सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि, तमिलनाडु और उत्तराखंड में बाघों की मौतों में वृद्धि देखी गई है। बाघों की मौत को लेकर तमिलनाडु में 400 प्रतिशत और उत्तराखंड में 250 प्रतिशत का इजाफा हुआ है, जो 2023 के राष्ट्रीय औसत 50 प्रतिशत से काफी ज्यादा है।
साल 2023 में 182 बाघों की मौत हुई है जिसका दस्तावेजीकरण भारत के वन्यजीव अधिकारियों ने किया है। द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, यह पिछले साल के मुकाबले 50 प्रतिशत अधिक है। रिपोर्ट कहती है कि इन मौतों की असल वजह का पता अधिकतर मामलों में नहीं चल पाया है। यह आंकड़ा 2022 में हुई 121 मौतों और 2021 में हुई 127 मौतों से काफी ज्यादा है।
लोकसभा में देशभर में बाघों की मौतों के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री, कीर्ति वर्धन सिंह ने पिछले तीन सालों में बाघों की कुल मौतों का राज्य आधारित आंकड़ा पेश किया।
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इन राज्यों में है बाघ की मौतों के सबसे ज़्यादा आंकड़े
राज्य मंत्री ने बताया कि साझा किये गए आंकड़ों के अनुसार, इन मौतों में से 75 प्रतिशत से अधिक घटनाएं पांच राज्यों—महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, तमिलनाडु और केरल में हुईं हैं। महाराष्ट्र 46 बाघों की मौत के साथ सबसे ऊपर है, जबकि मध्य प्रदेश 43 मौतों के साथ दूसरे स्थान पर है। उत्तराखंड 21 बाघों की मौतों के साथ तीसरे स्थान पर था, जो मध्य प्रदेश की कुल संख्या का लगभग आधा था।
रिपोर्ट बताती है कि महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में बाघों की मौतों की संख्या चौंकाने वाली है, हालांकि इन राज्यों को सरकार की तरफ से काफी मदद भी मिली है। साल 2023 और 2024 के बीच, महाराष्ट्र का फंड 9 प्रतिशत बढ़कर 3,956 लाख रुपये से 4,303 लाख रुपये हो गया था। वहीं मध्य प्रदेश को 223 प्रतिशत की बढ़ोतरी मिली थी व इसका फंड 809 लाख रुपये से बढ़ाकर 2,614 लाख रुपये हो गया था।
बाघों की मौतों में वृद्धि का प्रतिशत
द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार,सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि, तमिलनाडु और उत्तराखंड में बाघों की मौतों में वृद्धि देखी गई है। बाघों की मौत को लेकर तमिलनाडु में 400 प्रतिशत और उत्तराखंड में 250 प्रतिशत का इजाफा हुआ है, जो 2023 के राष्ट्रीय औसत 50 प्रतिशत से काफी ज्यादा है।
इसके आलावा केरल और उत्तर प्रदेश को मिलाकर यहां बाघों की मौत में 100 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है। वहीं जबकि असम और महाराष्ट्र में 67 प्रतिशत और 64 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
बाघों की मौतों की वजह साफ़ नहीं
रिपोर्ट बताती है कि बाघों की मौतों में बढ़ोतरी के बावजूद, पुष्टि किए गए कारणों का डाटा बहुत कम है। साल ही 2023 में कुल मामलों में से करीब 14 प्रतिशत मामलों का ही कारण बताया गया है। 25 पुष्टि किए गए मामलों में से, शिकार (poaching) सबसे प्रमुख कारण रहा है जिसमें 12 मौतें हुईं। इसके बाद अप्राकृतिक कारणों (unnatural causes) से 9 मौतें व जब्त किए गए बाघों (seizures) से 4 मौतें हुईं हैं।
वन्यजीव संरक्षणकर्ताओं का कहना है कि जंगली जानवरों की मौतों, जिनमें बाघों की मौतें भी शामिल हैं, उनके कारणों का पता लगाना बहुत कठिन होता है।
“अधिकांश मृत बाघों की लाशें सड़ने के आखिरी चरण में पाई जाती हैं, जिससे मौत के सही कारण का पता लगाना मुश्किल हो जाता है,” यह कहना था यद्वेंद्रदेव विक्रमसिंह झाला, जो बैंगलोर स्थित नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज (NCBS) के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। उन्होंने समझाया कि ये आंकड़े कम से कम मौतों को दर्शाते हैं, और असल में बाघों की मौतों की संख्या दोगुनी हो सकती है। उनका कहना था कि जब तक बाघों की संख्या और घनत्व स्थिर या बढ़ रहे हैं, तब तक मौतों को लेकर चिंता नहीं होनी चाहिए।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में 2006 से 2022 के बीच बाघों की जनसंख्या हर साल लगभग 10 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। 2022 में किए गए अंतिम बाघ गणना के अनुसार, भारत में बाघों की कुल संख्या 3,682 थी।
रिपोर्ट में यह बताया गया कि बाघों के संरक्षण के लिए राज्यों को दिए जा रहे फंड्स को बढ़ाया गया है, लेकिन इसके बावजूद बाघों की बढ़ती मौतों के आंकड़े फंड्स के इस्तेमाल और उनके प्रभावी क्रियान्वयन पर सवाल उठाते हैं।
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