अनीता मिश्रा स्वतंत्र लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं ज्वलंत मुद्दों पर कई बड़े अखबारों में नियमित रूप से लिखती हैं
मेरे अपनों का खून है इस मिट्टी में, भारत मेरा घर है। मै अंतिंम साँस तक यहीं रहूंगी। ये जवाब सोनिया गांधी ने केरल में मोदी जी को दिया। एक चुनावी रैली में मोदी जी ने उन्हें विदेशी होने का ताना दिया था। ऐसा ही कुछ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को 1999 में कहना पड़ा था जब पी.ए.संगमा, शरद पवार, तारिक अनवर ने उनके विदेशी मूल के होने मुद्दा उठाया था।
ये बेहद अजीब है कि यह बातें उस देश के लोग कह रहें हैं जहां शादी के बाद पति का ही धर्म, देश , घर, सरनेम भी स्त्री का माना जाता है। और जो स्त्री ऐसा नहीं मानती उसे बुरी औरत समझा जाता है। इस पैमाने पर सोनिया गांधी खरी उतरती हैं। इसके बावजूद उन्हें लगातार ऐसी बातें सुननी पडी।
एक स्त्री शादी के बाद अपने जीवन के अड़तालीस साल एक देश में पूरी निष्ठा के साथ बिता देती है। अपनों को खोने के बाद राजनीति से दूर रहने का फैसला करती है। सालों ऐसा करती भी हैं फिर देखती हैं कि जिस पार्टी से उनका परिवार जुड़ा रहा देश के लोगों को इतनी उम्मीदे हैं वो पार्टी ख़त्म होने के कगार पर है । इसके बाद फिर से वापस लौटने का निर्णय लेती हैं । पार्टी में नई जान फूंकती हैं। एक सशक्त स्त्री के रूप में वो राजनीति में छाई रहती हैं।
राजनीति का शिखर प्रधानमंत्री की कुर्सी है वो उस कुर्सी के करीब होकर भी उसे अस्वीकार कर देती है। देश ही नहीं दुनिया भर से उन्हें प्रशंसा मिलती है। त्याग भारत जैसे देश में एक परम मूल्य रहा है उनमें ये गुण देखकर जनता को अपने देश की ही लगती रही हैं। यही वजह है कि सुषमा स्वराज जैसी प्रसिद्द और देशी बहू भी उनसे चुनाव हार जाती हैं। देश के नेता भले ही उन्हें विदेशी होने का ताना दें या उनकी निष्ठा पर प्रश्न उठायें लेकिन देश की जनता ने उन्हें अपने देश की बहू माना है। वो लगातार अपने चुनाव क्षेत्र रायबरेली से जीतती आयी हैं।
एक स्त्री के इतने साल तक पूरी निष्ठा के साथ देश में, अपने ससुराल में बिता लेने के बाद भी आप उस पर संदेह जाहिर करते हैं इससे आपकी नीयत पर संदेह पैदा होता है। आपका स्त्री विरोधी चरित्र सामने आता है।