सेना के अत्याचारों के विरुद्ध 16 साल से लगातार अनशन पर रहकर संघर्ष कर रहीं मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला अपना अनशन 9 अगस्त को खत्म करने जा रही हैं। उम्मीद है कि वह अगले साल राज्य विधानसभा का चुनाव लड़ेंगी।
44 वर्षीय मानवाधिकार कार्यकर्ता ने मीडिया के सामने घोषणा करते हुए कहा, ‘मैं 9 अगस्त को अपना अनशन समाप्त कर दूंगी और चुनाव लड़ूंगी।’ उन्होंने कहा कि अब उन्हें नहीं लगता कि उनके अनशन से ‘कठोर’ आफ्सपा कानून हट पाएगा, लेकिन वह लड़ाई जारी रखेंगी। शर्मिला ने कहा, ‘मेरी लड़ाई जारी रहेगी और इसलिए मैं चुनाव लड़ राजनीति में आऊँगी।’
इरोम को कई साल से जबरन नाक में डाली गई ट्यूब के ज़रिये खिलाया-पिलाया जा रहा है। इंफाल स्थित जवाहरलाल नेहरू अस्पताल का एक विशेष वार्ड उनकी जेल के रूप में काम करता है। उन्हें आत्महत्या की कोशिश के आरोप में बार-बार गिरफ्तार, रिहा और फिर गिरफ्तार किया जाता रहा है।
इरोम ने नवंबर, 2000 में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (आर्म्ड फोर्सेज़ स्पेशल पॉवर्स एक्ट – अफस्पा – AFSPA) के विरुद्ध अनशन शुरू किया था। इस एक्ट के तहत सेना को मणिपुर, असम, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय के कुछ हिस्सों में और जम्मू कश्मीर में अतिरिक्त शक्तियां मिली हुई हैं। सेना का कोई भी अफसर इस एक्ट के तहत बिना किसी चेतावनी के किसी भी व्यक्ति पर गोली चला सकता है या उसे गिरफ्तार सकता है या तलाशी ले सकता है – सिर्फ शक के आधार पर कि उसने शांति भंग की है।
अफस्पा के खिलाफ मनावाधिकार पर काम करने वाले लोगों और संस्थाओं ने सालों से आवाज़ उठाई है। इरोम शर्मिला में उनमें से एक हैं। इरोम के अनशन शुरू करने से 10 दिन पहले ही कथित रूप से असम राइफल्स के सैनिकों ने 10 लोगों को गोलियों से मार डाला था, जिनमें दो बच्चे भी शामिल थे।