बात उस समय की है जब मैं 12वीं क्लास में थी। हमारे घर के सामने एक बड़ा घर था। वहां संजय नाम का एक लड़का रहता था। वो मुझे बहुत अच्छा लगता था। जब भी वो मुझे दिखाई देता, मेरे दिल की धड़कने बढ़ जाती थीं। मैं मन ही मन उसे चाहने लगी थी।
इसी बीच कॉलोनी में सरस्वती पूजा मनाई जा रही थी। पूजा के दिन हमारी छुट्टी थी और एक बजे पंडाल में मेरी ड्यूटी लगी थी तो जल्दी से खाना खा कर मैं पंडाल में चली गई। सभी ने कहा कि अब तुम और संजय ड्यूटी करो हम सब खाना खा कर आते हैं। संजय का नाम सुनते ही मेरी धड़कन तेज़ हो गई। मैं संजय से नज़र नहीं मिला पा रही थी। तभी संजय ने मेरा नाम ले कर पुकारा रत्ना! उसके मुंह से अपना नाम सुन कर ऐसा लगा जैसे बिजली का करेंट लग गया हो। तभी संजय मेरे पास आ आया और बोला, “मुझे पता है तुम मुझे छुप-छुप कर देखती हो। मुझे तुम बहुत अच्छी लगती हो। मैंने ही जान कर ड्यूटी लगवाई। जिससे मैं तुमसे बात कर सकूँ। मैं तुमको चाहता हूँ।”
संजय की बात सुनकर मैं उसे बस देखती रह गई और कुछ भी नहीं कह पा रही थी। संजय की बात मेरे कानों में गूँज रही थी। मन कर रहा था बस किसी तरह अपने मन की बात उसे कह दूँ, लेकिन यह हो न सका। उस दिन के बाद हमें फिर कभी आमने सामने आने का मौका नहीं मिला। मैं अपने घर की खिड़की से उसको देखती। जब कॉलोनी में वो आता तो हम दोनों एक दूसरे को देखकर मुस्कुरा जाते, लेकिन बात नहीं होती थी। 12वीं के बाद में होस्टल चली गयी और फिर कभी संजय को नहीं देख पायी।