देश की 33 करोड़ आबादी सूखे से जूझ रही है। जमीनी तौर पर देखें तो 675 जिलो में से 256 जिले भयंकर सूखाग्रस्त इलाकों में आते हैं। लगातार दो साल से चली आ रही इस सूखे की मार का आखिर दोषी कौन है? किसे इसका जिम्मेदार ठहराएं? सरकार की खोखली योजनाओं को, जल संरक्षण की प्रक्रिया ना होने को या सिर्फ बारिश ना होना ही इसका मुख्य कारण है? नहीं!
महाराष्ट्र में होने वाले क्रिकेट मैच में 60 लाख लीटर पानी खर्च होगा। यह सुन कर हम चौंक गए! जहां जलपूर्ति के लिए ट्रेन द्वारा इलाको तक पानी पहुँचाया जा रहा है, क्या वहां आईपीएल जैसे पियक्कड़ खेल की जरुरत है?
लेकिन विवाद यहां खत्म नहीं बल्कि यहां से शुरू होता है। क्रिकेट हमारा राष्ट्र खेल है, इसकी निंदा हम कैसे कर सकते है? चलो, कोई और बलि का बकरा पकड़ते हैं। और वो है गन्ने की फसल! महाराष्ट्र की 4 फीसदी खेती गन्ने की होती है लेकिन यह दस खेत के बराबर पानी पीता है यानि हमें यह मान लेना चाहिए कि आज जो सुखा पड़ा है उसका एकमात्र कारण गन्ना है।
इस संबंध में खेती के विशेषज्ञों का कहना है कि गन्ना भले ही ज्यादा पानी लेता हो, लेकिन इस फसल की खेती साल भर चलती है और चीनी मील उसी पानी का उपयोग करते हैं। गन्ने की खेती का उत्पादन गेंहू और चने से चार गुना ज्यादा होती है। तो सोचिए, गन्ना कैसे सूखे का कारण बन सकता है?
लेकिन ठीकरा कहीं-न-कहीं फोड़ना ही था तो इसे महाराष्ट्र सरकार ने गन्ने की फसल पर फोड़ दिया और अगले पांच साल तक चीनी मीलों पर रोक लगा दी।
सूखे के सबसे बड़े दोषी हम खुद हैं। जिसे टालने के लिए, इस भीषण सूखे का दोष कभी हम आईपीएल पर डाल देते हैं, तो कभी गन्ने की खेती पर।
सूखे का इल्जाम, क्यों है गन्ने के नाम?
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