16 अगस्त से 13 अक्टूबर तक लेखपालन के चलैं वाली हड़ताल से लेखपालन का फायदा होई या नहीं, पै आम जनता का नुकसान होब पक्का है। लेखपाल वइसे तौ तहसील दिवस अउर थाना दिवस मा आई दरखासन मा कारवाही न करैं खातिर हड़ताल मा हैं, पै आड़ से अउर भी काम नहीं करत आय।
जउनतान लेखपाल या सोच के साथै हड़ताल करत हैं कि उनके समस्या का सुना जाय वहिनतान जनता भी लेखपालन से उम्मीद करत है कि उनके समस्या का जल्दी से निपटा दीन जाय। अगर लेखपालन का हक है कि उंई सरकार से आपन मांग पूरी करवावैं वइसे जनता का भी हक है कि उनके समस्या मा कारवाही कीन जाय। लडाई तौ शासन-प्रशासन से है, पै नतीजा भोली भाली जनता का काहे भोगैं का परत है?
सोचै वाली बात है कि जमीन के नाप करावैं खातिर अनशन मा बइठैं वाले मड़ई या फेर पट्टा के पैमाइस करावैं खातिर बइठ अनशन कारी हड़ताल खतम होय का कबै तक इंतजार करिहैं? जबै कि इं मामला तहसील दिवस अउर थाना दिवस से अलग हैं। लेखपालन के काम न करैं से एस.डी.एम. अउर तहसीलदार भी इनतान के समस्यन का निपटावैं के कारवाही आगे नहीं बढ़ा पावत आय। अब कारवाही न होय का जिम्मेदार कउन होई? एस.डी.एम., तहसीलदार या फेर लेखपाल?
या बात तौ अधिकारिन के अन्दर के आय, पै जनता का तौ आपन समस्या मा कारवाही से मतलब है। का अधिकारिन के अन्दरूनी बात जनता के समस्या सुधारैं मा असर डारी? का जनता आपन समस्या मा कारवाही का इंतजार ही करत रही?