2015 अब खत्म होने वाला है। अखिलेश यादव का मुख्य मंत्री बनने की पहली अवधि भी खत्म होने वाली है। इस मौके पर पलट के देखें कि मुख्य मंत्री उत्तर प्रदेश और यहां के लोगों के लिए क्या कर पाए हैं।
2015 वादों और घोषणाओं का साल रहा। सरकार ने आशा कार्यकत्रियों और किसानों के लिए इंटरनेट के द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले ऐप शुरू किए। जहां गावों में बिजली नहीं है, मोबाइल और लैपटॉप चार्ज करने के लिए सुविधा नहीं है, वहां एमसेहत या डी बी टी पोर्टल क्या काम आएंगे?
अगर हम अपनी खबरों को भी पलट के देखें तो यही नजर आता है कि यू पी सरकार योजनाओं में अमीर है, लेकिन इनके क्रियान्वयन में बहुत ही पिछड़ी है। इस साल पोषण पर दो जरूरी रिपोर्ट आईं। ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट और इंडिया हेल्थ रिपोर्ट। दोनों रिपोर्ट में यू पी की दयनीय स्थिति को उजागर किया। आंगनवाड़ी योजना को ही देखें – पांच में से सिर्फ एक बच्चे को पोषाहार मिलता है। ओडिशा जैसे राज्य में भी इस योजना का नब्बे प्रतिशत क्रियान्वयन हो रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर हम मिड डे मील पर सी ए जी रिपोर्ट को देख लें। यू पी में ढीले क्रियान्वयन के अलावा खराब गुणवत्ता के अनाज की दिक्कत है और साथ में स्कूलों में निगरानी की दिक्कत है। राज्य में स्टाफ की संख्या कम है, रसोई घर पूरे नहीं हैं, संसाधन कम हैं और हफ्ते के छह दिन मीनू पूरा न होने की दिक्कत है।
किशोरी सुरक्षा योजना शुरू होने से पहले ही खत्म हो गई। यह उन किशोरियों के लिए है जो स्कूल छोड़ देती हैं। मनरेगा जैसी योजना में भ्रष्टाचार और मजदूरी न मिलने की दिक्कतों से राज्य पीडि़त है। धान में राज्य नुक्सान झेल रहा है। सांसद या डी एम द्वारा गोद लिए गाँव में अभी तक सही मायने में विकास का रूप नहीं देखा है। चित्रकूट की डी एम नीलम अहलावत के गोद लिए हुए गाँव में कुपोषण मौजूद है जबकि फैजाबाद में सांसद की पार्टी को गोद लिए हुए गाँव का सही पता भी नहीं मालूम है।
अब बात करें सूखे की। इस साल तीसरी बार कई जिलों में, खासकर बुंदेलखंड में सूखा पड़ा है। 2009 में घोषित बुंदेलखंड के लिए घोषित विशेष पैकेज की हाल में हुई तहकीकात में कई गंभीर घोटाले सामने आ रहे हैं। मार्च में हुई ओलावृष्टि के लिए अभी तक मुआवजा नहीं मिला है तो अभी घोषित हुए सूखे का मुआवजा कब मिलेगा? कई रिपोर्ट के अनुसार बुंदेलखंड में बानवे प्रतिशत खेतों में इस साल रबी की फसल नहीं होगी। इस वजह से कई लोग ईंट भट्टों में और फैक्ट्रियों में काम करने पंजाब, महाराष्ट्र और दिल्ली जा रहे हैं।
राज्य में हर कोई विकास की बात कर रहा है – ग्राम प्रधानों से लेकर राजनीतिक पार्टियों तक। उनसे हमारा सवाल है – विकास क्या है? विकसित होने का क्या मतलब है?
2015 में उत्तर प्रदेश – योजनाओं और वादों की भरमार, पर कार्यान्वयन पर उठते सवाल
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