उत्तर प्रदेश सरकार ने 19 नवंबर 2015 को यूपी के 50 जि़लों को सूखा घोषित किया है। जिनमें बुन्देलखण्ड के चित्रकूट, महोबा और बांदा जि़ले भी शामिल हैं। सरकार के हिसाब से सूखा 33 प्रतिशत पड़ा है। जबकि किसानों का कहना हैं कि सूखा 100 प्रतिशत पड़ा है। बड़े किसान से ज़्यादा छोटे किसान सूखा की मार खाए हैं। और आने वाले साल में क्या होगा कुछ नहीं कहा जा सकता है। इस सूखे को लेकर खबर लहरिया की रिपोर्ट इस प्रकार से है। बुन्देलखंड में दूर-दूर तक अगर खेतों को देखो तो केवल खाली खेत और मिट्टी ही दिखती है।
– आइए सुनते हैं किसानों की कहानी, किसानों की ही जु़बानी –
महोबा जि़ला जैतपुर ब्लाॅक के गांव बम्हौरी की सम्पतिया और शकुन्तला ने बताया कि ‘हमारे परिवार में खाने की कमी होती जा रही है। पहले तो हम दाल चावल सब्ज़ी सब खाते थे पर जब से सूखा पड़ा है तो बस एक टाइम सब्ज़ी-दाल खा पाते हैं। गांव में कुछ काम नहीं है। तो मर्द लोग कमाने इलाहाबाद और दिल्ली चले गए हैं। वहां पर मज़दूरी करते हैं। जो मिलता है वह हमें भेजते हैं तो उसी से हम अपने बच्चों का पेट पालते हैं। हमें तो पिछली फसल खराब होने का भी मुआवज़ा नहीं मिला है। हमारे पास चार बीघा और पांच बीघा ज़मीन है।’
जैतपुर ब्लाॅक के श्रीमौल गांव में ग्यारह सौ की आबादी है। जहां नौ सौ वोटर हैं। वहां के लगभग बीस किसानों का कहना है कि ‘हमें ओला पड़ने से £राब फसल का मुआवज़ा 6 महीने पहले नौ हज़ार रूपए मिले हैं। दूसरा चेक 15-16 नवम्बर को देने को लेखपाल ने कहा था पर अभी तक नहीं मिला है।’ यहां के कमलेेश ने बताया कि ‘इस गांव से लगभग सौ लोग परदेस कमाने जा चुके हैं। करीब पचास बच्चों ने हाई स्कूल और इंटर की पढ़ाई छोड़ दी है क्योंकी वह लोग कुलपहाड़ और महोबा में कमरा लेकर रहते थे। सूखे की मार झेल रहे मां-बाप उनका खर्च नहीं उठा पाए इसलिए उनको कमाने परदेस जाना पड़ा।’ कई किसानों ने कहा कि ‘दाल के दाम तो आसमान छू रहे हैं। हमने तो कई हफ़्तों से दाल ही नहीं खाई। सब्ज़ी भी इतनी मंहगी है कि एक टाइम के अलावा दूसरे टाइम नहीं खा पाते हैं।’
बांदा जि़ले में सूखे से कई मौंते हो चुकी हैं। किसानों की इस बात को लेकर जि़ले में अफरा-तफरी मची हुई है। 25 नवम्बर को भी महोखर गांव के सदल खां की मौत फसल न होने और कर्ज़ा को लेकर हो गई है। उनके पांच बेटे और दो बेटी हैं। एक बहू विकलांग है तो दूसरी को लकवा मार गया है। तीन साल से लगातार सूखा पड़ रहा है उसकी मार को झेल नहीं पाया सदल खां और उसकी मौत हो गई। उसके पास ज़मीन के अलावा और कुछ भी नहीं था। उसने रिश्तेदारों से और गांव के लोगों से लगभग पचास हज़ार का कर्ज़ा लिया था।
चित्रकूट जि़ले के मऊ ब्लाॅक के गांव कटैयाडाड़़ी और लपाव में भी जाकर सूखा का हाल देखा। गांव एकदम जंगल के बीच में बसा है। सोचने वाली बात है कि वहां कौन से अधिकारी जाते होगें? कटैयाडाड़ी गांव पाठा और जंगली इलाका है। लोगों की जमीनें पथरीली हैं। इस वजह से भी बहुत कम फसल होती है। वहां के सौ लोग पलायन कर चुके है घरों में औरतें या बूढ़े बचे हैं। लगभग दस किसानों ने कहा कि हम कर्ज़ा ले ले कर खाना-पीना कर रहे हैं।
लपाव गांव के हाल तो कहीं और ज़्यादा खराब हैं जंगल के बीचोंबीच बड़े-बड़े पत्थर। कोई रास्ता नहीं दिखता। गांव के चारों ओर पथरीली ज़मीनें थीं। गांव के ननकावन ने बताया कि उसकी 8 बीघा ज़मीन में पिछले तीन साल से कुछ भी पैदा नहीं हुआ है। गुलाब चंद निराला और देशराज यादव ने बताया कि जानवर तो बिन मौत मर जायेंगे क्योंकि खेतों पर चारा नहीं है। कुंआ, तालाब और हैण्डपम्पों में पानी नहीं है। चित्रकूट में सबसे खराब हाल मऊ और मानिकपुर के हैं क्योंकि यहां पर पहाड़ी और जंगली इलाके हैं।
* सूखे के बारे में बांदा जिले के प्रशासनिक अधिकारी कृपाराम भार्गव से बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि बांदा जिले के लिए एक लाख इकत्तीस हजार किसानों की लिस्ट मुआवजे के लिए भेजी गई है।
सूखे की मार झेल रहे किसानों की समस्या पर काम कर रहे किसान यूनियन के जिला अध्यक्ष राम सिंह पटेल के साथ मऊ तहसील में इक्कीस नवंबर को डेढ़ सौ किसानों ने धरना दिया। अनसुनी होने पर 24 नवंबर से ग्यारह लोग भूख हड़ताल पर भी बैठे। रामसिंह ने बताया कि गांवों में बिजली नहीं आती। आती भी है तो वोल्टेज पहुत कम होता है। इससे सिंचाई हो नहीं पाती। जिले में पंप कैनाल छह हैं जो बंद पड़े हैं। टैंक बांध पंद्रह हैं। उनमें भी पानी नहीं है। इस वजह से नहरें भी सूखी पड़ी हैं।
** राम सिंह पटेल ने बताया कि 26 नवंबर की रात आठ बजे बिजली विभाग के अधिकारी तहसीलदार और डिप्टी एसी ने आकर भूख हड़ताल को खत्म किया अधिकारियों ने भरोसा दिया कि हर ट्यूबवेल वाले किसानो को 6-6 घंटे बिजली दी जायेगी। साथ एक हफ्ते के अन्दर किसानों को मुआवज़ा दिया जायेगा।
मउ तहसील के तहसीलदार गुलाब सिंह ने सूखे की बात को मानते हुए कहा कि सच में किसान बहुत परेशान हैं। तहसील में दो बार सर्वे हुआ है। नए दिशा निर्देश 8 अप्रैल को सरकार ने भेजे हैं। इसमें तैंतिस प्रतिशत सूखा पड़ने वाले खेतों को सूखा माना गया है। यहां पर एक सौ चालीस आबाद गांव हैं। लेखपाल अड़तालिस हैं। ओले से नुकसान वाली चेक बयालिस हज़ार किसानों को बांटी जा चुकी हैं। इसमें उनतीस करोड़ की धनराशि खर्च हुई। चार करोड़ और बांटे जाने हैं।