दोस्तों नरैनी कोतवाली अंतर्गत आने वाले नेढूआ गांव के शिव कुमार पांडे के बेटे की 7 मार्च 2013 को हत्या का मामला सामने आया था। तब से आज तक पीड़ित परिवार न्याय पाने के लिए चक्कर काट रहा है। मामला एससी-एसटी के तहत बांदा न्यायालय में चल रहा है लेकिन अभी तक इस घटना का मुख्य आरोपी पुलिस की गिरफ्त से दूर है, जिससे परिवार को जान माल का भी खतरा बना हुआ है।
मेरी जासूसी कहती है कि इन 10 सालों में पीड़ित परिवार ने दौड़-धूप और कोर्ट कचहरी में लगभग दसों लाख रुपए खर्च कर दिए। उसका घर और शरीर दोनों खोखला हो गए हैं। कर्ज के बोझ तले दब गया है। रो-रो कर आंखें कमजोर हो गई हैं फिर भी अभी तक न्याय नहीं मिला। जबकि उसकी कोई पुरानी रंजिश या दुश्मनी भी नहीं थी जिसके चलते उसके बेटे की हत्या की गई हो। राम नरेश उर्फ रज्जू और चिंतामणि का परिवार में आपसी विवाद हो गया था जिसमें उनके भाई की मौत हो गई थी। राम नरेश ने पीड़ित परिवार से गवाह बनने के लिए कहा था और पीड़ित परिवार ने मना कर दिया था कि जब उसने कुछ देखा नहीं है उसको पता नहीं है तो वह गवाह नहीं बन सकता। उसका नाम मत लिखाइएगा हो सकता है, यही रंजिश मना रहा हो रामनरेश और इसी के चलते उसके बेटे की हत्या की गई हो। फिलहाल कोर्ट ने भी पुलिस अधीक्षक को आदेशित किया था गिरफ्तारी के लिए, इसके बावजूद भी अभी कुछ नहीं हुआ है।
मेरी जासूसी कहती है कि पुलिस ने मुख्य आरोपी राम नरेश उर्फ रज्जू को तो अभी तक गिरफ्तार नहीं किया है लेकिन उसके भाई चिंतामणि को गिरफ्तार किया था घटना के बाद जो 2014 में हाई कोर्ट से जमानत पर छूट आया था। अब वह बांदा तारीखों में आता है गांव में जो पीड़ित परिवार की तरफ से गवाह है उनको धमकाता है और यह कहता है कि उनको भी समझा दो समझौता कर ले नहीं तो अंजाम अच्छा नही होगा। उसका एक बेटा था जिसकी हत्या कर दी गई। उसका पुत्र मोह है चाहें जितनी धमकी मिलती हो लेकिन वह उस मोह को नहीं छोड़ सकता और बराबर लड़ाई लड़ेगा, जब तक उसे न्याय नहीं मिलता।
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मेरी जासूसी कहती है कि आरोपियों के परिवारिक अपनी जमीन ज़ायदाद बेचकर गांव छोड़ कर चले गए हैं। घटना के बाद पुलिस आरोपियों के रिश्तेदारों के नंबर सर्विलांस में लगाए। मुख्य आरोपी जो नहीं गिरफ्तार हुआ उसका भाई जो जमानत से छुटा है तारीख में आता है। उसका नंबर सर्विलांस में लगाए तो हो सकता है कि कुछ जानकारी मिले और मुख्य आरोपी तक पुलिस पहुंच पाए। वहीं पुलिस कहती भर है, कुछ करती नहीं है। उल्टे पीड़ित परिवार से यह कहा जाता है कि आप ही बताइए कहीं से पता चलता हो तो, पीड़ित परिवार क्या बताएं जब उसको पता नहीं है। जब भी पीड़ित परिवार थाने जाता है उसको यह कहा जाता है कि टीम गठित है आरोपी की तलाश जारी है लेकिन 10 साल हो गए अभी तक पुलिस के हाथ खाली के खाली हैं।
मेरी जासूसी कहती है, घटना के बाद से पीड़ित परिवार के घर में सुरक्षा के लिए एक पुलिसकर्मी लगाया गया था लेकिन एक साल बाद वह सुरक्षा हटा ली गई। इस मामले को लेकर भी पीड़ित परिवार ने डीएम को दरख्वास्त दी और एलायू के पास गया। एलायू की तरफ से यह कहा गया कि अगर आपको सुरक्षा चाहिए तो आपको उसके लिए वेतन देना होगा। परिवार खुद इतना क़र्ज़ में डूबा हुआ है वह कहां से वेतन दे इसलिए वेतन देने से उसने मना कर दिया और उसकी सुरक्षा व्यवस्था भी हटा दी गई।
नरैनी कोतवाली एसओ का कहना है कि टीम गठित है तलाश जारी है। कुछ केसों में कई बारी बहुत ज़्यादा समय लगता है लेकिन गिरफ्तारी जरूर होगी। अभी हाल ही में उन्होंने 3 साल पुराने केस के आरोपी को गिरफ्तार करके जेल भेजा है। अपनी तरफ से वह पूरी कोशिश कर रहे हैं तलाश करने की।
सवाल यह है कि तलाश ज़ारी है तो इतना समय लग ही क्यों रहा है? पीड़ित परिवार जिस तरह से कह रहा है कि उनके रिश्तेदार और परिवारों के नंबर सर्विलांस में लगाए क्या पुलिस को वह रवैया नहीं अपनाना चाहिए? हो सकता है कुछ उससे सुराग लगे या इसी तरह पीड़ित परिवार न्याय के लिए दर-दर भटकता रहेगा? यह थी मेरी आज की जासूसी भरी कहानी। अगली बार फिर मिलूंगी, किसी ने मुद्दे के साथ तब तक के लिए दीजिए इज़ाज़त नमस्कार!!
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