माननीय मुख्यमंत्री और उत्तर प्रदेश पुलिस,
खबर लहरिया की महिला पत्रकारों को परेशान करने वाला दोषी जिस फुर्ती के साथ पकड़ा गया, वह तारीफ के काबिल है। महज दो दिन में पुलिस ने दोषी को पकड़ लिया। वाकई सरकार चाहे तो हर विभाग को अपना काम करना ही पड़ेगा। जिस तरह से प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा खुलेआम हो रही है, उसे देखकर लगने लगा था कि शायद पुलिस की क्षमताएं अपराधियों के सामने कम हैं। मगर इस मामले में दिखाई गई पुलिस की फुर्ती से साबित हो गया कि अगर पुलिस चाहे तो अपराधी बच नहीं सकते। लेकिन अफसोस इस बात का है कि मुख्यमंत्री जी आपका ध्यान खींचने के लिए हमें दूसरे अखबार और सोशल मीडिया का रास्ता लेना पड़ा। और माफ कीजिए लेकिन पुलिस को अपनी नौ महीने की गहरी नींद से जगाने के लिए हमें कई दूसरे पत्रकारों तक अपनी बात पहुंचानी पड़ी।
14 सितंबर को हमने एक वेबसाइट पर अपना लेख लिखा। लेख पढ़़कर कई पत्रकारों ने सोशल मीडिया पर खबर लहरिया पत्रकारों के साथ एक आदमी के द्वारा मोबाइल फोन पर उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाई। आवाजें इतनी तेज हुईं कि मुख्यमंत्री जी तक बात पहुंची। मुख्यमंत्री जी ने पुलिस को जल्द से जल्द उस अपराधी को पकड़ने को कहा। और देखिए दो दिन के भीतर अपराधी थाने में था। हमने सबसे पहले महिला पावरलाइन 1090 पर फोन किया अ©र बांदा और चित्रकूट की कोतवाली में भी जनवरी 2015 में ही एफ आई आर लिखवाई थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ। सिर्फ बार बार हमारा बयान दर्ज करने के अलावा पुलिस ने कुछ नहीं किया। कभी विवेचक के बदलने की वजह से हमें फिर बयान देने पड़ते तो कभी दूसरे विभाग में फाइल जाने की वजह से वही बयान हम फिर दोहराते। आखिर यह भी पता चला कि जिले के पुलिस विभाग में क्राइम में किसी का अनुभव न होने की वजह से अभियुक्त को पकड़ने में इतनी देर लगी।
16 सितंबर को अभियुक्त के पकडे जाने के बाद अखबारों में फिर खबर छपी। उस दिन बांदा में हमें कोतवाली में बुलाया गया। हम अपना काम छोड़कर कोतवाली पहुंचे। थोड़ी देर में पुलिसवालों ने अभियुक्त को हमारे सामने ला खड़ा किया। उससे पूछा कि वो हमें पहचान सकता था या नहीं। हम चैंक गए। न तो हम उस आदमी को देखना चाहते थे और न ही हम चाहते थे कि वो हमें देखे। लेकिन पुलिसवालों ने न हमसे पूछा न ही इसके बारे में सोचा।
अभियुक्त के पकडे जाने के बाद कई अखबारों ने इसका श्रेय मुख्यमंत्री के आदेश और पुलिस विभाग की चुस्ती को दिया। महिला पावरलाइन 1090 के लखनऊ के दफ्तर में हमें आमंत्रित किया गया और उनकी उत्तम व्यवस्था के बारे में हमें जानकारी दी गई। उन्होंने यह भी बताया कि इस व्यवस्था की वजह से तीन लाख मामलों में उन्होंने शिकायत करने वाली महिलाओं और औरतों को राहत दिलाई है। वाकई, उनकी व्यवस्था उम्दा है। लेकिन अफसोस, हमारे केस में यह व्यवस्था काम नहीं आई।
सरकार और पुलिस की इस फुर्ती के लिए हम बधाई देना चाहते हैं मगर देरी के लिए, अफसोस के साथ। दोषी पकड़ा जा चुका है आगे की कार्रवाई जारी है। क्या अब हम यह उम्मीद कर सकती हैं कि यह मामला छोटे कस्बों में काम रही महिला पत्रकार और उनके काम के चुनौतीपूर्ण माहौल के बारे में रोशनी डालता है? असुरक्षा और असंवेदनशीलता से जूझते हुए जब हम जैसी पत्रकार शिकायत करें तो कार्रवाई के लिए हर बार हमें नौ महीने इंतजार नहीं करना होगा? इसके बारे में इंटरनेट और सोशल मीडिया में लिखना नहीं होगा? बस शिकायत लिखवाना ही काफी ह¨गा।
बधाई मगर अफसोस के साथ
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