ऑस्ट्रेलिया के जेम्स हैरिसन के खाते में एक असाधारण जिंदगी रही। उन्होंने 14 साल की उम्र से जो रक्तदान किया, तो उसका सिलसिला 81 साल की उम्र तक जारी रहा।
उन्हें 54 साल में 1176 बार रक्तदान कर 24 बच्चों की जिंदगी बचाने का श्रेया हासिल है। उन्हें ‘मैन विद गोल्डन आर्म‘ भी कहा जाता है।
दरअसल जेम्स हैरिसन के खून में रोगों से लड़ने वाली दुर्लभ एंटीबॉडी है। इसका इस्तेमाल एंटी–डी इंजेक्शन बनाने के लिए किया जाता है। यह रीसस डी हीमोलिटिक डीसीज(एचडीएन) बीमारी से लड़ने में मदद करता है। जेम्स ने 18 मई को आखिरी बार रक्तदान किया और इसके बाद उन्हें रिटायर कर दिया गया। इस उम्र में शरीर में रक्त बनने की रफ्तार काफी कम हो गई थी।
इस मौके पर जेम्स ने कहा कि यह बुरा दिन है और वह आगे भी रक्तदान जारी रखना चाहते थे। एचडीएन बीमारी में गर्भवती का रक्त गर्भ में पल रहे शिशु की रक्त कोशिका पर हमला कर देता है। इससे बच्चे को ब्रन डैमेज और एनीमिया जैसी घातक बीमारी का खतरा पैदा हो जाता है। इससे महिला के गर्भपात की आशंका भी बढ़ जाती है।
यह स्थिति तक पैदा होती है जब गर्भवती महिला का ब्लड ग्रुप आरएच पॉजिटिव और बच्चे का आरएच नेगेटिव होता है, जो उसे पिता से मिलता है।
ऑस्ट्रेलिया में 1960 के दौरान एंटी डी की खोज से पहले एचडीएन से सालाना हजारों बच्चे मारे जाते थे।
जेम्स कहते हैं कि 14 साल की उम्र में ब्लड डोनेशन से उनकी जान बची। तभी से उन्होंने ब्लड डोनेशन(रक्त दान) शुरू किया। इस बीच डॉक्टरों ने पाया कि उनके ब्लड में दुर्लभ एंटीबॉडी है, जिससे एंटी–डी इजेक्शन बन सकते हैं।
रेड क्रॉस ब्लड सर्विस के अनुसार जेम्स के ब्लड से बने एंटी–डी ने 24 लाख बच्चों की जिंदगी बचाई है। ऑस्ट्रेलिया में जेम्स जैसे 160 डोनर हैं।
जेम्स 1964 से हर हफ्ते 800 एमएल ब्लड डोनेट कर रहे थे। 1967 से अब तक 30 लाख से भी ज्यादा एंटी डी इंजक्शन जरूरतमंद मांओं को दिए जा चुके हैं।
यहां तक कि उनकी अपनी बेटी को भी ये इंजक्शन दिया गया था। इस काम के लिए उन्हें ऑस्ट्रेलिया का सम्मान मेडल ऑफ द ऑर्डर ऑफ ऑस्ट्रेलिया से भी नवाजा जा चुका है।