाना जाता रहा है। कहते हैं कि यहां सबके पास रोजगार है जीवन आसान हो रहा है और देश तेजी से आगे बढ़ रहा है। अक्सर सुना जाता है कि कोई अमीर कोई गरीब, सभी अपने जीवन को आराम से बिता रहे हैं लेकिन हाल ही में एक अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट ने यह सोच बदलकर रख दी है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां अमीरों और गरीबों के बीच असमानता सबसे ज़्यादा है। यानी जितना अमीर बहुत अमीर है उतना गरीब वास्तव में पीछे छूट रहा है।ये बात सुनने में कठिन और हैरान करने वाली लग सकती है लेकिन आंकड़े खुद बोल रहे हैं।
वैश्विक असमानता रिपोर्ट 2026 में दिए गए आँकडें बताते हैं कि दुनिया में धन और आय का बंटवारा बेहद असमान होता जा रहा है। इनकम और वेल्थ से जुड़े से आंकड़े वर्ल्ड इनइक्वेलिटी रिपोर्ट 2026 (2026 विश्व असमानता रिपोर्ट) के मुताबिक़ भारत की शीर्ष 1 प्रतिशत आबादी के पास 40 प्रतिशत संपत्ति है जो देश को दुनिया के सबसे असमान देशों में से एक बनाती है। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की सबसे अमीर 10 प्रतिशत आबादी जितनी आय कमाती है उतनी आय बाकी 90 प्रतिशत लोग मिलकर भी नहीं कमा पाते हैं। स्थिति का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि पूरी दुनिया में केवल लगभग 60 हज़ार लोगों के पास इतनी संपत्ति है जो दुनिया की आधी आबादी यानी करीब 4.1 अरब लोगों की कुल संपत्ति से तीन गुना ज़्यादा है। जबकि दुनिया की कुल आबादी लगभग 8.2 अरब है।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारत लंबे समय से दुनिया के सबसे असमान देशों में शामिल है और बीते वर्षों में इस स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। आंकड़ों के अनुसार भारत में शीर्ष 10 प्रतिशत लोग देश की कुल आय का करीब 58 प्रतिशत हिस्सा कमा रहे हैं जबकि नीचे के 50 प्रतिशत लोगों को कुल आय का सिर्फ़ 15 प्रतिशत ही मिल पाता है। संपत्ति के मामले में हालात और गंभीर हैं जहां सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोगों के पास देश की लगभग 65 प्रतिशत संपत्ति है और शीर्ष 10 प्रतिशत लोगों के पास ही करीब 40 प्रतिशत धन-संपत्ति सिमटी हुई है। इस रिपोर्ट को पेरिस स्थित वैश्विक असमानता लैब के अर्थशास्त्री लुकस चांसेल, रिकार्डो गोमेज़-कैरेरा, रोवाइडा मोशरिफ़ और थॉमस पिकेटी ने तैयार किया है।
रिपोर्ट में भारत को लेकर कुछ मुख्य बिंदु सामने आए हैं, जो मौजूदा स्थिति को साफ़ तौर पर बताते हैं।
– महिलाओं की श्रम आय में हिस्सेदारी करीब 25 फ़ीसदी है जो 1990 के स्तर से लगभग नहीं बदली है
– भारत दुनिया के सबसे अधिक असमान देशों में शामिल है
– वैश्विक स्तर पर असमानता सिर्फ मौजूद ही नहीं है बल्कि लगातार बढ़ती जा रही है
– जलवायु परिवर्तन का असर सभी पर बराबर नहीं है अमीर देशों और वर्गों का उत्सर्जन ज़्यादा है जबकि खतरा गरीबों पर अधिक है
– देश के अलग-अलग हिस्सों में क्षेत्रीय असमानताएं आज भी बनी हुई हैं
– वैश्विक वित्तीय व्यवस्था अब भी ज़्यादातर अमीर देशों के पक्ष में झुकी हुई दिखाई देती है
अब इसे विस्तार से जानते हैं –
महिलाओं की स्थिति: ज़्यादा काम, कमाई कम
