आज की दुनिया में अगर देखा जाए तो महिलाएं खेत खलिहान में फरूवा चलाने से लेकर के छप्पर छाने तक का काम करती हैं। ऐसी ही एक महिला है हीरामनी। वह जिला चित्रकूट, ब्लाक मानिकपुर गांव बघौड़ा में रहती है। हीरामनी की उम्र लगभग सत्तर साल है लेकिन आज भी वह चीरे में छप्पर चढ़ के छाती है।
हीरामनी का कहना है कि जब मेरी उम्र बीस साल की थी तभी से छप्पर छाने का काम कर रही हूं। क्योंकि कच्चा घर था बरसात के समय में घर में पानी आता और बैठने की जगह नहीं रहती। इस समस्या को लेकर परेषान रहती थी। मैंने सोचा कि मैं खुद छप्पर छाना सीखूंगी। मैंने अपने मन में ठान लिया और हिम्मत करके छप्पर में चढ़ गई। उसी समय से छप्पर छाती हूं और दो हजार रूपये बचा लेती हूं। नहीं तो मजदूर को मजदूरी देनी पड़ती।
हिम्मत करके छाती छप्पर
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