प्राथमिक विद्यालय होय चाहे पूर्व माध्यमिक विद्यालय। हेंया बने शौचालय टूट-फूट अधूरे परे हैं। कतौ-कतौ तौ दरवाजा तक निहाय। अगर शौचालय बने हैं तौ उनमा सफाई निहाय, न पानी के कउनौ व्यवस्था आय। यहिसे दसन हजार के लागत से बने शौचालय इस्तेमाल मा निहाय।
बांदा जिला के बहुतै स्कूलन के शौचालय के हालत देख के पता चलत है कि उंई केतना इस्तेमाल आवत होइहैं। जइसे कि तिन्दवारी ब्लाक के गांव छिरौंटा अउर बम्बिया के स्कूलन मा बने शौचालय के हालत बहुतै खराब है। यहिनतान बड़ोखर खुर्द ब्लाक के गांव जमुनी पुरवा अउर बड़ोखर खुर्द गांव के स्कूलन के शौचालय के दरवाजा टूट है अउर पानी निहाय। शौचालय बिना सीट के बने हैं। भला इनतान के हालत मा कउन बच्चा वहिमा टट्टी पेशाब करैं जात होई। एक कइत घर-घर शौचालय बनवावैं खातिर सरकार नारा लिख के बढ़ावा देत है कि ‘‘शौचालय घर में बनवायें, बहू बेटियां दूर न जाये’’ तौ दूसर कइत बने बनाये शौचालय का सुधारैं के जिम्मेदारी काहे नहीं लीन जात? स्कूल मा भी तौ बिटिया पढ़त हैं। अगर नारा लिखैं मा बिटियन का ध्यान रखा जात है तौ शौचालय के साफ सफाई मरम्मत अउर व्यवस्था काहे नहीं करी जात आय? सरकारी स्कूलन मा हर साल रंगाई पुताई अउर मरम्मत जइसे काम खातिर अलग से पांच से सात हजार रूपिया का बजट आवत है। तीन साल से खराब शौचालय का या बजट से मरम्मत काहे नहीं करावा गा? बाकी काम का छोड़ के का शौचालय के मरम्मत करावब ज्यादा जरूरी निहाय? मास्टरन के जिम्मदारी पढ़ावब, खाना बनवाबब अउर छुट्टी करैं बस के निहाय स्कूल मा बाकी जरूरतन का भी ध्यान रखैं का चाही। शौचालय इस्तेमाल मा होय या भी एक जिम्मेदारी आय।
स्कूल के शौचालय के खराब हालत
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