रिपोर्ट यह संकेत देती है कि लैंगिक असमानता आज भी वैश्विक स्तर पर एक बड़ी सच्चाई बनी हुई है खासकर वेतन के मामले में। यह समस्या सबसे ज़्यादा असंगठित क्षेत्र में देखने को मिलती है जहां महिलाओं को उनके काम के तुलना में कम भुगतान किया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार यदि घर के काम और देखभाल से जुड़े कार्यों को भी शामिल किया जाए तो महिलाएं एक सप्ताह में औसतन 53 घंटे काम करती हैं जबकि पुरुषों का औसत काम 43 घंटे रहता है। इतना काम करने के बावजूद कमाई के मामले में महिलाओं की स्थिति कमजोर बनी रहती है। रिपोर्ट बताती है कि अगर घरेलू अवैतनिक काम को हटा भी दिया जाए तब भी महिलाओं को पुरुषों की प्रति घंटे की कमाई का सिर्फ़ 61 फ़ीसदी ही मिल पाता है। और जब इन अवैतनिक कामों को जोड़ लिया जाता है तो यह अंतर और बढ़ जाता है जिससे महिलाओं की वास्तविक कमाई घटकर करीब 32 प्रतिशत रह जाती है।
भारत की स्थिति पर नज़र डालें तो रिपोर्ट बताती है कि श्रम बाज़ार में महिलाओं की भागीदारी बेहद सीमित है। देश में केवल 15.7 प्रतिशत महिलाएं ही लेबर फ़ोर्स का हिस्सा हैं और यह आंकड़ा पिछले दस वर्षों से लगभग बिना बदलाव के बना हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक घर और बाहर की ज़िम्मेदारियों का असमान बंटवारा महिलाओं के लिए आगे बढ़ने के रास्ते और संकुचित कर देता है। इसका असर उनके करियर, राजनीति में भागीदारी और संपत्ति बनाने की क्षमता पर पड़ता है। कुल मिलाकर रिपोर्ट यह साफ़ करती है कि भारत में आय, संपत्ति और जेंडर से जुड़ी असमानताएँ गहराई से जमी हुई हैं जो अर्थव्यवस्था के भीतर मौजूद एक स्थायी संरचनात्मक विभाजन को उजागर करती हैं।
भारत दुनिया के सबसे अधिक असमान देशों में शामिल
देश की कुल संपत्ति का बड़ा हिस्सा कुछ गिने-चुने लोगों तक सीमित होकर रह गया है। आंकड़ों के अनुसार भारत की सबसे अमीर 10 प्रतिशत आबादी के पास लगभग 65 प्रतिशत संपत्ति जमा है जबकि इनमें से भी केवल 1 प्रतिशत लोग अकेले करीब 40 प्रतिशत संपत्ति के मालिक हैं। आय के स्तर पर भी स्थिति कुछ अलग नहीं है। देश की कुल राष्ट्रीय आय का 58 प्रतिशत हिस्सा शीर्ष 10 प्रतिशत लोगों के पास जाता है। इसके विपरीत आबादी का निचला 50 प्रतिशत वर्ग सिर्फ़ 15 प्रतिशत आय पर ही निर्भर है।
वैश्विक वित्तीय व्यवस्था अब भी ज़्यादातर अमीर देशों के पक्ष में झुकी हुई नजर आती है
रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि आर्थिक असमानता किसी संयोग का नतीजा नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें उस वैश्विक व्यवस्था में हैं जिसे खास तौर पर अमीर देशों के हितों के अनुसार गढ़ा गया है। यह ढांचा उन अर्थव्यवस्थाओं को केंद्र में रखता है जिनकी मुद्राएँ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिज़र्व करेंसी के रूप में स्वीकार की जाती हैं।
रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली अमीर देशों को कई तरह के फ़ायदे देती है। रिज़र्व करेंसी वाले देश कम ब्याज दरों पर आसानी से कर्ज ले लेते हैं और उसी पूंजी को ऊँची ब्याज दरों पर आगे उधार देकर मुनाफ़ा कमाते हैं। इसके साथ ही, वैश्विक बचत भी स्वाभाविक रूप से इन्हीं देशों की ओर खिंचती है। इसके उलट, विकासशील देशों को महंगे कर्ज का बोझ उठाना पड़ता है कम रिटर्न मिलता है और अक्सर उनकी पूंजी बाहर चली जाती है। यही असंतुलन वैश्विक असमानता को लगातार बनाए रखता है।
