देश की सर्वोच्च अदालत ने आईपीसी की धारा-377 की क़ानूनी वैधता पर फ़ैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि भारत में समलैंगिकता अब अपराध नहीं है।
बता दें, 377 धारा वह है जिसमें आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंध को आपराधिक कृत्य माना जाता है।
चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, एएम खानविल्कर, डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संवैधानिक पीठ ने इस मामले पर फ़ैसला सुनाया।
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में दिल्ली हाई कोर्ट के फ़ैसले को पलटते हुए इसे अपराध की श्रेणी में डाल दिया था।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट को इसके विरोध में कई याचिकाएं मिलीं। आईआईटी के 20 छात्रों ने नाज़ फाउंडेशन के साथ मिलकर याचिका डाली थी। इसके अलावा अलग-अलग लोगों ने भी समलैंगिक संबंधों को लेकर अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था, जिसमें ‘द ललित होटल्स’ के केशव सूरी भी शामिल हैं। अब तक सुप्रीम कोर्ट को धारा-377 के ख़िलाफ़ 30 से ज़्यादा याचिकाएँ मिली हैं।
याचिका दायर करने वालों में सबसे पुराना नाम नाज़ फाउंडेशन का है, जिसने 2001 में भी धारा-377 को आपराधिक श्रेणी से हटाए जाने की मांग की थी।