जिला चित्रकूट के पहाड़ी थाना के अंतर्गत आने वाले गांव मे 13 साल की बच्ची के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के आरोप के मामले में आज 16 दिसंबर 2020 को सभी आरोपियों को गिरफ़्तार कर लिया गया है। बलात्कार की घटना 13 दिसंबर की है।
यह हैं आरोपी
पुलिस के अनुसार आरोपी गांव के ही दो लोग हैं, जिन्होंने पूरी घटना को अंजाम दिया था। पहाड़ी थाना के थाना प्रभारी श्रवण कुमार के अनुसार आरोपियों के नाम दीपक कुमार और शिवम है। दोनों ही आरोपी पीड़िता के गांव से है। दोनों आरोपियों को पहाड़ी जनपद चित्रकूट से गिरफ़्तार किया गया है। दोनों आरोपियों पर धारा 376 डी, 504,506 और पोस्को एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है।
पुलिस ने नहीं लिखी रिपोर्ट
परिवार वालों ने बताया कि बच्ची बेहोशी की हालत में घर पहुंची थी। घर पहुंचने पर उसने अपने साथ हुई पूरी घटना के बारे में उन्हें बताया। घटना की खबर मिलते ही परिवार बलात्कार के मामले की रिपोर्ट लिखवाने के लिए 13 दिसंबर को पहाड़ी थाना पहुंचा। परिवार वालों का कहना है कि रिपोर्ट लिखने की जगह पुलिसकर्मियों द्वारा उन्हें डांटकर वापस भेज दिया गया। रिपोर्ट लिखवाने के लिए परिवार दो दिन तक पुलिस थाने के चक्कर काटता रहा। लेकिन कुछ नहीं हुआ।
उच्च अधिकारियों के निर्देश पर लिखी गयी रिपोर्ट
पुलिस द्वारा मामले की रिपोर्ट ना लिखने पर, परिवार चित्रकूट के उच्च पुलिस अधीक्षक अंकित मित्तल के पास मदद के लिए पहुंचा। फिर अधीक्षक के निर्देश पर पहाड़ी थाना के प्रभारी निरीक्षक श्रवण कुमार को मामले की रिपोर्ट लिखने और जांच के लिए कहा गया। जिसके बाद 15 दिसंबर को पुलिस ने मामले की रिपोर्ट लिखी। साथ ही सभी आरोपियों को पकड़ने के लिए पुलिस टीम का गठन किया और पीड़ित बच्ची को मेडिकल टेस्ट के लिए भेजा।
टाइम्स नाओ न्यूज़ की अक्टूबर 2020 की रिपोर्ट के अनुसार यूपी में हर 16 मिनट में एक बलात्कार की घटना होती है। यहां तक की 2020 में यूपी को महिलाओं के रहने के लिए सबसे असुरक्षित राज्य तक घोषित कर दिया गया। यूपी में हाल ही में 14 सितंबर को हुआ हाथरस सामूहिक बलात्कार मामले को देशव्यापी कवरेज मिली थी। लोगों में मामले को लेकर काफ़ी गुस्सा भी पाया गया। यूपी सरकार द्वारा कहा गया कि वह महिलाओं की सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाएगी। लेकिन रोज़ होते बलात्कार के मामलों को देखकर यह साफ हो जाता है कि अभी भी सरकार द्वारा महिलाओं की सुरक्षा और आरोपियों के लिए कड़े नियम नहीं बनाए गए हैं।
इस मामले में भी परिवार को बलात्कार की रिपोर्ट लिखवाने के लिए पुलिस थाने के चक्कर लगाने पड़े। अधिकारियों के कहने पर रिपोर्ट लिखी गयी। क्या रिपोर्ट लिखने से मना करने वाले पुलिसकर्मियों पर कार्यवाही नहीं की जानी चाहिए? अगर परिवार अधिकारियों से नहीं मिलता, तो क्या होता? आरोपी पकड़े ही नहीं जाते क्योंकि रिपोर्ट तो लिखी ही नहीं गयी थी। सरकार इन सब बातों का क्या जवाब देगी।