सुप्रीम कोर्ट ने 13 मई को सूखे पर एक ऐतिहासिक फैसला स्वराज अभियान के पक्ष में दिया। इस फैसले में सरकार को ‘फंड की कमी के परदे‘ के पीछे नहीं छिपने का आदेश दिया गया और देश के 12 राज्यों के सूखा प्रभावित लोगों के लिए व्यापक राहत पहुंचाने को कहा गया। जिसमें बच्चों के लिए गर्मी की छुट्टियों के दौरान मिड-डे-मील जारी रखने, मिड-डे-मील में पूरक के तौर पर एक अंडा या एक गिलास दूध को शामिल करना, खाद्यान्न राशन को सार्वभौमिक बनाना, मनरेगा की राशि को पर्याप्त और समय पर जारी करना, फसल नुकसान मुआवजे का क्रियान्वयन, कृषि लोन का पुनर्गठन और पशुओं के चारे का प्रावधान शामिल है। यकीनन यह फैसला सन् 2002 के भोजन के अधिकार के फैसले के बाद सामाजिक न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट का सबसे महत्वपूर्ण दखल रहा है।
इस फैसले के बाद लागू हुए कानून की पड़ताल करने के लिए खबर लहरिया ने प्राथमिक विद्यालयों का दौरा किया। जिसमें प्रशासन की पोल खुलती नजर आई। कई स्कूलों में ताले लटके मिले तो कई में बच्चें नदारत रहे।
सूखे बुंदेलखंड में भुखमरी की स्थिति को देखते हुए सरकार ने प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक विद्यालयों में मई और जून की छुट्टियों में भी बच्चों को मिड-डे-मील उपलब्ध कराने का नियम लागू किया है लेकिन इस नियम से विद्यालयों के मास्टरों को परेशानी हो रही है। जिलों के अधिकतर स्कूलों में ताले लटके देखे जा सकते हैं। मास्टरों का मानना है कि उन्हें साल में एक बार ही छुट्टियों का समय मिलता है, जो इस नियम के बाद मिलना मुश्किल हो गया है। उनका कहना है कि ‘बच्चे मिड-डे-मील खाने नहीं आते लेकिन इसके लिए हमें रोजाना आना पड़ता है और रोज खाना बर्बाद होता है’।
जिला बांदा, बी.आर.सी. नरैनी क्षेत्र के स्कूलों में लगभग 34 हजार 3 सौ 79 बच्चें हैं। जिनमें से 31 प्राइमरी स्कूलों के 508 बच्चो ने और 12 पूर्व माध्यमिक स्कूलों में 134 बच्चों ने मिड-डे-मील लिया। बाकी विद्यालयों में रिपोर्ट जीरो जा रही है।
पडमई शंकुल प्रभारी, राज कुमार पटेल कहते है कि मेरे न्याय पंचायत में 22 स्कूल हैं, जिनमें 16 प्राइमरी और 6 जुनियर स्कूल हैं। यहां मिड-डे मील की व्यवस्था है पर किसी भी स्कूल में बच्चे खाने के लिए नहीं आ रहे। हमने लोगों के घरों में जा कर बच्चों को मिड-डे-मील खाने के लिए, भेजने को भी कहा लेकिन कोई आने को तैयार नहीं होता। हम लगभग रोज ही रिपोर्ट में जीरो भेज रहे हैं।
नरैनी ब्लॉक, शिक्षा अधिकारी योगेन्द्र नाथ कहते है कि सूखे के कारण छुट्टियों में भी मिड-डे-मील बनाने का जो प्रावधान शुरू हुआ है वह काबिले तारीफ है। छुट्टियां होने के कारण बच्चे अधिकतर स्कूलों में नहीं आते। कुछ स्कूलों में इका-दुक्का बच्चे आते भी हैं और हमें यह रिपोर्ट रोज ही बना कर डीएम को भेजनी पड़ती है।
नरैनी बी.आर.सी में चलने वाले प्राइमरी स्कूल की हेडमास्टर सविता कहती हैं कि हमारे स्कूल में बांस पुखरी जैसे दूर-दराज के पुरवों से बच्चें पढ़ने स्कूल आते हैं। मैं रोज सुबह 8 बजे से 11 बजे तक स्कूल में आ कर बच्चों के आने का इंतजार करती हूं कि बच्चे आएं तो खाना बनाया जाये, पर बच्चे नहीं आते और रिपोर्ट में जीरो ही लिखना पड़ता है।
प्रधान नरेन्द्र का कहना है कि हम लोगों को खाना बनवाने में कोई परेशानी नहीं है पर जब स्कूल में बच्चें ही नहीं आ रहे हैं तो खाना किसके लिए बनवाएं?
बरेठी गांव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले छात्र अवधेष का कहना है कि स्कूल में बस तेहरी खाने को मिलती है, जो हमें अच्छी नहीं लगती इसलिए हम स्कूल नहीं जाते हैं।
खाना बनाने वाली औरतें भी कहती हैं कि हम लोग खुद बच्चों को खाना खाने के लिए बुलाने जाते हैं पर कोई नहीं आता।
रिपोर्टर – गीता