भाजपा सरकार के सबसे बड़े अभियान ‘स्वच्छ भारत’ को दो साल पूरे हो गए हैं। इस अभियान के माध्यम से 1.04 करोड़ परिवारों को लाभ देने का लक्ष्य रखा गया था, जिसमें से 2 लाख 50 हजार सामुदायिक शौचालय, 2 लाख 60 हजार सार्वजनिक शौचालय और हर शहर में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधाएँ उपलब्ध करानी थीं।
इस अभियान के अंतर्गत पांच साल में 4 हजार 4 सौ 1 शहरों को लाभ स्वच्छ बनाना है। इस अभियान का मुख्य काम खुले में शौच बंदी, गंदे शौचालयों के स्थान पर साफ फ्लश शौचालयों का प्रयोग, मैला ढोने का उन्मूलन, नगरपालिका द्वारा गंदगी उठाने का सही प्रबंधन करने के साथ लोगों में अच्छी स्वास्थ्य, स्वच्छता की आदतों का बढ़ावा देना है।
इस अभियान को और बढ़ावा देने के लिए 2015 में ‘स्वच्छ सर्वेक्षण’ की शुरूआत की गई।
हाल ही में 2016 के सर्वेक्षण में 73 शहरों को मूल्यांकन किया गया, जिसमें मैसूर भारत का सबसे स्वच्छ शहर रहा। 2017 का सर्वेक्षण जनवरी 2017 में होगा, जिसमें 1 लाख से अधिक आबादी वाले 500 शहर और कस्बों को लिया जाएगा।
स्वच्छ भारत अभियान में कुल 62,009 करोड़ रुपये का खर्च शामिल है। केंद्र सरकार 14,623 करोड़ रूपये का योगदान इस योजना में दे रही है, जिसमें 7,366 करोड़ ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, 4,165 करोड़ रूपये व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों, 1,828 करोड़ रूपये जन जागरूकता और 655 करोड़ रूपये सामुदायिक शौचालय के लिए आबांटन किया गया है। इस अभियान में केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकार की हिस्सेदारी 75:25 के अनुपात में है। जबकि पूर्वोत्तर राज्यों और विशेष राज्यों में ये अनुपात 90:10 में है।
आंकडे़ बताते हैं कि अभियान अपने निर्धारित लक्ष्य से पीछे है, क्योंकि अभी भी 4,041 शहरों में से 141 और 608,000 गांवों का छठा हिस्सा ही खुले में शौच करने की आदत को छोड़ पाया है।
शहरी भाग में जुलाई 2016 तक 22 हजार सार्वजनिक शौचालय बने, जबकि पांच साल में 2 लाख 55 हजार सार्वजनिक शौचालय बनाने का लक्ष्य रखा गया है। 76 हजार 7 सौ 44 सामुदायिक शौचालय बनाए गए हैं जोकि अपने निर्धारित लक्ष्य का 30 प्रतिशत ही है।
दूसरी तरफ, 4 हजार 41 शहरों में 100 प्रतिशत तक ठोस अपशिष्ट प्रबंधन करने का लक्ष्य है, जिसमें से कोई भी शहर ऐसा नहीं है, जिसमें 100 प्रतिशत कचरे को फेंकने और उसके दुबारा से प्रयोग का प्रबंधन हुआ हो।
इस योजना के अंतगर्त पहले साल में केवल 4 लाख 60 हजार शौचालय बनें, जोकि निर्धारित लक्ष्य का 36 प्रतिशत ही हैं। अभी भी 24 लाख व्यक्तिगत शौचालय बनाने बाकी हैं।
इन सब बातों को जानने के बाद ‘स्वच्छ भारत’ बनाने की राह, अभी दूर नज़र आती है!