जिला अम्बेडकरनगर, ब्लाक तारून, हैदरगंज बाज़ार कै राजू पन्द्रह साल से सिलबट्टा बनावै कै काम कराथिन।साथ मा मूर्ति अउर अन्य सामान भी बनावाथिन।
राजू शिल्पकार कै कहब बाय की आपन खुद कै काम हुवय तौ चाहे सौ रुपया हुवय या पचास आटा चावल भरका होय जाथै। दूसरे के हियाँ काम करै पै पता चला साम के पैसा न मिला तौ कइसे काम होये।एहिसे आपन खुद कै रोजगार करे हई। दस रुपया कै सामान 7 रुपया मा बिकाथै।
राजू कै कहब बाय की सिल, चकिया, ओखली हर एक सामान पन्द्रह साल से बनाई थी। दिनभर मा चकिया दुई पीस, सिल पांच पीस अउर सिलबट्टा दस पीस बन जाथै।
मन्कर शिल्पकार कै कहब बाय कि छोटी बड़ी सब पत्थर कै मूर्ति बनाईथी।पत्थर से मन्दिर भी बनाइथी।रामनगर चौराहा के पास एक गाँव मा दुई मंदिर बनाये हई।पत्थर कै सामान बनावै मा एक दिक्कत ई हुआथै किअगर आँख मा चश्मा लगायके काम करै तौ ठीक रहाथै या फिर कुछ मनई मुंह पै मास्क लगाय लियाथिन तौ सेफ्टी रहाथै।पिताजी का बनावत देखके सीखे हई। अपने मन से बनाईथी।
राजू कै कहब बाय की पहिले गाँव मा जान्त चलत रहा जेहमा मेहरारू गेहूं पीसत रहिन।पर अब चक्की चलिगए जेसे मेहरारुन का आसानी होइगे। चार चार घंटा बैठके पीसै मा दिक्कत हुवत रही।
रिपोर्टर- प्रियंका
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