एक नई रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर की जनसंख्या में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है जहाँ शौचालय तक 732 मिलियन लोग अभी तक नहीं पहुंच पाए हैं।
वॉटरएड की रिपोर्ट, आउट ऑफ़ ऑर्डर: द स्टेट ऑफ़ द वर्ल्ड टॉयलेट्स 2017 के अनुसार, 355 मिलियन महिलाओं और लड़कियों की शौचालय तक पहुंच नहीं है। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि यदि वे एक पंक्ति में खड़े हो तो यह लम्बी लाइन पृथ्वी को चार गुना से ज्यादा घेरे बना कर कवर कर सकता है।
स्वच्छ भारत मिशन अक्टूबर 2014 में शुरू किया गया। सरकार के आंकड़ों के अनुसार, नवंबर 2017 तक देश के स्वच्छता कवरेज को 39% से बढ़कर 65% कर दिया। इस अवधि में ग्रामीण भारत में 52 मिलियन घरेलू शौचालय बनाए गए थे। इन प्रयासों के बावजूद बड़ी संख्या में घरेलू शौचालयों की जरूरत है।
रिपोर्ट के अनुसार, स्वच्छता अभियान ने 40% तक खुले में शौच करने वाले लोगों का अनुपात कम कर दिया है, जिसका मतलब है कि 100 मिलियन से अधिक लोग शौचालयों का उपयोग करते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, 2000 से 2015 तक बुनियादी स्वच्छता तक जनसंख्या का प्रतिशत 78।3% से गिरकर 56% हो गया है।
रिपोट के अनुसार, हर वर्ष, पांच साल से कम उम्र के 60,700 बच्चों की डायरिया बीमारी से मौत हो जाती है। 2015 में प्रति दिन अनुमानित 321 बच्चों की मौतों का मुख्य कारण यह भी है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2015-16, (एनएफएचएस -4) के आंकड़ों के अनुसार, ये समस्याएं जन्म के समय कम वजन और बच्चे की धीमे वृद्धि से भी जुड़ी हुई है, इसमें भारत के पांच साल से कम उम्र के 38% बच्चे फंसे हुए हैं।
एनएफएचएस -4 के आधार पर अप्रैल 26, 2017 की रिपोर्ट में भारतीय राज्यों में उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, असम और छत्तीसगढ़ में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में उच्चतम मृत्यु दर और उच्च स्वच्छता दर, खराब स्वच्छता के कारण एवं बिमारियों के कारण अधिकतर मौत के करीब देखी गई हैं।
शौचालयों की कमी का मतलब है कि 1।1 अरब से अधिक महिलाएं और लड़कियों को विश्व स्तर पर सीमित शिक्षा और यौन उत्पीड़न झेलना पड़ता है। इसमें शिक्षा छोड़ने का मुख्य कारण स्कूलों में शौचालय का न होना भी बताया गया है क्योंकि लड़कियां माहवारी के दौरान शौचालय के लिए परेशान रहती हैं।
फोटो और लेख साभार: इंडियास्पेंड