जिला बांदा। आठ महीने के लिए ईट भट्ठों में काम करने को गए मजदूर अब लौटने शुरू हो गए हैं। यह लोग अब बरसात के चार महीने घर में बैठकर बिताएंगे। मनरेगा जैसी योजना चलने के बाद भी गांव से मजदूरी के लिए पलायन ज़ारी है। 18 जून 2014 को पंजाब से एक ट्रक भरकर ईंट भट्ठों में काम करने वाले मजदूर लौटे। यह लोग महुआ नरैनी और बबेरू क्षेत्र के अलग अलग गांव के हैं। बबेरू क्षेत्र बल्लान गांव के मोहनलाल सोनहुला के शिवराज नगनेधी का मजरा बान का पुरवा की सावित्री ब्रजरानी और तिन्दवारी क्षेत्र के लोगों का कहना था कि मनरेगा में मजदूरी का पैसा बहुत कम है। साथ ही भुगतान होने में कई महीने लग जाते हैं। ईंट भट्ठे के काम में एक दिन में हज़ार से पन्द्रह सौ रुपए तक की कमाई हो जाती है। तुरन्त भुगतान होता है। कर्ज के रूप में एडवांस पैसा भी ब्याज़ में ले सकते हैं। नरैनी के गांव फतेहगंज के देवकली, भुसासी की चम्पा ने बताया कि 8 महीना की कमाई तो अच्छी खासी हो जाती है। लेकिन बच्चों का भविष्य खराब होता है। पर क्या करें मजबूरी में पढ़ाई छुड़ाकर जाना पड़ता है। जब लौटते हैं तो मास्टर भी बच्चों को स्कूल में भर्ती नहीं करते। कहते हैं कि अब भर्ती का समय नहीं है। डी. एम. हरेन्द्र वीर सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा मजदूरों के पलायन से संबन्धित बातचीत उनसे नहीं सी. डी. ओ. से करें। इस पर न मेरी जवाबदेही है और न ही जिम्मदारी।
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