‘‘हमैं हमेषा से ई लागत रहा कि पढ़ाई मा हम कुछ हटके विसय चुनी। यहि कारण बी.ए. के बाद महिलन कै विसय चुनेन।‘‘ छब्बीस साल कै अकांक्षा ई पता करै कै कोषिष करति अहैं कि पिछले पच्चीस साल मा साम्प्रदायिक (दुई समुदाय के बीच खास कइके जवन अलग जाति मा धर्म से अहैं) हिंसा से महिलन पर काव असर पड़त बाय। खबर लहरिया कै पत्रकार उनसे फैजाबाद मा मिलिन। जहां वै 11 नवम्बर से 22 नवम्बर नवम्बर तक महिलन से बातचीत करिन।
सवाल- अपने काम के बारे मा कुछ बतइहैं?
हम उत्तर-प्रदेष के फैजाबाद जिला मा अउर गुजरात के अहमदाबाद जिला मा (जहां दंगा मा साम्प्रदायिका हिंसा भै बाय।) महिला अउर लड़कियन से बात करत हई। ई जानै की ताई कि अल्पसंख्यक महिलन पै साम्प्रदासियका हिंसा कै काव असर पड़ा बाय।
सवाल- अबहीं तक आपके काम अउर बातचीत से काव पता चला बाय?
एक डर कै महौल बाय। जहां महिला षारिरिक हिंसा कै षिकार भी न रही हुवय। हुआ भी डर मा रहब एक हिंसा आय। फैजाबाद षहर मा महिला कहिन कि जब कउनौ हिन्दू त्यौहार हुआ थै तो डर बना रहा थै कि कहूं कुछ होय न जाए। इनकै कहब बाय कि उनके सबसे पहली बार इन सब चीज पै हम बात करेन। यसे पहले उनके सब अपने डर के बारे मा कुछ नाय बोलिन।
सवाल- रोजमर्रा की जिन्दगी मा कवने प्रकार के डर कै सामना कराथिन।
बहुत कम महिला अपने आप घर के बाहर जाथीं। वै सब बताइन कि जब उनकै पति या गेदहरै घर से बाहर जाथे काम करै या गेदहरै घर से बाहर जाथे काम करै या स्कूल मा, तौ उनका डर रहा थै कि उनका कुछ होय न जाए। फैजाबाद के पहाड़गंज के एक विधवा महिला बताइन कि वै अपने दुइनों बिटिया का प्रायमरी के बाद स्कूल से निकाल दिहिन। अउर घर मा पढ़ावति अहैं। उनका लागा थै कि वै अकेले होइके अपनी बिटियन का बाहर जाए कै जिम्मेदारी नाय लै सकती।
हिंसा के मुद्दा पै एक नजर
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