वैश्विक स्तर पर असमानता सिर्फ मौजूद ही नहीं है बल्कि लगातार बढ़ती जा रही है
दुनिया की कुल संपत्ति और आय का बंटवारा बेहद असमान है। उदाहरण के तौर पर दुनिया की आधी आबादी यानी निचले 50 प्रतिशत के पास केवल 2 प्रतिशत संपत्ति है और वे कुल आय का लगभग 8 प्रतिशत ही कमाते हैं। इसके विपरीत सबसे अमीर 0.001 प्रतिशत लोगों की संपत्ति लगातार बढ़ती जा रही है। वर्ष 1995 में उनके पास कुल संपत्ति का 4 प्रतिशत हिस्सा था जबकि 2025 तक यह बढ़कर करीब 6 प्रतिशत तक पहुंच गया है। यह आंकड़ा वैश्विक आर्थिक असमानता की गंभीरता को दर्शाता है।
जलवायु परिवर्तन का असर सब पर समान नहीं है
रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की गरीब 50 प्रतिशत आबादी कुल निजी संपत्ति से होने वाले कार्बन उत्सर्जन में केवल 3% हिस्सा डालती है। इसके विपरीत सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोग 77 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। हालाँकि जब जलवायु परिवर्तन के नतीजों की बात आती है तो अमीर लोग अपने संसाधनों का इस्तेमाल करके अपने आप को इस नुकसान से काफी हद तक सुरक्षित रख लेते हैं जबकि गरीब वर्ग इसके सीधे प्रभाव का सामना करता है।
देश के अलग-अलग हिस्सों में क्षेत्रीय असमानताएं आज भी बनी हुई हैं
रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक औसत आय के आंकड़े अक्सर यह स्पष्ट नहीं करते कि अलग-अलग क्षेत्रों में कितना बड़ा अंतर है। उदाहरण के लिए उत्तर अमेरिका और ओशिनिया में औसत दैनिक आय लगभग 125 यूरो है जबकि सहारा के दक्षिण में अफ्रीका में यह मात्र 10 यूरो है। यह दिखाता है कि कुछ क्षेत्रों में लोगों की जीवनशैली और आर्थिक स्थिति कितनी अलग हो सकती है।
आंकड़े स्पष्ट रूप से बताते हैं कि भारत और दुनिया में आर्थिक असमानता एक गंभीर समस्या है। अमीरों और गरीबों के बीच संपत्ति और आय का अंतर लगातार बढ़ रहा है और यह केवल व्यक्तिगत क्षमता या मेहनत का परिणाम नहीं बल्कि संरचनात्मक और वैश्विक वित्तीय ढांचे का नतीजा है। अमीर वर्ग अपनी आय और संपत्ति का बहुत छोटा हिस्सा कर के रूप में देता है जबकि गरीब और मध्यम वर्ग इस असमान कर संरचना के कारण सरकारी सेवाओं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और जलवायु कार्रवाई से अपेक्षित लाभ नहीं पा पाते। रिपोर्ट बताती है कि अगर वैश्विक स्तर पर अरबपतियों और बेहद अमीरों पर उचित कर लागू किया जाए तो इससे हर साल महत्वपूर्ण संसाधन जुटाए जा सकते हैं जो विकासशील देशों के शिक्षा बजट के बराबर होंगे।
साथ ही लैंगिक असमानता, क्षेत्रीय अंतर और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव यह दर्शाते हैं कि असमानता सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय स्तर पर भी मौजूद है। यही कारण है कि प्रगतिशील कर नीतियाँ, न्यायपूर्ण वित्तीय ढांचा और संसाधनों का समान वितरण न केवल असमानता घटाने के लिए जरूरी हैं बल्कि समाज में विश्वास, स्थिरता और सबके लिए समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए भी अहम हैं।
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