सीमा रंजन इलाहाबाद की पत्रकार है। वह सामाजिक समस्याओं और शैक्षिक मुद्दों पर काम करती है।
दिल्ली के डाक्टर नारंग की मौत को दादरी हत्या कांड के जैसा बताया जा रहा है। जबकि दोनों ही घटनाओं के कारण अलग-अलग है। लेकिन जिस तरह से डॉ. नारंग की हत्या को धार्मिक और साम्प्रदायिक रूप दिया जा रहा है वो निंदनीय है। ये घटना होली से एक दिन पहले बुधवार की रात की है जब भारत और बांग्लादेश के रोमांचक मैच में भारत को मिली जीत के बाद डॉ. नारंग घर के बाहर अपने 8 साल के बेटे के साथ क्रिकेट खेल रहे थे इस दौरान गेंद गेट के बाहर चली गई।
डॉ. नारंग बेटे के साथ बॉल लेने बाहर निकले। उसी वक्त आरोपी नासिर अपने नाबालिग साथी के साथ तेजी से बाइक दौड़ाता हुआ वहां से गुजर रहा था। डॉ. नारंग ने उसे रोका और गली में तेज बाइक चलाने से मना किया। नासिर और उसके साथियों की डॉ. नारंग से कहासुनी हो गई।
इसके बाद नासिर वहां से चला गया और थोड़ी देर बाद लाठी, लोहे की रॉड और दर्जनभर लोगों के साथ वापस आया। भीड़ ने डाक्टर के घर पर धावा बोल दिया। जब डॉ. नारंग बाहर निकले तो ये गुंडे उन पर टूट पड़े।
डॉ. नारंग को पास के अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उनकी मौत हो गई। एक छोटी सी बात कितनी भयंकर रुप ले सकती है ये इस मामले को देख कर लगाया जा सकता है। ताज्जुब यह है कि पकड़े गए आरोपियों में चार किशोर भी हैं। इस घटना के बाद, सोशल मीडिया पर लगातार अफवाहें फैलाई जा रही हैं कि मारने वाले बांग्लादेशी मुस्लिम है और टी-20 में इंडिया से बांग्लादेश के हारने पर जो गुस्सा उनके मन में था वह डॉ. नारंग पर उतारा गया।
बीते साल से लगातार जिस तरह से, दो गुटों के बीच के झगड़े को साम्प्रदायिक रूप दिया जा रहा है वो खतरनाक है। लगता है जैसे संवेदनशीलता, सहिष्णुता और मानवता जैसे भाव सिर्फ शब्द बन कर भाषणों का हिस्सा बन रह गये हैं।