बर्बाद होत फसल अउर मउत का गलेलगावत किसानका मामला हर साल तूल पकड़त है, पै कारवाही के नाम मा कुछ मिलत है तौ वा है मुआवजा का भरोसा। अधिकारी अउर नेता किसानन के मउत के बाद उनके परिवारन का भरोसा देत हैं कि उनके हरतान से मदद कीन जई। पै सच्चाई मा कुछ होत निहाय। दूसर बात मुआवजा मिलै के प्रक्रिया येतनी लम्बी होत है कि मुआवजा मिलत भी है तौ दुई चार साल के बाद। अगर हम पिछले साल के मुआवजा मिलै के प्रक्रिया के बात करी तौ मुआवजा या साल दीन गा है। मुआवजा मिल भी जात है तौ वहिसे न तौ किसान के फसल बर्बादी के भरपाई होय अउर न ही परिवार वालेन के आंसू पांेछ जात आय।
किसान के मामला मा गहराई से सोंचै अउर काम करैं के जरुरत है। कुछ ठोस रणनीति तैयार करैं का चाही। सिर्फ मुआवजा दें से काम न चली। जहां तक रही सरकार के बात तौ राजनीति का मुद्दा किसान के मउत का बनावा जात है। मुआवजा दें अउर क्रेडिट कार्ड का कर्ज माफ करैं के बात बड़े जोर शोर से कीन जात है। या बात के दोराय निहाय कि सरकार जउन कहत है वा करत निहाय। करत है, पै सिर्फ कागजी कारवाही करै खातिर। इनतान के मुआवजा, कर्जमाफी किसानन के दर्द का अउर उकसावत है।
कतौ कतौ तौ लागत है कि सरकार किसानन के समस्या का मजाक बनाये है। काहे से वा चाहत है कि फसल बर्बाद होय तौ विदेश से अनाज मंगावै का मउका मिलै। दूसर देश का फायदा अउर आपन देश मा महंगाई बढ़ावैं के एक सोची समझी रणनीति बनाई जाय। या मारे मुआवजा के नाम सरकारी धन का मनमाना बन्दरबांट कीन जात है।
हर साल बढ़त किसान के मउत, सरकार का होत फायदा
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