बढ़ती मंहगाई में हर बार कुछ नया खरीद पाना सम्भव नहीं होता है इसलिए बदलते जमाने के साथ बदल गई हैं लोगों की सोंच। इसी बदलती सोंच के कारण ललितपुर जिले के ब्लाक महरौनी, गांव बारचौनकी धनुषरानी की सोंच भी बदली है और वो बेकार पड़ी गुटखा और कुरकुरे की पन्नी से रंग बिरंगा चका बनाती है। उनका मानना है कि पन्नी के उपयोग से शहर की फिजा खराब हो रही है और पर्यावरण भी दूषित हो रहा है।
धनुषरानी का कहना है कि हम दुकान और रास्ते से जहां लोग पन्नी फेंकते है उठा लाते है और साड़ी की लेस निकालकर चका बनाते हैं, पिछले दस साल से हम यह काम कर रहे हैं। बाजार से खरीदने पर चका मंहगा पड़ता है इसलिए हम इसे घर में बना लेते है क्योंकि हमारे पास खरीदने के लिए इतना पैसा भी नहीं रहता है।
सिर पर भरी वजन उठाकर चलने, शादियों में सिर पर कलश रखने के लिए लोग चका का इस्तेमाल करते हैं।
रिपोर्टर- राजकुमारी