जिला चित्रकुट, गांव नया गांव दिवाली होने से पहले आपने कपड़े, बर्तन और आभूषणों के बाजार सजे देखे होंगे। पर क्या कभी आपने गधे जैसे सीधे-सादे जानवर से सजा बाजार देखा है?
ऐसा ही एक बाजार है चित्रकुट का गधा मेला, जो हर साल दिवाली से एक दिन पहले लगता हैं और गोवर्धन पूजा दिन तक चलता है। इस मेले में अलीगढ़, इलाहाबाद, अजयगढ़, बांदा, महोबा, कौशाम्बी और राजापुर से व्यापारी और खरीदार आते हैं।
मेले के प्रबंधक रमेश पांडे बताते हैं, “दिवाली के समय इस मेले में लोग खरीदना-बेचना शुभ मानते हैं। इस मेले में आने वाले व्यापारी कई दिनों का सफर करके अपने गधों के साथ यहां आते हैं, जबकि धनवान व्यापारी अपने निजी वाहन से यहां आते हैं।”
इस मेले में घोड़े भी बिकते हैं,पर गधों की तादाद ज्यादा होने के कारण इसे गधों का मेला कहते हैं। यहां के व्यापारी गधों को एक साल तक पालते हैं और फिर उसे इस मेले में बेच देते हैं।
इस मेले में सीतापुर से आई 45 वर्षीय बिट्टी अपने 6 घोड़े लेकर आई हैं और उनका यह मानना है कि मेला खत्म होने तक उनके कम से कम 3 घोड़े तो बिक ही जाएंगे।
सताना जिले से आए मनोज कुमार सोलंकी यहां 8 साल से गधे बेचने के लिए आ रहे हैं। वह कहते हैं, “मैं यहां गधे बेचता हूं पर कई बार कोई अच्छा गधा दिखने पर उसे खरीद भी लेता हूं।”
ममता और मोहन सिंह भी अपने गधों के साथ मेले में आए हैं और जल्दी से जल्दी अपने गधों को बेचकर पैसा कमाना चाहते हैं। इस मेले में गधों के अलावा व्यापारी और भी सामान बेचने के लिए आते हैं, जैसे अलीगढ़ से कंसी लाल जानवरों को बांधने वाली रस्सी को बेचने के लिए आए हैं। वह बताते हैं, “मंदी के कारण अभी तक बहुत रस्सी नहीं बिकी है।”
बीस साल से इस मेले में आ रहे फतेहपुर के रहने वाले गुड्डू बताते हैं, “मैंने 51000 हजार के गधे बेच दिए हैं, जबकि मैंने उनकी कीमत 70 हजार लगा रखी थी।” वह बताते हैं कि पिछले साल उनका एक ही गधा 50000 तक बिका था।”
इस मेले में आए शिव मंगल बहुत खुश है क्योंकि उन्होंने 7,500 का एक गधा खरीदा है। गौरी लाल भी यहां एक घोड़ा खरीदने के लिए आएं हैं, पर उनका बजट 6000 है। वह कहते हैं, “अभी तक जितने घोड़े देखे वह सब मंहगे हैं।”
यहां आने वाले व्यापारी मेले के आखिरी दिन रामघाट के दर्शन करने भी जाते हैं।
रिपोर्टर- नाज़नी रिज़वी
01/11/2016 को प्रकाशित